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REALITY CHECK : वार्ड से गायब रहते हैं डॉक्टर, इंफेक्टेड होने पर ही एसएनसीयू में भर्ती होते हैं नवजात - KORBA NEWS

कोरबा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में हालांकि किसा बच्चे की मौत तो नहीं हुई है, लेकिन आलम यहां भी प्रदेश के अन्य अस्पतालों की तरह ही है. वार्ड में भर्ती नवजात के परिजन डॉक्टरों के आने का सुबह से इंतजार करते रहे, लेकिन शाम चार बजे तक डॉक्टर नहीं आए. इस कारण मरीज के परिजन काफी परेशान होते रहे.

The relatives of the patient standing waiting for the arrival of the doctor
डॉक्टर के आने के इंतजार में खड़े मरीज के परिजन

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Published : Oct 18, 2021, 7:56 PM IST

कोरबा :सरगुजा में बीते शनिवार को एसएनसीयू वार्ड में 7 नवजात शिशुओं की मौत (7 Newborns Die in SNCU Ward of Ambikapur) हो गई थी. इस बीच ईटीवी भारत की टीम ने कोरबा के मेडिकल कॉलेज अस्पताल (Korba Medical College Hospital) के शिशु चिकित्सा विशेषज्ञ विभाग की पड़ताल की. हालांकि सरगुजा की तरह हाल-फिलहाल में कोरबा के एसएनसीयू वार्ड में तो किसी नवजात की मौत नहीं हुई है. लेकिन कुछ अवस्थाएं जरूर बरकरार हैं. नवजात शिशु जो एसएनसीयू वार्ड में भर्ती हैं, उनके परिजन चिकित्सकों के समय पर नहीं पहुंचने से बेहद परेशान हैं. कुछ परिजन तो ऐसे मिले जो सुबह से ही डॉक्टर के इंतजार में बैठे थे.

निचले तबके के लोग ही पहुंचते हैं सरकारी अस्पताल

कोरबा का यह मेडिकल कॉलेज अस्पताल पूर्व में जिला अस्पताल की तरह ही संचालित होता रहा है. यहां आने वाले मरीज आमतौर पर बेहद निचले तबके के होते हैं. मध्यमवर्गीय या थोड़े से भी संपन्न लोग सरकारी अस्पताल आना नहीं चाहते. ऐसे में इस अस्पताल की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है, लेकिन जिम्मेदारी लेने वालों का यहां अभाव बना हुआ है. मेडिकल कॉलेज अस्पताल पर 5 ब्लॉक के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सहित उपनगरीय और वनांचल क्षेत्रों में संचालित 38 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का भी भार है.

कोरबा के मेडिकल कॉलेज अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में समय से नहीं आते डॉक्टर

मामले बिगड़ने के बाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल किया जाता है रेफर

जब इलाज के दौरान मामले बिगड़ते हैं, तब उन्हें मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ही रेफर किया जाता है. इस लिहाज से मेडिकल कॉलेज अस्पताल में औसतन 5 से 10 नवजातों को एसएनसीयू वार्ड में प्रतिदिन भर्ती किया जाता है. यहां प्रसूतियों की स्थिति भी ऐसी ही है. कई बार तो 24 घंटे के भीतर 12 से 15 डिलीवरी भी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हुए हैं. लेकिन गंभीर अवस्था में होने या इंफेक्शन फैलने पर ही प्रसव के बाद नवजात को एसएनसीयू वार्ड में भर्ती किया जाता है.

सुबह से ही डॉक्टर का इंतजार

पंप हाउस से सोमवार सुबह अस्पताल पहुंचे जसवंत डहरिया ने बताया कि मेरा बच्चा सातवें महीने में ही पैदा हो गया था. उसकी सेहत ठीक नहीं है, काफी कमजोर है. उसे दिखाने के लिए एसएनसीयू वार्ड आया हूं, लेकिन सुबह से ही डॉक्टर यहां नहीं पहुंचे हैं. शाम के करीब 4 बजने वाले हैं. सुबह से ही हम डॉक्टर का इंतजार कर रहे हैं, निजी चिकित्सकों के पास इलाज कराने की क्षमता हमारे पास नहीं है. इसलिए हम सरकारी अस्पताल आए हैं, लेकिन डॉक्टर अब तक पहुंचे ही नहीं हैं. इसलिए बच्चे के स्वास्थ्य की चिंता है.



प्रसूति विभाग के लिए अलग से ऑपरेशन थियेटर नहीं

किसी भी अस्पताल में सबसे ज्यादा मामले प्रसव के ही आते हैं. मेडिकल कॉलेज अस्पताल पर पूरे जिले का भार है, बावजूद इसके यहां के स्त्री रोग विभाग के पास अपना ऑपरेशन थियेटर भी नहीं है.
मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कॉमन ऑपरेशन थियेटर है, जहां कई तरह की सर्जरी की जाती है. जबकि चिकित्सक भी यह स्वीकार करते हैं कि स्त्री रोग विशेषज्ञ विभाग के पास खुद का अलग ऑपरेशन थियेटर होना चाहिए, जहां प्रसव संबंधी सिजेरियन या अन्य तरह के ऑपरेशन किये जा सकें. यह जरूरत तब और बढ़ जाती है, जब औसतन 7 से 10 प्रसव प्रतिदिन मेडिकल कॉलेज अस्पताल में होते हों.

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