कोरबा: जिले को छत्तीसगढ़ की उर्जाधानी के तौर पर पहचाना जाता है. वह इसलिए क्योंकि यहां एक दर्जन से भी अधिकार पवार प्लांट स्थापित हैं. लेकिन एक पावर प्लांट जो कभी लग नहीं पाया और जिसे लेकर लगभग 3 दशक से सियासत चली आ ही है. वह है साउथ कोरियन कंपनी देबू. दरअसल देबू ने जिले के ग्राम रिस्दी में अब से लगभग 27 वर्ष पूर्व 260 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी. लेकिन इस पर पावर प्लांट आज तक नहीं लग पाया.
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रमन सिंह के आरोप
हाल फिलहाल में हलचल तब तेज हुई जब कुछ महीने पहले लॉकडाउन के दौरान प्रशासन ने जमीन का सीमांकन शुरू कर दिया है. ग्रामीणों ने इसका विरोध किया और मामला ठंडे बस्ते में चला गया. अब इस खाली पड़ी जमीन को लेकर कोरबा प्रवास पर रहे प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह (Former Chief Minister Raman Singh) ने गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा कि इस बेशकीमती जमीन पर प्रदेश के मुख्यमंत्री, राजस्व मंत्री सहित एक तांत्रिक की भी नजर है. रमन सिंह के इस बयान पर राजस्व मंत्री ने भी पलटवार किया.
पूर्व सीएम और राजस्व मंत्री के रूप में जुबानी जंग
कोरबा प्रवास पर पहुंचे रमन सिंह ने सीधे-सीधे आरोप लगाया कि देबू के जमीन पर अब लोगों का लार टपक रहा है. प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हो राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल (Revenue Minister Jaisingh Agarwal) हो या फिर एक तांत्रिक सभी की इसपर नजर है. सभी इस जमीन को हड़पना चाहते हैं, ऐसा गठबंधन दुनिया में कहीं नहीं देखा होगा. मैं कहता हूं कि देबू की जमीन को जो खाली पड़ी है, उसे क्यों ना किसानों को वापस कर दिया जाए. जो इसके लिए लगातार आंदोलन कर रहे हैं. हालांकि रमन सिंह ने यह स्पष्ट नहीं किया कि वह तांत्रिक कौन है.
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रमन सिंह के आरोप पर राजस्व मंत्री जय सिंह अग्रवाल (Revenue Minister Jaisingh Agarwal) ने कहा कि यह आरोप बिल्कुल निराधार है. उन्होंने कहा कि जमीन को बेचने का सवाल ही नहीं उठता है. देबू ने जब जमीन का अधिग्रहण किया था. तब सरकार और लोगों से कई वादे किए थे. उन्होंने उस कंडीशन का उल्लंघन किया. इसलिए अधिग्रहित जमीन का आदेश समयसीमा के बाद स्वयं निरस्त हो गई.
मंत्री जय सिंह की दलीलें
जो सरकारी जमीन वहां मौजूद है वह अब सरकार की है. कुछ प्राइवेट जमीनों का अधिग्रहण हुआ था, लेकिन उनका नामांतरण नहीं हो सका था. इसकी वजह से कुछ किसान वहां काबीज हैं. देबू ने इसे लेकर हाईकोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया था. यह जमनी उद्योग विभाग को चली गई. एक विशेष कमेटी भी है, जिसमें कई विभागों को सचिव शामिल हैं. ऊर्जा विभाग से होते हुए राजस्व मंत्री होने के नाते जब मेरा अभीमत लिया गया तो मैंने अपना अभिमत दिया कि यह जमीन जिस तरह हमने लोहंडीगुड़ा में किसानों को वापस की घई है. उसी तर्ज पर देबू के जमीन भी किसानों को वापस कर दिया जाए, तो अगर कोई इस तरह का आरोप लगाता है. तो वह गलतफहमी में ना रहे। उस जमीन को हड़पने या खरीदी बिक्री करने का सवाल ही नहीं होता.
ऐसे समझिये क्या है देबू की जमीन का विवाद
लगभग 27 वर्ष पहले 1994-95 में साउथ कोरिया की कंपनी देवू ने कोरबा जिले के गांव रिस्दी और आसपास के जमीन का अधिग्रहण कर 1000 मेगावाट का पावर प्लांट लगाने के लिए तत्कालीन मध्यप्रदेश की दिग्विजय सरकार से करार किया था. लेकिन 27 साल बाद भी यहां ना तो पावर प्लांट लग पाया ना ही ग्रामीणों को तय शर्तों के अनुसार नौकरी मिली.
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कंपनी के ढेरों वादे फुर्र
प्लांट के लिए रिस्दी की 260 एकड़ सहित रिस्दा, पंडरीपानी और कुरूडी को मिलाकर बड़े पैमाने पर जमीनों का अधिग्रहण किया था. 250-250 एकड़ अलग-अलग सरकारी जमीन भी प्लांट के लिए चयनित की गई थी. तब देबू ने 3 लाख रुपए प्रति एकड़ के भाव से ग्रामीणों को मुआवजा दिया था. कंपनी ने वादा किया था कि प्लांट लगते ही ग्रामीणों को नौकरी, स्कूल अस्पताल जैसी सुविधाएं मिलेगी. लेकिन यह सब आज तक नहीं हुआ है.
देवू के वकील डीडी दासगुप्ता ने बताया कि जब प्लांट के लिए करार हुआ था. दिग्विजय सिंह सरकार (Digvijay Singh Government ) के कार्यकाल में एमपीईबी ने बिजली खरीदने का अनुबंध किया था. तब देवू ने 100 करोड़ रुपए गारंटी मनी के रूप में जमा किए थे. लेकिन बाद में देवू कंपनी दिवालिया हो गई. प्लांट लगा नहीं. अब वह अपनी 100 करोड रुपए की राशि वापस पाना चाहता है.