कोरबा:हसदेव नदी के पानी और कोयले की प्रचुरता के कारण ही कोरबा में कोयले से बिजली उत्पादन का कार्य वृहद पैमाने पर होता है. दर्जनभर कोयला आधारित ताप विद्युत संयत्र मिलकर 6000 मेगावाट बिजली का उत्पादन करते हैं. जिससे न सिर्फ प्रदेश बल्कि देश भर के कई राज्य रोशन होते हैं. जिसके लिए प्रतिदिन 80 हजार टन कोयले की खपत होती है, इसे जलाया जाता है. जिसका लगभग 40% भाग राख के तौर पर पावर प्लांट से उत्सर्जित होता है. प्लांट से उत्सर्जित इस राख को राख डैम तक पहुंचाया जाता है. कुछ राख ठोस, जबकि कुछ तरल के तौर पर भी राखड़ डैम तक पहुंचता है. इस राख में घातक एलिमेंट्स होते हैं. कैडमियम, कॉपर, लेड, लौह, और जिंक सहित कई घातक धातु राख में मौजूद होते हैं. अब यह सभी नदी, नालों से होते हुए हसदेव नदी में समाहित हो रहे हैं.
वैसे तो केंद्र सरकारों ने सभी पावर प्लांट प्रबंधन को शत प्रतिशत राख यूटिलाइजेशन का अल्टीमेटम दे दिया है. लेकिन यह योजना मूर्त रूप नहीं ले पा रही है. एनटीपीसी जैसा सबसे एडवांस टेक्नोलॉजी का पावर प्लांट भी फिलहाल पावर प्लांट से उत्सर्जित कुल राख का सिर्फ 60 फ़ीसदी हिस्सा ही यूटिलाइज कर पा रहा है. इस बात की जानकारी एनटीपीसी के जीएम ने दी है. यही हाल बालको और राज्य सरकार के पावर प्लांट्स का भी है. जिसका सबसे बड़ा साइड इफेक्ट हसदेव नदी झेल रही है. जिन पावर प्लांटों को हसदेव नदी से सांसे मिलती है. अब वही इसके अस्तित्व पर संकट पैदा करने का कारण बन रहे हैं.
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10 प्रतिशत तक घटी है जल भराव क्षमता:हसदेव नदी पर मिनीमाता बांगो बांध का निर्माण सन 1992 में पूरा हुआ था. 26 से 28 साल में नदी की जलभराव क्षमता 10% घट गई है.
बांध निर्माण के समय 1992 में हसदेव की जलभराव क्षमता 3,046 मिलियन घन मीटर(एमसीएम) आंकी गयी थी. नदी में लगातार सिल्ट जमा होने की वजह से अब यह क्षमता घटकर 2,894 एमसीएम रह गई है. कुछ साल पहले किए गए केंद्रीय जल आयोग ने यह आंकड़े दिए थे. आयोग की रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि औद्योगिक प्रदूषण की वजह से ही हसदेव के जल भराव क्षमता में कमी आई है.
ये है उद्गम स्थल और सहायक नदियां :हसदेव नदी का उद्गम स्थल कोरिया जिले के देवगढ़ पहाड़ी, सोनहत पठार से होता है. इसकी कुल लंबाई 176 किलोमीटर है. कोरिया से उद्गमित होने के बाद हसदेव मनेंद्रगढ़, चिरमिरी, भरतपुर होते हुए कोरबा पहुंचती है. कोरबा हसदेव का सर्वाधिक फैलाव है. जिसके बाद यह जांजगीर-चांपा के केर-सिलादेही गांव में महानदी में जाकर समाहित हो जाती है. हसदेव को महानदी की प्रमुख सहायक नदी के तौर पर जाना जाता है. कोरबा जिले में कई छोटी नदियां भी बहती है. जिनकी लंबाई 20 से 40 किलोमीटर है. तान, झींग, उतेंग, गज, अहिरान, चोरनई, गेज(सबसे लंबी), हंसिया और केवई हरदेव की सहायक नदियां हैं. दुर्भाग्य का विषय यह है कि हसदेव के साथ ही साथ इसकी अधिकतर सहायक नदियां भी प्रदूषण के भीषण चपेट में है.
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2021 में लगाएं उपकरण, अभी ट्रायल पर :स्थानीय पर्यावरण संरक्षण मंडल के जूनियर साइंटिस्ट मानिक चंदेल ने बताया कि "प्रदेश की 5 नदियों को प्रदूषण युक्त माना गया है. एनजीटी के निर्देश पर हसदेव नदी पुनरुद्धार योजना की शुरुआत की गई है. इसके तहत हमने हसदेव नदी के दर्री से लेकर उरगा तक के 20 किलोमीटर के भाग को प्रदूषित माना है.
कोरबा जिले में ज्यादातर पावर प्लांट संचालित हैं. फिलहाल यह सभी शून्य निस्तारण के नियमों का पालन कर रहे हैं. किसी भी पावर प्लांट से प्रदूषित जल नदी में नहीं छोड़ा जा रहा है. फिर भी हमने एनजीटी के गाइडलाइन के अनुसार हसदेव नदी के सुधार के लिए 2 कंटीन्यूअस इनफ्लूएंट क्वॉलिटी मॉनिटरिंग स्टेशन की स्थापना की है. हमने दो स्थानों पर इसे स्थापित कर दिया है. "