कोरबा: कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited) की 8 कंपनियों में एसईसीएल सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण कंपनी है. एसईसीएल की 3 सबसे बड़े मेगा प्रोजेक्ट कोरबा के गेवरा, दीपका और कुसमुंडा में संचालित हैं. गेवरा कोल इंडिया बल्कि एशिया के सबसे बड़े ओपन कास्ट कोल माइन्स है. अकेले कोरबा से देशभर के लगभग 20% कोयले का उत्खनन होता है. जिससे देशभर की ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जाता है. अनेक पॉवर प्लांट चलते हैं. जिनसे घर-घर बिजली पहुंचाई जाती है. लेकिन जिन किसानों की जमीन का अधिग्रहण कर कोयला खदानों का संचालन शुरू किया जा रहा है. आज उनका जीवन स्तर क्या है? यह बड़ा सवाल है.
कुसमुंडा खदान (Kusmunda Mine) के प्रभावित किसान जिन्होंने 80 के दशक में अपनी जमीन एसईसीएल को दी थी. अब वह विस्थापित कहलाते हैं. सच्चाई यह है कि जिनके जमीनों का अधिग्रहण कर कीर्तिमान गढ़े गए. जिनके दम पर एसईसीएल को मेरठ में कंपनी होने का गौरव मिला. उन भूमिपुत्रों का जीवन अंधकारमय है. भू-स्थापित नौकरी, पुनर्वास और मुआवजे के लिए दशकों से संघर्ष कर रहे हैं. इस संघर्ष में उनकी जवानी कट चुकी है. पिता के बाद आप दूसरी पीढ़ी भी अधेड़ उम्र में पहुंचकर बुढ़ापे के करीब है. लेकिन शिकायतों और समस्याओं का समाधान तब भी नहीं हुआ है.
50 दिनों से चल रहा आंदोलन
एसईसीएल के रवैया से आक्रोशित और नाउम्मीद हो चुके भू विस्थापित, अब कुसमुंडा खदान के महाप्रबंधक कार्यालय के सामने धरने पर बैठे हैं. उन्हें थोड़ी बहुत कुछ उम्मीदें हैं वो बस इस धरना प्रदर्शन से हैं. तंबू लगाकर 12 गांव के ऐसे ग्रामीण जिनके जमीनों का अधिग्रहण कर कुसमुंडा कोयला खदान ने मूर्त रूप लिया था आज वह आंदोलन कर रहे हैं.
आंदोलन करने वालों में अधिगृहित गांव खम्हरिया, जरहाजेल, दुरपा, बरपाली, दुल्लापुर, जटराज सोनपुरी, मनगांव, बरमपुर बरकुटा, भैंसाखार और गेवरा के भू विस्थापित ग्रामीण शामिल हैं. इन सभी की जमीनों का अधिग्रहण 80 के दशक में हुआ था. लेकिन समस्याओं का समाधान 30 साल बाद आज भी नहीं हो पाया है. जिन नियमों का हवाला देकर तब जमीन अधिग्रहित किए गए थे. उन नियमों का पालन आज तक नहीं होने का आरोप विस्थापित, एसईसीएल प्रबंधन पर दशकों से लगाते आ रहे हैं.
- केस- 1
राज्य सरकार कहती है अधिग्रहण हुआ, एसईसीएल ने कहा हमने नहीं ली जमीन
जरहाजेल गांव के दामोदर श्यामसिंह कहते हैं कि राज्य सरकार ने मुझे लिखित में दिया था कि आपकी जमीन का अधिग्रहण हुआ है. एसईसीएल ने 1983 में किया था. लेकिन एसईसीएल ने जवाब दिया है कि आपकी जमीन का अधिग्रहण किया ही नहीं गया है. जबकि जरहाजेल गांव का अस्तित्व समाप्त हो चुका है. वहां पर एसईसीएल की कुसमुंडा खदान है. जहां से कोयले का उत्खनन होता है. हमारी लड़ाई सन 1983 से ही चल रही है. परिवार में 10 सदस्य हैं. किसी तरह गुजर बसर हो रहा है. कहते हैं कि उनकी उम्र 36 वर्ष हो चुकी है. लेकिन संघर्ष समाप्त नहीं हो रहा है. दामोदर का आरोप है कि जमीन खदान में चले जाने के बाद इतने सालों में न तो उन्हें नौकरी मिली ना ही किसी तरह का मुआवजा या पुनर्वास की व्यवस्था की गई है.
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