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विश्वविद्यालय प्रबंधन पर छात्र नेता का आरोप, जनरल प्रमोशन के बावजूद कोरबा के 40 फीसदी छात्र फेल - छात्र-छात्राओं की परीक्षाएं स्थगित

कोरोना संक्रमण काल में जनरल प्रमोशन देने के बावजूद कोरबा के 40 फीसदी छात्र फेल हो गए हैं. जिसे लेकर अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर छात्र सवाल उठने लगे हैं. छात्र-छात्राओं की परीक्षाएं स्थगित होने पर जनरल प्रमोशन की घोषणा की गई थी, जिसमें भी विश्वविद्यालय के 40 फीसदी छात्र फेल हो गये हैं, जिसे लेकर अब एनएसयूआई ने विश्वविद्यालय के खिलाफ आंदोलन की चेतावनी दी है.

40 percent students fail
कोरबा के 40 फीसदी छात्र फेल

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Published : Oct 3, 2020, 5:35 PM IST

Updated : Oct 3, 2020, 7:29 PM IST

कोरबा:कोरोना संक्रमण काल में जनरल प्रमोशन दिए जाने की घोषणा के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय ने छात्रों को फेल और पूरक घोषित किया है. पहले और दूसरे साल के नियमित छात्र कोरोना दौर में विपरीत परिस्थितियों के कारण वार्षिक परीक्षा नहीं दे सके थे. सरकार ने घोषणा की थी कि छात्रों को बिना परीक्षा दिए ही अगली कक्षा में भेज दिया जाएगा. उन्हें जनरल प्रमोशन दिया जाएगा. उनसे किसी भी तरह की परीक्षा नहीं ली जाएगी. ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि जनरल प्रमोशन की घोषणा के बाद भी विश्वविद्यालय को इस तरह के नियम बनाने की जरूरत ही क्यों पड़ी? जिससे कि छात्रों को किसी भी सूरत में फेल या पूरक घोषित किया जा सके. जबकी छात्र परीक्षा दे ही नहीं रहे हैं.

जनरल प्रमोशन में भी बढ़ी छात्रों की मुश्किलें

जनरल प्रमोशन की घोषणा के बाद छात्र पूरी तरह से आश्वस्त थे. उन्हें लगा था कि अब वे सभी अगली कक्षा में पहुंच जाएंगे. उनका साल खराब नहीं होगा, लेकिन विश्वविद्यालय के वार्षिक परीक्षा परिणाम जारी होते ही छात्रों के पैरों तले जमीन खिसक गई. छात्र नेताओं की मानें तो अकेले कोरबा जिले के पहले और दूसरे साल के 40% छात्रों को फेल और पूरक घोषित किया गया है.

छात्रों में आक्रोश

अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय के जारी परिणाम के बाद से छात्रों में गुस्सा है. छात्र बेहद आक्रोशित हैं. सीधे-सीधे कॉलेज के प्राध्यापकों और विश्वविद्यालय पर जानबूझकर उनके भविष्य से खिलवाड़ करने का आरोप लगा रहे हैं. छात्रों का सीधा सा सवाल है कि जब जनरल प्रमोशन दिया जाना है, तब एक भी छात्र को फेल क्यों किया गया है? इसके लिए उल जुलूल नियम क्यों बनाए गए? जिससे कि किसी भी छात्र के फेल किया जा सके.

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रिजल्ट में बताया गया अनुपस्थित
स्नातक प्रथम और द्वितीय साल के नियमित छात्र-छात्राओं की परीक्षाएं स्थगित करनी पड़ी थी. केवल एक ही विषय की परीक्षा हुई थी. जिसके बाद पूर्ण लॉकडाउन लागू हो गया था. कई छात्र ऐसे थे जो कि आकस्मिक कारणों से अध्ययनरत कॉलेज में प्रायोगिक तिथि पर भी उपस्थित नहीं हो पाए थे. ऐसे छात्रों ने अटल बिहारी वाजपेयी यूनिवर्सिटी से शुल्क अनुमति लेकर दूसरे कॉलेज में संबंधित विषय की प्रायोगिक परीक्षा दिलाई थी. इसके लिए यूनिवर्सिटी को 350 रुपए का शुल्क देकर अनुमति प्राप्त किया था. लेकिन परीक्षा परिणाम जारी होते ही उनके रिजल्ट में प्रायोगिक परीक्षा के अंक दर्शाए जाने के स्थान पर उन्हें अनुपस्थित बता दिया गया है.

