कोरबा: साइबर क्राइम से निपटने के लिए जिले की पुलिस ने कमर कस ली है. हाल ही में जिले में साइबर क्राइम से जुड़े मामलों को सुलझाने के लिए अलग कार्यालय खोला गया है. इसके साथ ही पुलिस, थाना स्तर पर छोटे-मोटे मामलों पर तत्काल कार्रवाई के लिए आरक्षकों को भी प्रशिक्षण देने की तैयारी कर रही है. साइबर रथ के साथ ही पुलिस जागरूकता पर भी फोकस कर रही है, ताकि साइबर क्राइम के मामलों को नियंत्रित किया जा सके.
CYBER CRIME को लेकर कोरबा पुलिस सख्त पिछले वर्ष 2941 अपराध
वर्ष 2020 में जिले में कुल मिलाकर 2941 अपराध रिपोर्ट हुए. इसमें चोरी, डकैती, हत्या लूट के साथ ही ऑनलाइन ठगी और धोखाधड़ी के मामले सम्मिलित हैं. इसमें से लगभग 5 से 10% मामले तकनीक का उपयोग कर हुए हैं. आने वाले समय में ऑनलाइन ठगी और साइबर अपराध से जुड़े अपराधों का प्रतिशत 30 से 40 तक पहुंच जाने का अनुमान है. जिससे निपटने के लिए पुलिस धरातल पर प्रयास करने की तैयारी कर रही है. ऑनलाइन माध्यम से होने वाले अपराध को नियंत्रित कर इसे सुलझाना पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती है.
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तकनीक के मामले में अपराधी पुलिस से आगे
हाईटेक माध्यमों से होने वाले अपराध आमतौर पर ऑनलाइन युग में तकनीक के जानकार करते हैं. पुलिस महकमे से इसकी तुलना की जाए तो अपराधी पुलिस से ज्यादा हाईटेक हो चुके हैं. अब पुलिस को उनकी बराबरी करने के लिए अमले को तैयार करना होगा. इसी की तैयारी के लिए अब पुलिस महकमे में थाना स्तर पर कम से कम 1 पुलिसकर्मी को प्रशिक्षण देने का प्लान है. ताकि साइबर अपराध से जुड़े मामलों को थाना स्तर पर ही कुछ हद तक सुलझाया जा सके.
ओटीपी शेयर करना सबसे बड़ी गलती
साइबर अपराध के मामलों में लगभग सभी केस ऐसे होते हैं जिसमें आम लोग जानकारी के अभाव में ओटीपी शेयर कर देते हैं. ऑनलाइन ठग, लोगों को फोन कर बड़ा इनाम मिल जाने या किसी अन्य तरह का प्रलोभन देते हैं. जिसके झांसे में आकर लोग मोबाइल पर आए ओटीपी को शेयर कर देते हैं.
जागरूकता का अभाव
बैंक के कर्मचारी हो या फिर पुलिस सभी इस बात पर जोर देते हैं कि लोगों को खुद ही जागरूक होना होगा. साइबर अपराधों को होने से पहले ही रोकना इसके रोकथाम की दिशा में सबसे कारगर उपाय है. लोग अब भी उतने जागरूक नहीं हैं. जितना कि उन्हें होना चाहिए. प्रलोभन में आकर ठगों के किसी भी बात को मानने से इनकार करना होगा. लेकिन लोग इसके विपरीत अपने एटीएम कार्ड का सीवीवी, मोबाइल पर आए मैसेज और ओटीपी नंबर तक शेयर कर देते हैं. जिसके बाद वह बड़ी ठगी का शिकार होते हैं.