कोरबा:छत्तीसगढ़ सरकार (chhattisgarh government) गांवों में निजी अस्पताल (private hospitals in villages) खोलने की तैयारी में है. दावा है कि इस कदम से गांवों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकेंगी. प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल कैसा है, हेल्थ सेंटर कैसे काम कर रहे हैं ? डॉक्टर हैं या नहीं इसे लेकर ETV भारत ने पड़ताल की है. कोरबा जिले का हाल ऐसा है कि लोगों को छोटी-छोटी बीमारियों के लिए भी जिला अस्पताल का रुख करना पड़ता है. हालात यह है कि सर्दी, बुखार, पेट में दर्द और कमजोरी जैसी शिकायतों से ग्रसित मरीज सीधे जिला अस्पताल का रुख करते हैं.
मरीज और उनके परिजन कहते हैं कि गांव में किसी तरह की कोई सुविधा ही नहीं है. इसलिए मजबूरन 50, 60 किलोमीटर मुख्यालय तक का सफर तय करना पड़ता है. रामपुर क्षेत्र के युवक छोटे लाल यादव 60 किलोमीटर का फासला तय कर बुधवार रात मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचे. छोटे लाल ने बताया कि उसका भाई रात को करीब 8:00 बजे अचानक बेहोश हो गया. गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में इलाज की सुविधा (facility in primary health center) नहीं है. करतला जाने पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भी मरीज को भर्ती कर उचित इलाज नहीं मिलता. हालात यह हैं कि रात को डॉक्टर मिलते ही नहीं है. इलाज तो दूर की बात है. इस वजह से जिला अस्पताल आना मजबूरी हो जाता है. छोटे लाल ने बताया कि अगर वे रात को जिला हॉस्पिटल नहीं आते तो इलाज नहीं मिल पाता.
15 से 20 गांव पर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र
जिले में कुल 991 गांव हैं. इनमें से कई वनांचल और बीहड़ क्षेत्रों में हैं. हर 15 से 20 गांव में उचित स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना की गई है. यहां एमबीबीएस चिकित्सक के साथ ही आयुष और होम्योपैथी के चिकित्सक को भी मौजूद होना चाहिए, लेकिन अक्सर यहां स्वास्थ्य कर्मियों की कमी (shortage of health workers) बनी रहती है, ग्रामीण अंचल में पदस्थ स्वास्थ्य कर्मी अपना तबादला या अटैचमेंट शहर के स्वास्थ्य केंद्रों में करा लेते हैं. जिससे ग्रामीण अंचल के स्वास्थ्य केंद्रों में किसी भी तरह की कोई भी सुविधा ग्रामीणों को मिल नहीं पाती. वह मजबूरन शहर तक का सफर तय करते हैं. जो सक्षम होते हैं वह निजी तौर पर अपना इलाज कराते हैं. जो सक्षम नहीं होते वह जिला अस्पताल में आकर भर्ती हो जाते हैं.
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