कोरबा:कोयले की धरती अब अपने ही कीर्तिमान के बोझ तले कराह रही है. कोयला और बिजली उत्पादन के लिए कई कीर्तिमान गढ़ने वाली ऊर्जाधानी की धरती दिनों-दिन प्रदूषित हो रही है. हालात यह है कि जिले के कई क्षेत्रों में लोगों का जीवन नर्क जैसा हो गया है. कोयले के डस्ट और भारी वाहनों की आवाज ने लोगों के जीवन में जहर घोल दिया है. हालात ऐसे हो गए हैं कि खुली हवा में सांस लेना मुश्किल हो गया है.
धुंधली हो रही ऊर्जाधानी की तस्वीर एशिया की सबसे बड़ी कोयले की खदान कोरबा में है. इसके अलावा कुल मिलाकर 14 खदानें कोरबा में हैं. जिसका उत्खनन 1960 की दशक से शुरू हुआ था, जो अब भी बदस्तूर जारी है. इसकी कीमत यहां के लोग अपने स्वास्थ्य से चुका रहे हैं. पर्यावरणविदों की मानें तो अब कोयला उत्खनन के और भी घातक परिणाम सामने आएंगे.
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पर्यावरण नियमों की उड़ाई जा रही धज्जियां
विश्व भर में कोयला आधारित पावर प्लांट को बंद कर दूसरे विकल्पों की तलाश की जा रही है, लेकिन हमारे देश में अब भी कोयला आधारित पावर प्लांट को ही बढ़ावा दिया जा रहा है. धरती के भीतर से कोयला निकालने के दौरान कई तरह के पर्यावरणीय दुष्प्रभाव पड़ते हैं. इसके साथ ही पर्यावरण नियमों की भी धज्जियां उड़ाई जाती हैं. लगातार पेड़ों की कटाई हो रही है, जो पर्यावरण के लिए बेहद नुकसानदेह है. डर यह भी है कि जब सब कुछ लुट चुका होगा, तब होश में आने पर भी शेष कुछ नहीं रह जाएगा.
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DMF में सालाना 300 करोड़ का मिलता है राजस्व
कोयला खदानों से मिलने वाले कुल राजस्व का एक भाग जिला प्रशासन को देने का नियम है. SECL यानि साउथ इस्टर्न कोलफिल्ड जिला प्रशासन को यह फंड देता है, जिससे जिले का पैसा जिले में ही रहे. साथ ही जिला स्तर पर वास्तविक जरूरतों के मद्देनजर विकास की योजनाएं बनाई जा सकें, जिसके तहत पिछले कुछ वर्षों से DMF मद में औसतन 300 करोड़ रुपए का राजस्व प्रतिवर्ष जिला प्रशासन, कोरबा को मिलता है. इसके लिए बकायदा राज्य शासन ने एक कमेटी बनाई है, जिसमें प्रभारी मंत्री इसके अध्यक्ष और कलेक्टर सचिव हैं, लेकिन समय-समय पर इस फंड के दुरुपयोग और नियम विरुद्ध खर्च किए जाने की शिकायतें मिलती रहती है.
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लगातार बढ़ रहा प्रदूषण का स्तर
जिले की कोयला खदानों से दोहन किए गए कोयले का परिवहन रेल और रोड दोनों ही माध्यमों से होता है. इसके अलावा कोयला आधारित पावर प्लांट से भी पर्यावरण को बेहद नुकसान हो रहा है. खासतौर पर ट्रकों के माध्यम से कोयला ढुलाई से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है. पर्यावरण के अधिकारी, पावर प्लांट या एसईसीएल के अधिकारी, सब इस विषय में सभी चुप्पी साधे हैं. पर्यावरण नियमों के उल्लंघन और कोयला खदानों में नियम विरुद्ध के कार्यों पर कुछ भी कहने को वह तैयार नहीं होते. इन सब में जनता पिसती रहती है. कोयले की धूल और कैंसर कारक पदार्थों को झेलना अब जिले वासियों की नीयति बन चुकी है.
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मजदूर भी हैं परेशान
कोयला खदानों के लिए बनाए गए आर्थिक नीति और श्रम कानूनों में लगातार संशोधन हो रहे हैं. मजदूर नेताओं की मानें तो अब कोयला खदानों में नियमित मजदूरों की भर्ती बंद कर आउटसोर्सिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है. इससे लगातार मजदूरों के अधिकार छिन रहे हैं, जिससे वह परेशान हैं. ट्रेड यूनियन और प्रबंधन मिलकर नियम तो बनाते हैं, लेकिन एग्रीमेंट में दस्तखत के बाद भी उन नियमों को लागू नहीं किया जाता.
