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21 वर्षों में कोरबा बनी उर्जाधानी, जिले के कोयले से कई राज्य होते हैं रोशन लेकिन अब भी यहां है अंधेरा - Tribals

एक नवंबर (1st November) को छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) 21 साल का हो जाएगा. साल 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ था. इससे 2 वर्ष पहले 1998 में ही कोरबा (Korba) को जिला घोषित कर दिया गया था. दरअसल, राज्य बनने के बाद से ही कोरबा का विकास काफी तेजी से हुआ. हालांकि मौजूदा समय में जो जगह इस जिले को मिलनी चाहिए थी, वह उसे नहीं मिला है. जिसको लेकर लोगों में मायूसी है वह सरकार (Government) से जिले के विकास को लेकर और आशाएं रखते हैं.

Got the award of energy in 21 years
21 सालों में मिला उर्जाधानी का तमगा

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Published : Oct 30, 2021, 7:41 PM IST

Updated : Oct 30, 2021, 9:40 PM IST

कोरबा:छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) राज्य 1 नवंबर को 21 वर्ष का हो जाएगा. दरअसल, साल 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ था. इसके 2 वर्ष पहले साल 1998 में कोरबा (Korba)को जिला घोषित किया गया था. राज्य बनने के बाद से ही कोरबा का विकास (Development of korba) तेजी से हुआ. वहीं, कोरबा को 21 वर्षों में प्रदेश की ऊर्जाधानी होने का गौरव मिला. देश का लगभग 20 फीसद कोयला अकेले कोरबा जिले से उत्खनन होता है. इतना ही नहीं, यहीं के कोयले से न सिर्फ प्रदेश के बल्कि कई राज्यों के पावर प्लांट (Power plant) चलते हैं और उससे बिजली (Electricity) पैदा होती है. हालांकि विकास की होड़ में आज भी ये पिछड़ा हुआ है.

21 सालों में मिला उर्जाधानी का तमगा

बता दें कि रेलवे को अकेले कोरबा से 6000 करोड रुपए का राजस्व प्राप्त होता है. खनिज न्यास फण्ड से औसतन 300 करोड़ रुपये का फंड सालाना कोरबा के विकास पर खर्च होता है. इन कीर्तिमानों के बावजूद कहीं ना कहीं कोरबा विकास की दौड़ में पिछड़ा हुआ है.

कोयला संकट : कोल लदान में 35 से 40 रैक की बढ़ोतरी

इतना ही नहीं आदिवासियों (Tribals)का गढ़ कहे जाने वाले कोरबा में आज भी आदिवासियों की स्थिति नहीं सुधरी है. ट्राइबल जिला कोरबा में ज्यादातर आबादी आदिवासियों की है. विकास के जो आयाम छत्तीसगढ़ ने गढ़े थे. उसकी तुलना में कोरबा कहीं पीछे छूट गया है. वहीं, जिम्मेदारों ने कोरबा का दोहन समय-समय पर किया है. जिसकी वजह से जितने विकास का कोरबा हकदार था, वो विकास आज भी उसे नहीं मिली है.

60 के दशक में बिछाई गई थी नई रेल लाइन

बता दें कि कोरबा में रेल लाइन का विकास 60 के दशक में हुआ था. यही वह दौर था जब पहली बार जिले में कोयले का उत्खनन शुरू हुआ. एशिया की सबसे बड़ी ओपन कास्ट कोल माइन गेवरा कोरबा जिले में स्थापित है. यहीं से कोयले के परिवहन के लिए रेल लाइन का विस्तार हुआ. वहीं, रेल लाइन का विस्तार 60 के दशक में होने के बाद कोरबा आज भी यात्री ट्रेनों की सुविधा से महरूम है. कोरबा से शिवनाथ, विशाखापट्टनम लिंक एक्सप्रेस के साथ ही कुछ यात्री ट्रेनें जरूर चलती है. हसदेव एक्सप्रेस को भी अब हफ्ते में दो से तीन दिन तक सीमित कर दिया गया है. यात्री ट्रेनों के लिए कोरबा भी तरस रहा है, जबकि रेलवे को माल ढुलाई के जरिए अकेले कोरबा जिले से 6000 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होता है.

