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कोरबा के जंगलों में मौजूद है 5 करोड़ साल पुराना ये पौधा, विशेषज्ञ भी हैरान - वनस्पति

वन संपदाओं से भरपूर कोरबा जिले के जंगलों में एक दुर्लभ प्रजाति का पौधा पाया गया है. ये पौधा करोड़ों साल पुराना बताया जा रहा है. विज्ञान सभा की टीम के सर्वे के दौरान ये पौधा पाया गया है.

5 crore year old plant in the forests of Korba
कोरबा में लाइकोपोडियम का पौधा

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Published : Feb 16, 2020, 2:29 PM IST

Updated : Feb 16, 2020, 4:26 PM IST

कोरबा: धरती पर 5 करोड़ साल पहले पाए जाने वाले लाइकोपोडियम पौधे की प्रजाति कोरबा के जंगलों में मिली है. छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा की टीम ने कोरबा वन मंडल के केसला के जंगलों में शनिवार को लगभग 8 किलोमीटर की ट्रैकिंग की. इस दौरान जैव विविधता से भरे कोरबा के जंगलों में कई औषधीय पौधों की नस्लें मिलीं. जिन्हें देख विज्ञान सभा के सदस्य भी अचरज में पड़ गए.

कोरबा के जंगलों में लाइकोपोडियम का पौधा

विशेषज्ञों का कहना है कि कोरबा के जंगल अब भी अनछुए हैं. जहां जैव विविधता की भरमार है. यहां कई ऐसे नायाब पौधों की नस्ल अब भी मौजूद है, जिनकी उत्पत्ति करोड़ों साल पहले हुई थी.

दुर्लभ है ये पौधा

केसला के जंगलों में जैव विविधता पर आधारित खोज और ट्रैकिंग के दौरान छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा के स्टेट हेड डॉक्टर एमएल नायक खासतौर पर पहुंचे हुए थे. जो कि यह देखकर हैरान थे कि कोरबा के जंगलों में ऐसी कौन सी बात है, जिसके कारण यहां करोड़ों साल पुराने पौधे अब भी जीवित हैं. ये पूरे देश में बेहद कम जगहों पर ही पाए जाते हैं.

वन संपदाओं की खोज

जैव विविधता से संपन्न कोरबा के जंगल

डॉ. नायक कहते हैं कि 'सृष्टि के निर्माण के समय से ही जीव-जंतु और वनस्पतियों के पनपने के बाद धरती पर किसी भी जीवित जीव की अधिकतम अवधि 40 लाख साल तक हो सकती है.' डॉ. नायक ने कहा कि 'कोरबा में हमें लाइकोपोडियम नाम का एक पौधा मिला है. जो की 5 करोड़ साल पुराना है. यह इस बात का प्रमाण है कि कोरबा के जंगलों के जैव विविधता कितनी संपन्न है.'

ट्रैकिंग पर पहुंची टीम

बारीक अध्ययन की जरूरत: विशेषज्ञ

विशेषज्ञों का कहना है कि प्रकृति को और गहनता से समझना होगा. जंगलों के बेहद सूक्ष्म अध्ययन की जरूरत है. लेकिन आज के समय में प्रकृति को बचाना भी सबसे बड़ी चुनौती बन गई है. विकास की परिभाषा को भी समझना होगा. विलुप्ति के कगार पर खड़े पौधों को बचाने के लिए प्रकृति और पर्यावरण में पेड़-पौधे, छोटे-छोटे जीव, पशु-पक्षियों का अस्तित्व खतरे में है. पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है. जिससे कि जैव विविधता को सुरक्षित रखा जा सके.

विशेषज्ञ रहे मौजूद

सर्वे में एंथ्रोपोलॉजिस्ट प्रोफेसर अशोक प्रधान, जियोलॉजिस्ट प्रोफेसर निनाद बोधनकर, एनवायरमेंटलिस्ट वाईके सोना, बायोलॉजिस्ट प्रोफेसर निधि सिंह, हरपैथोलॉजिस्ट अविनाश यादव, ऑरनेटोलॉजिस्ट डिक्सन मसीह, बॉटनिस्ट और शिक्षाविद् प्रोफेसर अरविंद गिरोलकर सहित अन्य सदस्य मौजूद रहे.

Last Updated : Feb 16, 2020, 4:26 PM IST

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