कोरबा की संवरा जनजाति की खास परंपरा जानिए कोरबा: भारत में जितने जात, पंथ और अलग-अलग समुदायों का उल्लेख मिलता है. उनमें शादी की अपनी-अपनी रस्में होती हैं. हर समुदायों में शादी की कुछ खास रस्म होती है जो उन्हें अलग बनाती है. ऐसी ही एक परंपरा छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में संवरा जनजाति में है. जो दहेज में सांप देने की अनोखी रस्म अदायगी करते हैं. यदि वधू पक्ष की ओर से लड़के वालों को दहेज में सांप न दिया जाए, तो इनकी शादी की रस्म अधूरी रहती है.
दहेज में क्यों देते हैं सांप:खतरनाक जहरीले फन फैलाए सांप ही इनके जीवन का आधार है. सपेरों का यह समुदाय दहेज में सांप इसलिए देते हैं ताकि होने वाला दामाद इन्हें दिखा कर अपना जीवन यापन कर सके. सांप दिखा कर जो पैसे मिलते हैं, उनसे ही इनका जीवन चलता है.
करतला ब्लॉक में सपेरों के 100 परिवार मौजूद: कोरबा ब्लॉक के कोरकोमा और करतला ब्लॉक के ग्राम पंचायत मुकुंदपुर व सोहागपुर के आसपास संवरा जनजाति के लोग रहते हैं. इन स्थानों में सपेरों के समुदाय से जुड़े लगभग 100 परिवार मौजूद हैं. कुछ जशपुर व अन्य स्थानों से माइग्रेट होकर भी यहां आए हैं. जो कपड़े की झोपड़ी बनाकर ही अपना जीवन यापन कर रहे हैं.
वर्तमान में संवरा जनजाति के लोगों से बातचीत करने पर यह पता चलता है कि वे कितने संघर्ष में अपना जीवन गुजर बसर कर रहे हैं. वे कहते हैं कि सपेरों से सांप को अलग कर दिया जाएगा. तो उनके पास बचेगा क्या? सरकार यदि हमारे हाथ में बीन नहीं देख सकती, तो उन्हें हमारे हाथ में रोजगार भी तो देना होगा.
पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा :संवरा जनजाति के लोगदहेज में सांप देने की रस्म को पीढ़ियों से निभाते आ रहे हैं. सावन के महीने में लोगों को नाग देवता के दर्शन कराकर उनसे पैसे मांगने की ये रीत सदियों से चली आ रही है. संवरा जनजाति के लोग आज भी इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. लेकिन अब वन विभाग के नियम और पशु संरक्षण अधिनियम इन रिवाजों के आड़े आ रहे हैं. वन विभाग के अधिकारी भी कहते हैं कि वह यथासंभव समझाइश देने का प्रयास करते हैं.
शादी में अलग अलग प्रजाति के देते हैं सांप :दहेज में सांप देने का परंपरा तो अनोखी है ही, साथ ही ये भी कि शादी में 9 प्रकार के अलग-अलग प्रजातियों के सांप दहेज में दिए जाते हैं. जिनके पास जितने प्रकार के सांप होंगे वो उतना संपन्न होगा.
यह रिवाज सालों से चला रहा है, हमें हमारे पुरखों ने इसके बारे में बताया. अब हम भी इसी तरह शादी के रिवाज पूरे करते हैं. जब मैं छोटा था तभी से सांपों से खेल रहा हूं. अब मेरी उम्र 60 वर्ष के ऊपर है. हमारे बच्चे भी सांपों को पकड़ना जानते हैं, हमारा पेशा ही यही है. सांपों को दिखाकर ही हम अपनी आजीविका चलाते हैं.ताकि हमारा दामाद इसे दिखाकर अपनी आजीविका को चला सके. सावन का महीना हमारे लिए खास होता है, मैं तो सांप लेकर काफी दूर दूर तक सफर करता हूं. जशपुर, अंबिकापुर से लेकर कई इलाकों में जाकर सांप दिखाता हूं. इसी से हमारा जीवन चलता है. भरत लाल, संवरा जनजाति, कोरकोमा निवासी
दहेज में सांप ना मिले तो शादी अधूरी :संवरा जनजाति के तेजराम किसी दूसरे जिले से गांव कोरकोमा आए हुए थे. अपने होने वाले समधी से मिलने आये थे. इन्होंने अपने बेटे की शादी कोरकोमा में ही तय की है. लेकिन फिलहाल दोनों नाबालिग हैं. सरकारी नियम के तहत बालिग होने के बाद ही शादी करेंगे.
हम आदिवासियों में मामा और फूफा की तरफ से शादी तय हो जाती है. शादी के समय हम सांपों को दहेज में देते हैं, अगर सांप नहीं मिलेंगे तो हमारी शादी की परंपरा, रिवाज पूरे नहीं हो पाते. दहेज में सांप को देना अनिवार्य होता है, इसके लिए अलग-अलग प्रजातियों के सांप को शामिल किया जाता है. -संवरा जनजाति के तेजराम
पहले 60 सांप देते थे, अब 9 से ही काम चला लेते हैं :समय बदलने और वन विभाग के कड़े नियमों के कारण संवरा जनजाति के लोगों ने भी अपने नियमों में कुछ ढील दी है.शादी की परंपरा में भी कई तरह के परिवर्तन आ गए हैं. पहले शादी में 60 सांप दिए जाते थे जो समय के अनुसार 21, 14 और अब ये घटकर सिर्फ 9 रह गई है. दहेज में 9 अलग-अलग प्रजाति के सांपों को देना होता है.
वन विभाग के नियम बहुत कड़े हो चुके हैं. दहेज में सांप देना हो या सांप दिखाकर लोगों से पैसे मांगना. दोनों पर ही विभाग की नजर रहती है. कई बार तो हमसे सांप छीन लिए जाते हैं, हमें परेशान किया जाता है. अगर हमसे सांपों को छीना जा रहा है, हमें ऐसा करने से रोका जा रहा है. तो हमारे लिए रोजगार का प्रबंध किया जाना चाहिए. हम मरते दम तक अपने रिवाज नहीं छोड़ सकते. हमें अपने पूर्वजों से यही सीख मिली है. हमे इसके अलावा कुछ आता भी तो नहीं है-कटंगी लाल संवरा, गांव मुकुंदपुर
समझाइश देते हैं कि जहरीले सांपों को ना पकड़े :कोरबा मंडल में रेंज ऑफिसर सियाराम करमाकर के क्षेत्र में ही संवरा जनजाति के लोग निवास करते हैं.करमाकर कहते हैं कि सांपों को पकड़ना, उनका प्रदर्शन करना तो अब वर्जित कर दिया गया है. लेकिन संवरा जनजाति की आजीविका इसी से जुड़ी है. इनके यहां दहेज में सांप देने की प्रथा भी है. लेकिन अब अब यह काफी कम है. हम यथासंभव समझाइश देने का प्रयास करते हैं. समय-समय पर इन्हें समझाते है जिसका कुछ असर भी हुआ है.
सपेरे आधुनिक होते समाज में दोराहे पर खड़े हैं. एक तरफ सरकारी नियम हैं, जो इन्हें अपनी परंपराओं को आगे बढ़ाने से रोक रहे हैं. तो दूसरी तरफ इनके कंधों पर पूर्वजों से मिली विरासत की संस्कृति का दारोमदार है. जिसे बचाये रखने के लिए वह संघर्ष कर रहे हैं.