खनिज न्यास सदैव सवालों के घेरे में

इधर, छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद केंद्र में जब भाजपा की सरकार आई. तब यह नियम बना कि खनिज न्यास फंड का पैसा जिले में ही मौजूद रहेगा. साथ ही यह जिले के विकास पर खर्च किया जाएगा. साल 2016 से याब तक औसतन 300 करोड़ रुपए का सालाना फंड कोरबा जिले में मौजूद होता है. यह भारी-भरकम फंड जिले के ही विकास पर जिले में बनाई गई योजनाओं पर खर्च किया जाना है. लेकिन यह फंड भी अपने अस्तित्व में आने के बाद से सवालों के घेरे में रहा है. भले ही सरकार किसी की भी हो, लेकिन खनिज न्यास के बंदरबांट के आरोप लगते रहते हैं. इस फंड से हुए विकास कार्यों की गुणवत्ता सदैव सवालों के घेरे में रहती है.

सिंचित रकबा महज 12 फीसद

बता दें कि प्रदेश का सबसे ऊंचा डैम कोरबा जिले में है. जीवनदायिनी हसदेव नदी पर मिनीमाता बांगो डैम का निर्माण 1967 में किया गया था. जो कि कोरबा जिले के माचाडोली गांव में निर्मित है. जिसकी ऊंचाई 87 मीटर है. कोरबा जिले में खेती का रकबा डेढ़ लाख हेक्टेयर के करीब है. लेकिन सिंचाई सिर्फ 30 हजार हेक्टेयर में ही होती है. वहीं, बांगो बांध की सिंचाई क्षमता 2 लाख 45 हजार हेक्टेयर है. लेकिन कोरबा जिले में केवल 6000 हेक्टेयर में ही बांगो बांध से सिंचाई संभव हो पाती है. बांगो बांध की नहरों का लाभ जांजगीर-चांपा जिले के किसानों के साथ-साथ रायगढ़ जिले के किसानों को मिलता है, लेकिन जिले में सिंचित रकबा इतने वर्षों में भी नहीं बढ़ सका. बांगो डैम के अलावा जिले में दर्री बराज स्थित है. लेकिन इसका लाभ भी जिले को बहुत ज्यादा नहीं मिल पाता.

सबसे बड़ा नगर पालिक निगम कोरबा

67 वार्डों में विभाजित क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से नगर पालिक निगम कोरबा 215 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. जो कि प्रदेश का सबसे बड़ा नगर पालिक निगम क्षेत्र है. यही कारण है कि विकास, नगर निगम के सभी वार्डों तक नहीं पहुंच पाता. कई वार्ड अब भी गांव जैसे हैं. आज भी निगम क्षेत्र की सड़कें पूरी तरह से उखड़ चुकी है. नगर निगम फंड की कमी का रोना रोता है. सड़कों की बदहाली दूर नहीं हो पा रही है. फिर चाहे जिले में नगर निगम क्षेत्र की ही कोई भी सड़कें हों, सभी की हालत बेहद खराब है. नगर निगम क्षेत्र में सड़कों की कुल लंबाई 791 किलोमीटर है.

120 मिलियन टन कोयला, 3000 मेगावाट से अधिक बिजली का उत्पादन

प्रमुख तौर पर कोरबा की पहचान कोयले और बिजली की वजह से ही है. कोल इंडिया लिमिटेड के 720 मिलियन टन सालाना टारगेट का 172 मिलियन टन का टारगेट एसईसीएल को मिला है. एसईसीएल के अधीन आने वाले कोरबा जिले की खदानों से 120 मिलियन टन कोयले का उत्पादन सालाना होता है. लिहाजा 16 फीसद कोयला अकेले कोरबा जिले से उत्पादन किया जाएगा. कोयले की प्रचुरता के कारण जिले में दर्जनभर पावर प्लांट संचालित हैं. जहां से औसतन 3000 मेगावाट बिजली का उत्पादन प्रतिदिन किया जाता है. जिससे देश के कई हिस्से भी रोशन होते हैं. लेकिन इन कीर्तिमानो का बोझ कोरबा की जनता को उठाना पड़ता है. कोयला परिवहन के दौरान धूल-मिट्टी से लोग परेशान रहते हैं. कई तरह के गंभीर बीमारियों से लोग लगातार ग्रसित हो रहे हैं. खासतौर पर कोयलांचल क्षेत्र में रहने वाले लोग कफन बांध कर घरों से निकलते हैं.

