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छत्तीसगढ़ में कैसे हुई एक नदी की 'मौत', जानिए - कोयलांचल क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है लीलागर

ऊर्जाधानी कोरबा की लीलागर नदी अब अपना अस्तित्व खोती जा रही है. मौजूदा समय में इसका पानी लगभग सूख चुका है.कुछ जगहों पर गंदे पानी और पत्थर ही बचे हैं. एक समय में प्रवाहमय रहने वाली इस नदी की मौत कैसे हुई. कैसे इस नदी ने अपना वजूद खो दिया. जानिए इस रिपोर्ट में

Lilagar River of Korba
कोरबा की लीलागर नदी

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Published : Apr 8, 2022, 10:40 PM IST

Updated : Apr 9, 2022, 6:57 PM IST

कोरबा:कोरबाजिले को प्रदेश की ऊर्जाधानी के तौर पहचान तो मिली है. लेकिन इसके साइड इफेक्ट कितने घातक हैं. यह समझना हो तो, लीलागर नदी के वर्तमान स्वरूप को देख कर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. जिले की पूर्वी पहाड़ियों से निकलने वाली लीलागर नदी का उद्गम स्थल ही कोरबा है. लीलागर दशकों से कोयलांचल क्षेत्र हरदीबाजार और आसपास के दर्जनभर गांव के ग्रामीणों के लिए जीवनदायिनी रही है.

ये जिले के पूर्व में बिलासपुर और जांजगीर जिले से कोरबा की सीमाओं का निर्धारण करते हुए शिवनाथ नदी में मिल जाती है. कुल प्रवाह क्षेत्र 135 किलोमीटर है. लेकिन अब लीलागर अपने अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही है. जिम्मेदार मौन हैं और ग्रामीण कभी कलकल बहने वाली इस नदी की स्थिति को देखकर आहत हैं.

दशकों से झेल रही औद्योगिक प्रदूषण की मार : लीलागर नदी का उद्गम स्थल हरदीबाजार के समीप जिले की पूर्वी पहाड़ियों से होता है. यह क्षेत्र दीपका और गेवरा खदानों से घिरा हुआ है, जो एसईसीएल की मेगा परियोजनाएं हैं. खदानों से लाखों टन कोयला निकलता है. जानकारों की मानें तो जहां भी कोयला खदानों का विस्तार होता है, वहां का भू-जल स्तर काफी नीचे चला जाता है. यह स्तर इतना नीचे चला जाता है कि जल की स्थिति वहां से समाप्त हो जाती है. लीलागर नदी के जल भराव क्षेत्र में भी साल दर साल कमी आई है. खदानों से निकलने वाला कोयला युक्त पानी, ओवरबर्डन के मिट्टी और पत्थर नदी के दायरे को कम कर रहे हैं. जानकार और पर्यावरणविद लीलागर की इस स्थिति से काफी चिंतित हैं.

ऊर्जाधानी कोरबा की लीलागर नदी

कभी कलकल बहती थी लीलागर, अब पत्थर ही पत्थर:लीलागर नदी एक समय काफी मनोरम हुआ करती थी. 2 साल पहले की बात है जब बरसात में इस नदी ने बाढ़ जैसे हालात पैदा कर दिए थे. काफी सारा पानी खदानों में चला गया था. तब दीपका खदान से कोयला उत्पादन भी प्रभावित हुआ था. लीलागर नदी में रेत से ज्यादा पत्थर हैं. इसलिए पानी सूखने के बाद नदी में पत्थर ही पत्थर दिखाई पड़ते हैं. कहीं-कहीं तो लीलागर नदी अब छोटे नाले जैसा प्रतीत होती है. जहां पानी बचा है, वहां इसका रंग मटमैला और काला हो चुका है. ग्रामीण इस पानी से निस्तारी करने से भी कतराते हैं. ग्रामीणों की मानें तो एक समय वह लीलागर के पानी को पेयजल के तौर पर इस्तेमाल करते थे.

कोयलांचल क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है लीलागर :कोयला प्रभावित क्षेत्रों में पेयजल की स्थिति काफी दयनीय रहती है. भूजल स्रोतों के सूखने के साथ यहां कुएं और हैंडपंप भी गर्मियों में सूख जाते हैं. ऐसे में हरदीबाजार क्षेत्र के कोयलांचल में इस नदी का महत्व और भी बढ़ जाता है. लीलागर नदी प्रदेश के दक्षिण की ओर बिलासपुर और जागीर तहसील की सीमा बनाते हुए शिवनाथ नदी में मिल जाती है. यह शिवनाथ नदी की सहायक नदी है. नदी की कुल लंबाई 135 किलोमीटर और फैलाव क्षेत्र 2.33 वर्ग किलोमीटर है. रायगढ़ जिले में भी लंबाई 960 मीटर है. लेकिन वर्तमान स्वरूप इन पुराने आंकड़ों से काफी जुदा है. इसे नए सिरे से संज्ञान में लेकर ठोस पहल की जरूरत जानकार बताते हैं.

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संज्ञान लेकर करेंगे जांच:इस विषय में स्थानीय पर्यावरण संरक्षण मंडल कोरबा के रीजनल ऑफिसर अंकुर साहू का कहना है कि लीलागर नदी के विषय में आप के माध्यम से जानकारी मिली है. आवश्यक संज्ञान लेकर नदी के प्रदूषण की जांच करेंगे.

करते हैं मापदंडों का पालन :एसईसीएल के जनसंपर्क अधिकारी शनिष चंद्र का कहना है कि पिछले कुछ सालों से यह मैंडेटरी है कि खदानों से निकलने वाले पानी को फिल्टर करने के बाद ही बाहर छोड़ा जाए. अब तो खदान से निकलने वाले ओवरबर्डन के यूटिलाइजेशन की भी बात हो रही है. प्रकृति के साथ समरसता रखते हुए विकास ही हमारी कंपनी का ध्येय है. जलवायु परिवर्तन औद्योगिक सक्रियता और औसत तापमान में वृद्धि ऐसे कई कारणों ने छोटी नदियों के बहाव को प्रभावित किया है.हालांकि यदि कहीं से अपशिष्ट नदी में जा रहा होगा तो हम जरूर इसके लिए उचित प्रबंध करेंगे. एसईसीएल द्वारा मापदंडों का पूरी तरह से पालन किया जाता है.

Last Updated : Apr 9, 2022, 6:57 PM IST

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