कोरबा :राजधानी रायपुर में भारत-न्यूजीलैंड का अंतरराष्ट्रीय मैच हुआ. पहला अवसर है जब छत्तीसगढ़ ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच की मेजबानी की है. प्रदेश में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों ने अपने खेल का जौहर दिखाया. जबकि दूसरी तस्वीर इसके उलट है. प्रदेश की ऊर्जाधानी के नाम से मशहूर कोरबा के क्रिकेट खिलाड़ियों सुविधाएं तो छोड़िए टर्फ विकेट भी नसीब नहीं हो रहा है. विश्वविद्यालय स्तर की प्रतियोगिताओं के लिए भी जिले के खिलाड़ी मैट बिछाकर किसी तरह क्रिकेट खेलते हैं. जबकि आगे के स्तर पर क्रिकेटर टर्फ विकेट पर खेले जाते हैं, लेकिन जिले में टर्फ विकेट मौजूद ही नहीं है.
प्रयास हुए लेकिन वो भी अधूरे : कोरबाके अग्रणी महाविद्यालय में पहले विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और फिर खनिज न्यास से टर्फ विकेट बनाने के प्रयास हुए. लेकिन ठेकेदारों ने काम अधूरा छोड़ दिया. पीडब्ल्यूडी और आरईएस दोनों ही विभागों से मैदान और मैदान के बाहर प्रेक्टिस पिच बनाने की शुरुआत हुई, लाखों के फंड में स्वीकृत हुए. लेकिन बात नहीं बनी. जिले के किसी भी मैदान में फिलहाल उच्च स्तरीय टर्फ विकेट मौजूद नहीं है.
केडीसीए के पास नहीं है खुद का मैदान : छत्तीसगढ़ को रणजी की मान्यता मिलने के बाद रायपुर के अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में कई मैच हुए. राज्य में भी क्रिकेट की पूछ परख बढ़ी है. लेकिन जिला स्तर पर उस तरह के प्रयास नहीं हुए, जैसे होने चाहिए. कोरबा डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन(KDCA) की संबद्धता भी छत्तीसगढ़ राज्य क्रिकेट संघ(CSCS) से है. जो कि बीसीसीआई से सम्बद्ध है. केडीसीए के सदस्य जीत सिंह कहते हैं कि "फिलहाल हमारे पास जिले में खुद का मैदान ही नहीं है. हम अपने मैदान के लिए लंबे समय से प्रयासरत हैं, जब कभी हमें मैच आयोजन की जिम्मेदारी मिलती है, तब हम सार्वजनिक उपक्रमों के मैदान अधिकारियों से निवेदन कर प्राप्त करते हैं. वहां किसी तरह आयोजन करवाते हैं. जब हमारे पास खुद का मैदान उपलब्ध होगा. तब निश्चित तौर पर उसमें हम बेहतर सुविधा देकर टर्फ पिच भी तैयार करेंगे".