कोरबा: छत्तीसगढ़ के सरकारी मिडिल और प्राइमरी स्कूलों में मिड डे मील की व्यवस्था चरमरा गई है. एक तरफ बच्चों को देने वाले आहार के लिए पैसे नहीं आ रहे हैं तो दूसरी तरफ बच्चों को खाना बना कर देने वाले समूहों और रसोइयों को भी 4 महीने से मानदेय नहीं मिला है. इससे ग्रामीण क्षेत्र में कई स्कूलों में मिड डे मील नहीं मिलने की सूचना है. जिन स्कूलों में बच्चों को मिड डे मील दिया जा रहा है वहां या प्रधान पाठक अपने जेब से पैसे लग रहे हैं या फिर महिला स्व सहायता समूह की महिलाएं दुकानों से उधार सामान लेकर बच्चों के लिए स्कूल में खाना बना रही है.
सूत्रों की माने तो केंद्र सरकार से ही भुगतान जारी नहीं हुआ है. इसके कारण समूहों को पैसे जारी नहीं हुए हैं. समूह के अधीन काम करने वाले रसोइयों को मानदेय के रूप में हर महीने 1500 रुपये दिए जाते हैं. लेकिन बताया जा रहा है कि पिछले कुछ महीनों से वो पैसे भी नहीं दिए गए हैं. जिसके कारण कुछ स्कूलों में सिर्फ दाल, चावल, अचार या चावल और सब्जी देकर बच्चों को मिड डे मील खिलाया जा रहा है.भुगतान जारी नहीं होने के पीछे कारण चाहे जो भी हो, फिलहाल स्कूलों में मिड डे मील की हालत बेहद चिंताजनक है.
महंगाई के दौर में ₹8 और ₹5 प्रति छात्र :महंगाई के इस दौर में मिड डे मील का मैनू बना हुआ है. जिसके अनुसार मिड डे मील में समूह के द्वारा बच्चों को दाल, चावल, हरी सब्जी, सलाद, पापड़ और अचार देने का नियम है. हर दिन का अलग अलग मैनू तय है. लेकिन इसके लिए प्रति छात्र के हिसाब से जो राशि मिलती है वह इस महंगाई के दौर में काफी कम है. मिडिल स्कूल में प्रति छात्र 8.17 रुपये और प्राइमरी में 5.67 रुपये प्रतिदिन प्रति छात्र के हिसाब से मिलती हैं. अब यह भुगतान भी महीने से रुका हुआ है. भुगतान नहीं होने के कारण बच्चों को चावल और आलू और सोया बड़ी की सब्जी दी जा रही है. लेकिन सब्जी के नाम पर वो भी मजाक ही है.
उधार मांग कर चला रहे व्यवस्था :प्राथमिक स्कूल दादर खुर्द में मिड डे मील की व्यवस्था संभालने वाली महिला सहायता समूह की सदस्य फूलबती बेहद नाराज दिखीं. फूलबती का कहना है कि पिछले 4 महीने से हमें भुगतान नहीं दिया गया है. चावल दाल तक खरीदने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं. दुकानदार से उधार मांगकर किसी तरह व्यवस्था चल रहे हैं. अब दुकानदार भी हमें ताने दे रहा है. घर से पैसे लगाने पड़ रहे हैं. जिससे आर्थिक तंगी है. काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
कोई पार्षद देखने भी नहीं आते हैं. दुकान से हम सामान खरीद कर बना रहे हैं -फूलबती, सदस्य, महिला सहायता समूह