1960 के दशक से रेल से कोयला की ढुलाई
कोरबा जिले में 1960 के दशक में कोयला उत्खनन शुरू हुआ था, तभी कोरबा को रेलवे लाइन बिलासपुर से जुड़ा गया था. वर्तमान में कोरबा से हर दिन औसतन 40 से 45 रैक कोयला प्रतिदिन डिस्पैच किया जाता है. मालगाड़ी के 1 रैक में 58 से 65 डिब्बे होते हैं. 1 रैक कोयले की ढुलाई के लिए रेलवे को कम से कम 6 से 7 लाख रुपये की आमदनी भाड़े के रूप में मिलती है.
कई राज्य कोरबा पर निर्भर
देश के कई राज्यों को उनके पावर प्लांट चलाने के लिए कोयले की आपूर्ति हो, या फिर कोरबा में बनने वाली बिजली. कोयला और बिजली दोनों ही के लिए देश के कई राज्य कोरबा पर निर्भर हैं. इन राज्यों में छत्तीसगढ़ से लगे हुए महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश सहित गुजरात, तेलंगाना जैसे देश के दक्षिण व पश्चिम के और भी कई राज्य पूरी तरह से आश्रित हैं.
एक ही स्थान पर इतनी खदानें कहीं नहीं
कोरबा में छोटी बड़ी को मिलाकर कुल 14 कोयले की खदान हैं, हालांकि कोयले का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य झारखंड है, जहां धनबाद इसका प्रमुख केंद्र है, लेकिन देश की 3 सबसे बड़ी खदान गेवरा, दीपका और कुसमुंडा कोरबा जिले में स्थापित हैं. देशभर में ऐसा कोई दूसरा जिला नहीं है, जहां एक ही स्थान पर इतनी अधिक मात्रा में कोयले की खदानें संचालित हों.
कोयला आधारित 11 पावर प्लांट भी कोरबा
थर्मल पावर प्लांट कोयला आधारित होते हैं. इन पावर प्लांट्स को संचालित करने के लिए सबसे अहम आवश्यकता कोयला ही है. कोरबा जिले में कोयले की प्रचुर मात्रा ही एकमात्र वजह है, जिसके कारण कोरबा में कुल 11 पावर प्लांट स्थापित हैं, जबकि एक हाइडल पावर प्लांट बांगो में है. जहां से राज्य के साथ ही देश भर में विद्युत की सप्लाई होती है.
कोरबा जिले में SECL की कोयला खदानें
- गेवरा ओपन कास्ट कोल माइन्स, गेवरा क्षेत्र
- दीपका विस्तार परियोजना, दीपका का क्षेत्र
- कुसमुंडा ओपन कास्ट कोल माइन्स, कुसमुंडा क्षेत्र
- बगदेवा भूमिगत खदान, कोरबा क्षेत्र
- रजगामार भूमिगत खदान, कोरबा क्षेत्र
- सिंघाली भूमिगत खदान, कोरबा क्षेत्र
- ढेलवाडील भूमिगत खदान, कोरबा क्षेत्र
- बलगी भूमिगत खदान, कोरबा क्षेत्र
- बांकीमोंगरा भूमिगत खदान, कोरबा क्षेत्र
- सुराकछार भूमिगत खदान, कोरबा क्षेत्र
- मानिकपुर ओपन कास्ट कोल माइन्स, कोरबा क्षेत्र
- रानीअटारी भूमिगत खदान, चिरमिरी क्षेत्र
- प्रकाश इंडस्ट्रीज लिमिटेड, चोटिया ओपन कास्ट एंड अंडर ग्राउंड कोल प्रोजेक्ट
देशभर में 25% से भी ज्यादा कोयला उत्पादन कोरबा में
देश भर की अन्य खदाने साल भर में 400 मिलियन टन कोयला प्रतिवर्ष उत्पादन करती हैं. इसमें से लगभग 120 मिलियन टन कोयले का सालाना उत्पादन कोरबा में होता है. यह आंकड़ा भी लगातार बढ़ रहा है. खदानों के विस्तार की प्रक्रिया लगातार जारी है.
ये हैं जिले में स्थापित पावर प्लांट्स - भारत अल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड 540 मेगावाट
- बाल्को कैपटिव पावर प्लांट-1, जमनीपाली 270 मेगावाट
- कोरबा थर्मल पावर स्टेशन राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड कोरबा पूर्व- 440 मेगावाट
- हसदेव थर्मल पावर स्टेशन छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड, कोरबा पश्चिम 840 मेगावाट
- कोरबा सुपर थर्मल पावर स्टेशन, एनटीपीसी लिमिटेड जमनीपाली 2600 मेगावाट
- डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ताप विद्युत गृह छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड कोरबा पूर्व 500 मेगावाट
- लैंको अमरकंटक पावर प्राइवेट लिमिटेड, 600 मेगावाट
- ACB इंडिया कंपनी लिमिटेड 270 मेगावाट
- SV प्लांट पावर प्लांट लिमिटेड, रेकी 60 मेगावाट
- स्पेक्ट्रम कोल ऐण्ड पावर लिमिटेड, रतीजा 50 मेगावाट
- हाइडल पावर स्टेशन, छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड, मचाडोली 120 मेगावाट