इन नियमों के तहत परिणाम घोषित

जनरल प्रमोशन की घोषणा के बाद भी यूनिवर्सिटी ने छात्रों को फेल-पास करने के लिए एक नियम बनाया है. जिसमें स्नातक प्रथम वर्ष की कक्षाओं के परीक्षा परिणाम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिशा-निर्देश के अनुसार महाविद्यालय के आयोजित आंतरिक परीक्षा में प्राप्त 10% अंकों को 100% में परिवर्तित कर छात्रों को आवंटित किए गए हैं. जिन विषयों की परीक्षा आयोजित हुई थी. उसमें के प्राप्तांक यथावत लिए गए हैं.

इसी तरह द्वितीय वर्ष के लिए महाविद्यालयों के आयोजित आंतरिक परीक्षा के 10% अंकों को 50% अंकों में परिवर्तित किया गया है. इसके अलावा गत वर्ष की परीक्षा में प्राप्त अंकों के 50% अंक को शामिल करते हुए परीक्षा परिणाम तैयार किए गए हैं. इस नियम के अनुसार आंतरिक परीक्षाओं के अंकों के आधार पर छात्रों के परीक्षा परिणाम तय किए गए हैं. कई छात्रों को आंतरिक परीक्षा में शून्य, 1 या 2 नंबर जैसे बेहद कम अंक दिए गए हैं.

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क्या है छात्रों का तर्क?

बीसीए प्रथम वर्ष के छात्र ओमप्रकाश का कहना है कि एक तरफ विश्वविद्यालय अंतिम वर्ष के प्राइवेट छात्रों को भी घर बैठकर परीक्षा देने की अनुमति दे रही है, उन्हें घर पर ही उत्तर लिखकर परीक्षाएं देने को कहा जा रहा है. दूसरी ओर हम जैसे नियमित कॉलेज आने वाले छात्रों को इंटरनल मार्क्स के नाम पर फेल कर दिया गया है. यदि नियम बनाना ही है तो हमारी फिर से इंटरनल परीक्षाएं ली जाए. जो इंटरनल परीक्षा हुई थी. उसमें भी मुझे शून्य अंक दिया गया है.

निशा यादव कहती है कि 12वीं में मुझे 65 फीसदी अंक मिले थे. फर्स्ट डिवीजन से पास हुई थी. अब कॉलेज आते ही फर्स्ट ईयर में मुझे फेल दर्शाया गया है. हम इंटरनल परीक्षाओं पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते थे. वार्षिक परीक्षा के भरोसे ही रहते हैं. इस लिहाज से हमें फेल किया जाना ठीक नहीं है.

इसी तरह प्रथम वर्ष के छात्र शनि कहते हैं कि इंटरनल परीक्षा में मुझे दो या तीन नंबर दिए गए हैं. इस संबंध में जब विषय शिक्षिका से बात की तब उन्होंने कहा कि आपके रवैए के कारण ऐसा किया गया है. अब जब जनरल प्रमोशन दिया जाना है तो रवैया बीच में कहां से आ गया? जनरल प्रमोशन का मतलब यह हुआ कि सीधे-सीधे अगली कक्षा में प्रमोट किया जाना है. यूनिवर्सिटी नियम बनाकर हमारा भविष्य बर्बाद कर रही है. इसके लिए शिक्षक भी उतने ही दोषी हैं.

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विश्वविद्यालय से कोई निर्देश नहीं

लीड कॉलेज के प्राचार्य आरके सक्सेना का कहना है कि यूजीसी और विश्वविद्यालय के बनाए गए नियमों के आधार पर ही छात्रों को इंटरनल मार्क्स आवंटित किए गए हैं. जिसके आधार पर परीक्षा परिणाम जारी हुआ है. शिक्षकों के कम अंक दिए जाने की शिकायत पर सक्सेना का कहना है कि छात्रों से लिखित में आवेदन मांगा गया है. उसकी भी जांच करेंगे. छात्रों के आरोप के आधार पर उनके उत्तर पुस्तिकाओं को फिर से खुलवाया जाएगा. अन्य शिक्षकों से भी जांच कराएंगे. लेकिन फेल या सप्लीमेंट्री किए गए छात्रों के विषय में फिलहाल विश्वविद्यालय से कोई निर्देश नहीं मिले हैं.

आंदोलन की चेतावनी

एनएसयूआई के जिलाध्यक्ष मसूद हसन का कहना है कि विश्वविद्यालय ने नियम बनाकर अकेले कोरबा जिले के 40 फीसदी छात्रों को फेल कर दिया है. इंटरनल मार्क्स के नाम पर छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है. हम यूनिवर्सिटी से मांग करते हैं कि फेल किए गए छात्रों को तत्काल वापस पास किया जाता है तो बड़े आंदोलन किए जाएंगे.

Last Updated : Oct 3, 2020, 7:29 PM IST

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