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धुएं के आगोश में कोरबा: जहरीली राख डंपिंग से बढ़ रहा प्रदूषण, जिम्मेदार कौन?

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Published : Mar 9, 2022, 11:19 AM IST

Updated : Mar 9, 2022, 4:15 PM IST

कोरबा में राख डंपिंग से शहर में प्रदूषण बढ़ रहा (Illegal ash dumping in korba) है. खतरे की जानकारी होने के बावजूद प्रशासन सतर्क नहीं है.

Korba in lap of smoke
धुएं के आगोश में कोरबा

कोरबा: जिले में बीते लगभग 2 वर्षों से कोयला आधारित पावर प्लांट से उत्सर्जित राख को रिहायशी इलाकों में फेंकने की नई परंपरा शुरू हुई थी, जिससे देश के क्रिटिकली पोल्यूटेड शहरों में शुमार कोरबा में प्रदूषण का ग्राफ बढ़ता गया है. मौजूदा समय में कोरबा धुएं के आगोश में हैं. नियमानुसार पावर प्लांट से निकलने वाले राख का पर्यावरण विभाग द्वारा जारी एडवाइजरी के तहत उचित निपटान किया जाना चाहिए. राख को पावर प्लांट द्वारा निर्मित राखड़ डैम में ही समाहित किया जाना चाहिए. इसके अलावा यदि राख को कहीं फेंका (Illegal ash dumping in korba) जा रहा है तो उसके ऊपर 1 फीट मिट्टी की परत बिछाई जानी चाहिए, जिससे प्रदूषण ना फैले.

जहरीली राख डंपिंग से बढ़ रहा प्रदूषण
हालांकि जिले में ठीक इसके विपरीत काम हो रहा है. राख को मनमाने तरीके से यहां-वहां फेंका जा रहा है. हैरानी वाली बात यह भी है कि ठेकेदारों की मनमानी पर प्रशासन चुप्पी साधे हुए है. जिम्मेदारों ने पूरी तरह से आंखें मूंद ली हैं.

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2 लाख टन राख का रोज उत्सर्जन

कोरबा को प्रदेश की ऊर्जाधानी कहा जाता है. यहां प्रतिदिन लगभग 6000 मेगावाट यूनिट बिजली का उत्पादन होता है. इनमें से सभी थर्मल पावर प्लांट हैं. जहां बिजली का उत्पादन कोयला पर आधारित होता है. 120 मेगावत की क्षमता वाला बांगो जिले का एकमात्र हाइडल पावर प्लांट है, जहां पानी से बिजली पैदा होती है. थर्मल पावर प्लांट में कोयला जलाकर बिजली उत्पन्न करने के लिए बड़े पैमाने पर कोयला जलाया जाता है. कोरबा में दर्जनभर पावर प्लांट हैं. जहां विद्युत उत्पादन की प्रक्रिया के दौरान प्रतिदिन 2 लाख टन राख उत्सर्जित होता है. जो कि कोयला जलने के बाद बनता है. राख जिले में प्रदूषण का एक बड़ा कारक है.

राख यूटिलाइजेशन के मामले में ज्यादातर पावर प्लांट बेहद फिसड्डी

इसके नियमानुसार प्रबंधन व निपटान के लिए भारत सरकार के ग्रीन ट्रिब्यूनल के साथ ही स्थानीय पर्यावरण विभाग द्वारा भी राख गंभीर मापदंड निर्धारित किए गए हैं. प्रत्येक पावर प्लांट को अपना राखड़ा डैम बनाकर राख को वहां तक पहुंचाना होता है, ताकि राख रिहायशी इलाकों में फैलकर प्रदूषण का कारण न बने. लेकिन ऐसा किया नहीं जाता. पावर प्लांट शत-प्रतिशत राख यूटिलाइजेशन का दावा तो करते हैं लेकिन यह दावे केवल कागजों तक ही सीमित हैं. वास्तव में राख यूटिलाइजेशन के मामले में ज्यादातर पावर प्लांट बेहद फिसड्डी हैं.

