कोरबा :छत्तीसगढ़िया को हिंदी भाषा के बेहद निकट माना जाता है. इसका इस्तेमाल 10 तरह से छत्तीसगढ़ में दिया जाता है. 10 प्रकार से छत्तीसगढ़ी बोली का इस्तेमाल छत्तीसगढ़ के निवासी करते हैं. एक अनुमान के मुताबिक राज्य भर में लगभग 2 करोड़ लोग छत्तीसगढ़ी में संचार करते हैं. यह राज्य की प्रमुख भाषा है, लेकिन राज्य गठन के 23 साल बाद भी छत्तीसगढ़ी को वह मुकाम नहीं मिला. जो दक्षिण की भाषा या फिर ओड़िया, मराठी, गुजराती, बांग्ला या तेलुगु को मिला है. जानकारों की माने तो उस तरह के प्रयास नहीं हुए जैसे होने चाहिए. जबकि एक तथ्य यह भी है कि छत्तीसगढ़ी की लिपि भी देवनागरी है और इसका अपना बेहद समृद्ध साहित्य का भंडार और व्याकरण भी मौजूद है.
ईमानदारी से प्रयास नहीं हो रहे :हिंदी और छत्तीसगढ़ी के प्रख्यात साहित्यकार डॉ माणिक विश्वकर्मा ने छत्तीसगढ़ी को मानक भाषा का दर्जा नहीं मिलने पर अपने विचार ईटीवी भारत से साझा किए. माणिक कहते हैं कि '' प्रदेश में राजभाषा दिवस मनाया जरूर जाता है. लेकिन इसे मानक भाषा का दर्जा नहीं मिला है.
किसी स्थानीय बोली या भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए कई बुनियादी बातों की जरूरत होती है. शब्दकोश, व्याकरण सहित कई मापदंड हैं. छत्तीसगढ़ी में पर्यायवाची शब्द बहुत ज्यादा हैं. प्रदेश भर में इसे 10 तरह से बोला जाता है. जिस तरह दक्षिण में हर जगह भाषा का डिस्प्ले है.उसी प्रकार हिंदी और अंग्रेजी के साथ सरकारी कामकाज और डिस्प्ले बोर्ड पर छत्तीसगढ़ियां में लिखा जाना चाहिए. इतने सालों में छत्तीसगढ़ी भाषा में एक अखबार तक नहीं निकलता यह दुर्भाग्य जनक है.''
Matrabhasa Diwas 2023 : छत्तीसगढ़ी भाषा को क्यों नहीं मिला बड़ा मुकाम
विश्व भर में आज मातृभाषा दिवस मनाया जा रहा है. उद्देश्य है कि मातृभाषा के संरक्षण और इसके प्रति लगाव का भाव उत्पन्न हो. छत्तीसगढ़ में भी छत्तीसगढ़ी बोली या स्थानीय भाषा का इस्तेमाल किया जाता है. इसे लगभग 2 करोड़ लोग बोलते हैं. लेकिन इससे वह मुकाम अब तक नहीं मिला जिसकी वास्तव में यह हकदार है. राजभाषा आयोग का गठन किया गया. लेकिन वर्तमान में इसके अध्यक्ष की कुर्सी खाली है. वर्तमान छत्तीसगढ़ सरकार, छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान की बात तो करती है. लेकिन छत्तीसगढ़ी बोली को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल कर इसे भाषा का दर्जा पाने में नाकाम रही है.
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4 साल बाद भी आयोग के अध्यक्ष का पद खाली :छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष विनय पाठक ने इस विषय में अपना अभिमत दिया और कहा कि ''जब राजभाषा आयोग का गठन किया तब हमने काम का शुरू किया. हमने छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में इसे शामिल करवाया. एमए के पाठ्यक्रम में भी छत्तीसगढ़ी भाषा को शामिल करवाने में सफलता मिली. मंत्रालय में भी प्रशिक्षण दिया ताकि छत्तीसगढ़ी भाषा में ही कामकाज हो, कई पुस्तकों का प्रकाशन किया. वर्तमान में राजभाषा आयोग में सिर्फ एक व्यक्ति को सचिव बना दिया गया है. जिस गति से काम होना चाहिए वह नहीं हो रहा है. छत्तीसगढ़ के सरकार ने इसे जरूर दर्जा दे दिया है. लेकिन जब तक संविधान की आठवीं अनुसूची में इसका प्रकाशन ना हो. तब तक देश भर में इसे भाषा का दर्जा रहे मिलेगा. यह मेरी भी समझ के परे है कि जब छत्तीसगढ़ के राजनेता छत्तीसगढ़िया अस्मिता की बात करते हैं. तो राजभाषा आयोग के कामकाज को क्यों दुरुस्त नहीं कर रहे. इस मुद्दे को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया गया.''