प्रदूषण की मार झेल रहे लोग

यहां सड़क हादसा हो या फिर धूल मिट्टी का प्रदूषण, कोरबा के लोगों की यह नियति बन चुकी है. लगातार लोग प्रदूषण की मार झेल रहे हैं. कागजों में पर्यावरण से संबंधित मापदंडों को विद्युत संयंत्र और कोयला खदान पूरा कर लेते हैं. लेकिन धरातल पर तस्वीर पृथक होती है. जिम्मेदार विभाग भी इस दिशा में कभी ठोस कार्रवाई नहीं करती.

आज भी भटक रहे भू विस्थापित

बता दें कि देश की सबसे बड़ी कोयला खदानों के साथ जिले में दर्जनभर पावर प्लांट मौजूद हैं. जहां से 3000 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है. इनके लिए जिन किसानों की जमीन का सरकार ने अधिग्रहण किया था. उनकी समस्याओं का निराकरण आज तक नहीं हो पाया है. चाहे वह भाजपा की सरकार हो या वर्तमान में कांग्रेस की सरकार. जिन किसानों ने पावर प्लांट और कोयला खदानों के लिए अपने जमीनों की कुर्बानी दी. वह आज भी उचित मुआवजा, पुनर्वास और रोजगार जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं. नियमित अंतराल पर भू विस्थापित आंदोलन करते रहते हैं.

एल्युमिनियम पार्क की परिकल्पना आज भी अधूरी

देश में 3 प्रमुख एल्यूमीनियम उत्पादन इकाई हिंडालको, नाल्को और बालको में से वेदांता समूह की बालको कोरबा जिले में स्थापित है. सन 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने बालको का विनिवेश कर इसे निजी हाथों में सौंप दिया था. तब यह घोषणा की गई थी कि डाउनस्ट्रीम उद्योगों के लिए यहां एल्युमीनियम पार्क की स्थापना होगी, लेकिन यह परिकल्पना आज भी अधूरी है. कोरबा जिले में एल्युमिनियम पार्क की स्थापना आज भी नहीं हो सकी है, जो कि बेहद दुर्भाग्यजनक है.

पर्यटन की भी अपार संभावनाएं

मुख्य तौर पर कोयला और बिजली के लिए पहचाने जाने वाले कोरबा में पर्यटन की भी अपार संभावनाएं हैं. कुछ समय पहले पर्यटन स्थल सतरेंगा को अंतर्राष्ट्रीय टूरिस्ट स्पॉट बनाने की दिशा में काम शुरु हुआ है. ऐसे में जरूरत है तो इसे और भी वृहद स्तर पर अंजाम तक पहुंचाने की. सतरेंगा में क्रूज़ उतारने की बात प्रशासन भी कह चुका है. इसके साथ ही 32 छोटे द्वीप समूह में बंटा बुका में भी विस्तार की असीम संभावनाएं हैं.

एक नजर में कोरबा जिला

  • कोरबा का गठन 25 मई सन 1998
  • साक्षरता- 72.40%
  • लिंगानुपात- 969
  • जनसंख्या- 12 लाख 6 हजार 640
  • राजधानी रायपुर से दूरी 200 किलोमीटर
  • कुल क्षेत्रफल 7145.44 हेक्टेयर
  • 40 फ़ीसदी हिस्सा वन भूमि
  • कुल गांव- 792
  • कुल नगरीय निकाय- 05
  • जिला में औसत वर्षा 1506 मिमी
  • जीवनदायिनी हसदेव नदी का 233 किमी का फैलाव कोरबा में
  • जिले की 51.67 फ़ीसदी आबादी आदिवासी
  • कुल पुलिस थाना- 17
Last Updated : Oct 30, 2021, 9:40 PM IST

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