कोरबा: किसी भी सामान के वजन का सत्यापन करना बेहद जरूरी होता है, क्योंकि इसका असर सीधे ग्राहकों की जेब पर पड़ता है. वजन के सत्यापन की पूरी जिम्मेदारी नाप तौल विभाग के हाथों में होती है. कोरबा के बाजारों में उपभोक्ताओं को किसी भी वस्तु के नाप तौल की सटिक जानकारी नहीं दी जाती है. चाहे पेट्रोल पंप हो, राशन दुकान, सब्जी मंडी या फिर फल मंडी... हर जगह ग्राहकों को लूटा जा रहा है. लोगों को उनके खरीदे वस्तुओं के नाप तौल का सत्यापन नहीं किया जा रहा है. हालांकि खानापूर्ति करते हुए विभाग बीच बीच में कार्रवाई जरूर करता है.
सोया है कोरबा नाप तौल विभाग:कई व्यापारी सत्यापन किसी और कांटे से करते हैं और इस्तेमाल किसी और कांटे(तराजू) का करते हैं. जिसका असर उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ता है. मात्रा कम होने से उनके अधिकारों का हनन तो होता ही है. साथ ही निर्धारित वजन के बदले चुकायी गई कीमत पर कम मात्रा में वस्तु मिलने पर बजट भी बढ़ता है.
नाप तौल विभाग को खुद को नापने की जरूरत:अक्सर ग्राहकों की शिकायत होती है कि पेट्रोल पंप पर मिलने वाले पेट्रोल कम होते हैं. वाहन का माइलेज भी कम होता है. वार्ड नंबर 3 के पार्षद रवि चंदेल कहते हैं कि जनता से जुड़े इस मुद्दे को उठाया जाना बेहद जरूरी है. किसी सरकारी राशन के दुकान पर, पेट्रोल पंप या फिर सामान्य दुकान पर नापतौल विभाग से प्रमाण पत्र लेकर एक पर्ची तराजू बाट या फिर इलेक्ट्रॉनिक कांटे पर चस्पा करना होता है. लेकिन यह कहीं भी देखने को नहीं मिलेगा. चंदेल कहते हैं कि जिले में "नापतौल विभाग को खुद को नापने और तौलने की जरूरत है. इनकी सक्रियता फील्ड पर नहीं दिखती. जिसका खामियाजा उपभोक्ताओं को उठाना पड़ता है. उन्हें कांटा मारकर वस्तुएं दी जा रही है. लोगों की जेब भी कट रही है. इस दिशा में जल्द ही हम कलेक्टर से शिकायत कर कार्रवाई की मांग करेंगे."
सत्यापन वाले कांटे से नहीं लेते काम:कोरबा जिले के युवा नेता बद्री अग्रवाल एक व्यापारी हैं. उनका कहना है कि नापतौल विभाग की निष्क्रियता का फायदा व्यापारी उठाते हैं. कई व्यापारी तो अपने तराजू बांट और इलेक्ट्रॉनिक कांटों का सत्यापन नहीं करवाते है. कुछ व्यापारी सत्यापन किसी और कांटे का करवाते हैं और दुकान में नापने तौलने का काम किसी और कांटे से करते हैं. अग्रवाल बताते हैं कि "उपभोक्ताओं के पास ऐसा कोई सिस्टम नहीं होता, जिससे कि वह 5 किलो 10 किलो की मात्रा का सत्यापन कर सके. यह जान सके कि जितनी मात्रा में उन्होंने किसी वस्तु को खरीदा है, उसकी मात्रा ठीक है या नहीं. सीधे तौर पर उपभोक्ताओं की जेब कट रही है. "