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SPECIAL: छत्तीसगढ़ का ऐसा टापू, जहां हसदेव नदी की गोद में खेती कर रहे 80 परिवार

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Published : Dec 5, 2020, 10:35 PM IST

कोरबा के डांड़पारा से होकर बहने वाली हसदेव नदी के पार बने एक टापू पर किसानों द्वारा खेती की जा रही हैं. मेहनत दोगुनी तब हो जाती है, जब धान की बालियां पक कर तैयार होती हैं. फसल को टापू से किनारे तक लाने में किसानों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. लेकिन यहां पर खेती किसानी के बारे में सुनकर हैरत होती है.

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टापू पर फसल उगाते किसान

कोरबा: डांड़पारा से होकर बहने वाली हसदेव नदी का डुबान क्षेत्र यहां के लघु और सीमांत किसानों के लिए प्रकृति का एक अनुपम उपहार है. आज से लगभग दो दशक पहले जीवनदायिनी हसदेव नदी ने इस गांव के किसानों को खेती के लिए जमीन उपहार में दी. आज जमीन के दोनों ओर से नदी बहती है.

टापू पर खेती के लिए जाते किसान

यहां के किसान नाव से नदी पार कर टापू पर पहुंचते हैं और वहां खेती करते हैं. मेहनत दोगुनी तब हो जाती है, जब धान की बालियां पक कर तैयार होती है. इस दौरान फसल काटकर किनारे लाने में किसानों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

नदी पार कर नांव के जरिए जाते हैं किसान

गांव में लगभग 80 परिवार हैं निवासरत

ETV भारत आज आपको एक ऐसी खबर से रूबरू करा रहा है. जिसके जरिए आप यह जान पाएंगे कि देश के मेहनतकश किसान कितनी विषमताओं और विपरीत परिस्थितियों का सामना कर अनाज उगाते हैं. इस गांव में लगभग 80 परिवार निवासरत हैं. ये सभी हसदेव नदी के बीच निर्मित टापू पर खेती करते हैं. इस टापू का निर्माण नियमित अंतरालों पर नदी में आने वाली बाढ़ से बहकर आई मिट्टी की वजह से होता है. इसके अलावा नदी का जलस्तर कम होने से भी नदी में इस टापू का निर्माण हुआ है.

टापू पर फसल उगाते माटीपुत्र

'टापू नहीं होता तो आर्थिक संकट से जूझना पड़ता'

यहां के किसानों से जब ईटीवी भारत की टीम ने बात की तो उन्होंने बताया कि उनके पास कोई जमीन नहीं है. वे कहते हैं कि अगर ये टापू नहीं होता तो उनके सामने आजीविका का संकट आ जाता. अच्छी बात ये है कि इस गांव के अधिकतर किसान पेशे से मछुआरे हैं. जिसकी वजह से सभी को नाव चलाने की कला विरासत में मिली है. खेती का सामान वह नाव के जरिए ही टापू तक लेकर जाते हैं और फसल उगाते हैं.

मेहनत दोगुनी, लेकिन मुनाफा नहीं

इस टापू को खेती में उपयोग करने के लिए किसानों को अच्छी-खासी मेहनत करनी पड़ती है. सालभर मेहनत कर इस टापू से वह इतना धान उगा लेते हैं. जिससे साल भर उन्हें अनाज की कमी न हो. सामान्य तौर पर धान उगाने वाले किसान सिर्फ खेती और इसकी कटाई तक ही मेहनत करते हैं. लेकिन इस गांव के किसान बताते हैं कि टापू पर खेती करना काफी मुश्किलों भरा होता है. कई बार धान का लोड ज्यादा होने के कारण नाव नदी में पलट जाती है. इसलिए किसानों को नपा-तुला धान ही लोड करना पड़ता है. ताकि बैलेंस बना रहे.

सरकार नहीं मुहैया करा रही मदद

टापू पर धान उगाकर भी यहां के किसान धान से किसी तरह का मुनाफा नहीं कमाते. वह केवल इतना ही धान पैदा कर पाते हैं, जिससे उनकी आजीविका चल जाए और उन्हें अनाज की कमी न हो. यहां के किसान बताते हैं कि सरकार की ओर से उन्हें कोई मदद मुहैया नहीं कराई जाती है.

अब सोचने वाली बात है कि एक तरफ देशभर में हो रहे किसान आंदोलन का राज्य सरकार सर्मथन कर रही है. वहीं अपने ही राज्य के किसानों की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. राष्ट्रीय नेताओं से लेकर जिला स्तर के अधिकारियों तक, सभी की बातों में किसानों का जिक्र होता है, लेकिन इन शोर-शराबों के बीच अगर कोई सबसे ज्यादा पिसता है तो वो हैं मिट्टी से जुड़े मेहनतकश किसान.

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