सार्वजनिक उपक्रमों ने निजी कंपनियों को दिया ठेका जो कर रहे मनमानी

बालको व एनटीपीसी जैसे सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के उपक्रमों ने राख के परिवहन का ठेका निजी कंपनियों को दिया है. निजी ठेका कंपनियां प्लांट से उत्सर्जित राख को ट्रकों के जरिए प्लांट से लेकर उचित स्थान पर डंप करने का ठेका ले लेती हैं. जिसके एवज में बालको एनटीपीसी जैसे पवार प्लांट इन्हें मोटी रकम का भुगतान करते हैं. अब ठेका कंपनी मनमानी तरीके से राख शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में भी नियम विरुद्ध तरीके से रिहायशी इलाकों में डंप कर रफूचक्कर हो जाते हैं. रातों-रात किसी भी स्थान पर चोरी छुपे राख डंप किया जा रहा है. जबकि यह नियमों के विपरीत है.राख डंप करने वाली निजी कंपनियां रसूखदारों की है, जिसके कारण जिम्मेदार विभागों ने चुप्पी साध रखी है. ऐसे में पावर प्लांट प्रबंधन इसे निजी कंपनी का काम कहकर अपनी जवाबदेही से हाथ खींच लेते हैं. लेकिन इन सभी का खामियाजा आम लोगों को विकराल प्रदूषण के रूप में झेलना पड़ रहा है.

गर्मी में बढ़ेगा प्रदूषण का ग्राफ

जहां कहीं पावर प्लांट से उत्सर्जित राख को डंप किया जा रहा है. वहां, भूमि स्वामी से लिखित अनुमति प्राप्त करनी होती है. पर्यावरण विभाग से भी सहमति प्राप्त करने के बाद ही किसी स्थान पर राख डंप किया जा सकता है. नियम यह भी है कि राख के ऊपर मिट्टी की एक परत बिछाई जाए, जिससे कि राख हवा में घुलकर कर लोगों के सांसों में न मिले. पवार प्लांट से उत्सर्जित राख बेहद बारीक कण होते हैं, जो वजन में भी काफी हल्का होता है. हल्की सी हवा चलने पर भी राख हवा में घुलकर प्रदूषण का एक बड़ा कारण बनता है.खासतौर पर गर्मियों में राख का बेहद सावधानी से निपटान करना जरूरी होता है. इस दौरान चलने वाली तेज हवा से डंप राख आम दिनों की तुलना में ज्यादा प्रदूषण फैला सकता है. हवा में रहने के बाद यह सांसों के जरिए लोगों के स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदेह होता है.

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सांसद ने भी किया स्वीकारा कि बढ़ा है प्रदूषण

इस विषय में जब कोरबा सांसद ज्योत्सना महंत से सवाल किया गया तब उन्होंने भी इस बात को स्वीकार किया है कि कोरबा में राख के कारण प्रदूषण का ग्राफ दिनों दिन बढ़ रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि मैंने चिकित्सकों से भी चर्चा की है. कोरबा का बढ़ा हुआ प्रदूषण लोगों में आंख और फेफड़ों के साथ ही टीबी की बीमारी को बढ़ा रहा है. सांसद ने इसके लिए कार्य योजना बनाने की बात कही है. यह भी कहा है कि केंद्र सरकार से भी इस विषय में चर्चा हुई है. हम प्रयासरत हैं कि केंद्र और राज्य सरकार के साथ मिलकर प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके. सांसद ने यह भी कहा कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कोरबा में कोयला खदानों के कारण प्रदूषण का ग्राफ बढ़ा हुआ है.



पहले की गई थी कार्रवाई

स्थानीय पर्यावरण संरक्षण मंडल के वैज्ञानिक राजेंद्र वासुदेव का इस विषय में कहना है कि निजी कंपनियां कहीं भी राख डंप नहीं कर सकते. इसके लिए कई तरह के मापदंडों का पालन करना होता है. कुछ समय पहले ही डंप की गई राख को वापस हटाने संबंधी आदेश जारी किया गया था. पहले इस तरह की कार्रवाई की गई है. इस संबंध में आगे भी जांच की जाएगी और कार्रवाई करेंगे होगी.

Last Updated : Mar 9, 2022, 4:15 PM IST

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