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कोल बेयरिंग एक्ट में संशोधन का विरोध शुरू, मजदूर संगठनों ने सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा

कोयला धारक क्षेत्र संशोधन विधेयक 2021 द्वारा CBA एक्ट 1957 को पुन संशोधित हो रहा है. श्रम कानूनों को चार कोड में लाया गया है. लोकसभा- राज्यसभा से पारित होने के बाद इसे कानून का दर्जा मिल जाएगा. लेकिन मजदूरों के अधिकार की मांग करने वाले संगठन इस बिल का विरोध कर रहे हैं.

CITU activists protested
कोल बेयरिंग एक्ट में संशोधन का विरोध शुरू

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Published : Aug 4, 2021, 4:46 PM IST

कोरबा: केंद्र सरकार ने मानसून सत्र में कोयला धारक क्षेत्र (अर्जन और विकास) संशोधन विधेयक 2021 के द्वारा CBA एक्ट 1957 को पुन संशोधित करने जा रही है. श्रम कानूनों को चार कोड (आचार संहिता) में लाया गया है. लोकसभा और राज्यसभा से पारित होने के बाद इसे कानून का दर्जा मिल जाएगा.

लेकिन अब मजदूरों से जुड़े संगठन इस बिल का विरोध कर रहे हैं. कोरबा में भी इसका विरोध हो रहा है. श्रमिक इससे मजदूर विरोधी कानून बता रहे हैं, तो एक्टिविस्ट कह रहे हैं कि कोल बेयरिंग एक्ट में संशोधन होते ही आदिवासियों की भूमि का अधिग्रहण आसान काम हो जाएगा. जिससे निजी कंपनियों को सौंपने में कोई अड़चन तब नहीं आएगी.

बांकीमोंगरा क्षेत्र में प्रदर्शन

केंद्र द्वारा लाये जा रहे इस बिल के खिलाफ सुराकछार एसईसीएल खदान के सामने सीटू कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन कर विरोध किया. सीटू नेताओं ने बताया कि कोल बेयरिंग एक्ट में संशोधन करने का उद्देश्य कमर्शियल माइनिंग के तहत आने वाली कोयला खानो को सरकार स्वयं कोयला खनन के लिए जमीन अधिग्रहण कर निजी मालिकों को दे सकेगी. लेबर कोड में परिवर्तन कर छोटे बड़े 63 श्रम कानूनों को चार कोड (अचार संहिता) में ले आई है. यह सभी लेबर कोड मजदूर विरोधी हैं और नियोक्ता और प्रबंधन के पक्ष में हैं.

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निजी कंपनियों को मिलेगा 'लाभ'

आदिवासियों के अधिकार और उनकी भूमि अधिग्रहण के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले एक्टिविस्ट मानते हैं कि निजी कंपनियों को नीलामी प्रक्रिया से आवंटित कोल ब्लॉक में खनन प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाने न सिर्फ स्वीकृति प्रकियाओं को आसान किया जा रहा है. बल्कि ग्रामसभाओं को दरकिनार कर समुदाय की असहमति को दबाने कोयला धारक क्षेत्र (अर्जन और विकास) अधिनियम 1957 में को भी संशोधित किया जा रहा है.

मोदी सरकार सीबीए 1957 के संशोधनों का मसौदा संसद के इसी सत्र में प्रस्तुत करने जा रही है. जिसका सदन में पास होना हजारों आदिवासी, किसानों से उनके जंगल जमीन छीनने की प्रक्रिया को और तेज करेगा.

इन प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार इस कानून से अब निजी कंपनियों को भी जमीन लीज पर दी जाएगी. जोकि पूर्व में सिर्फ शासकीय कंपनी या कोल इंडिया तक ही सीमित था. इसके अलावा खनन के नाम पर आधारभूत संरचना जैसे सड़क और रेल लाइन के लिए भी पूर्व अधिग्रहित जमीनों का इस्तेमाल किया जा सकेगा.

कोल बेयरिंग एक्ट के तहत जमीन अधिग्रहण के खिलाफ छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र सहित कोरबा, सरगुजा, रायगढ़ आदि क्षेत्रों के ग्रामीण लगातार आंदोलनरत हैं. कई मामले न्यायालय में भी लंबित हैं. कोल बेयरिंग एक्ट से जमीन अधिग्रहण के मामलों में पांचवीं अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं से अनिवार्य परामर्श की प्रक्रिया नहीं अपनाई जा रही हैं.

लगातार यह दलील दी जा रही है कि कोल बेयरिंग एक्ट में पेसा कानून लागू नहीं होता है. यदि कानून में वर्तमान प्रस्तावित संशोधन लागू कर दिए गए तो पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों और उन्हें प्राप्त संवैधानिक और कानूनी अधिकारों का कोई मतलब ही नहीं रह जायेगा.

देश भर में विरोध- प्रदर्शन

मजदूर विरोधी कोल बेयरिंग एक्ट में संशोधन के खिलाफ पूरे देश में तीन दिवसीय विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है. सुराकछार एसईसीएल गेट के सामने सीटू कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी कर विरोध प्रदर्शन किया. प्रदर्शन में मुख्य रूप से जनकदास, लंबोदर दास, रामचरण चंद्रा, इंद्र कुमार, फेकू, छोटेलाल चंद्रा, मोहन, साधु, जोहान, राजू, रमेश कुमार सिंह, ललित घासी, अशोक बुधराम, रमेश राठौड़ उपस्थित थे.

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