कोरबा:दिल्ली में श्रद्धा और आफताब की रेयरेस्ट ऑफ द रेयर श्रेणी के केस के बाद लिव इन रिलेशनशिप के बारे में देश भर में चर्चा का विषय बन गया है. ईटीवी भारत ने इसके पीछे की मानसिकता और लिव इन रिलेशनशिप में रहते हुए किन बातों की सावधानी बरतनी चाहिए इस विषय पर उन जानकारों खुद जाकर चर्चा की. जो इस तरह के मामलों को डील करते हैं. हालांकि कोरबा जैसे छोटे शहरों में लिव इन के मामले कम ही आते हैं. लेकिन इक्का दुक्का मामले हैं, कोरबा के कोर्ट में भी आए हैं. जानकारों का कहना है कि इस तरह के मामलों में कोर्ट संवेदनशीलता बरतता है, यदि एक लड़का और लड़की पति पत्नी की तरह साथ रह रहे हैं. तो उन पर वह सभी नियम और कानून लागू होते हैं. जो किसी शादीशुदा जोड़े के लिए बनाए गए हैं.
पारिवारिक पृष्ठभूमि का पता लगाना बेहद जरूरी :फैमिली कोर्ट कोरबा की काउंसलर अरुणा श्रीवास्तव ने बताया कि "कोरबा जैसे छोटी जगह में लिव इन के मामले कम ही देखने को मिलते हैं. हम परिवार से जुड़े मामलों पर ही डील करते हैं. जब जोड़े हमारे पास आते हैं तो हमारा प्रयास रहता है कि परिवार को टूटने से बचाया जाए. कई बार तो बात इतनी छोटी सी होती है कि उसे भी समझाने वाला कोई मौजूद नहीं होता हम वहां पर अहम भूमिका निभाते हैं. कई बार लोग समझना नहीं चाहते और छोटी सी गलतफहमी की वजह से बात बढ़ जाती है. ऐसा भी हुआ है कि हमारे समझाने से बात बन गई और परिवार टूटने से बच गया है. दिल्ली में जो मामला सामने आया है. उसके तर्ज पर यदि देखा जाए तो लिव इन में जाने से पहले पारिवारिक पृष्ठभूमि का पता लगाना बेहद जरूरी है. यह पता लगाया जाना चाहिए कि जिसके साथ रह रहे हैं. वह आपराधिक पृष्ठभूमि वाला तो नहीं है. लिव इन एक तरह से जिम्मेदारी से बचने का भी तरीका है. इसमें दोनों ही अपना स्वहित देखते हैं. सिर्फ इस्तेमाल करने की मंशा नहीं होनी चाहिए, यदि परिवार को आगे बढ़ाने की इच्छा है. तभी लिव इन में जाना चाहिए".