छत्तीसगढ़

chhattisgarh

ETV Bharat / state

यहां के पत्थरों में भी बसा है बुजुर्गों का आशीर्वाद

केशकाल-जगदलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग से 5 किलोमीटर दूर एक गांव है. जहां के लोग गांव के बुजुर्गों की मौत के बाद पत्थर में उनकी आत्मा का बास समझ पत्थरों को ही पूजते हैं. मान्यता है कि ये पत्थर उनकी गांव की रक्षा करती है.

By

Published : Feb 7, 2020, 3:26 PM IST

Updated : Feb 7, 2020, 3:34 PM IST

special story of tribal civilization
डिजाइन इमेज

कोंडागांव: केशकाल-जगदलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग से 5 किलोमीटर दूर स्थित आंवरी गांव अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है. इस गांव के लोग काती डोकरा और डोकरी नाम के दो लोगों को गांव का भगवान मान उनके नाम से पत्थर रख उनकी पूजा करते हैं.

आदिवासी सभ्यता की धरोहर ग्राम आंवरी

ग्रामीण गांव के अंदर ही आंगा देव की मूर्ति को स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं. गांव के लोग बताते हैं, गांव में किसी बुजुर्ग की मौत हो जाती है और अगर उन्होंने गांव के लिए कोई परोपकार का काम किया होता है, तो गांव के लोग उनकी मंदिर के सामने पत्थर के रूप में उन्हें स्थापित कर उनकी पूजा करते हैं. इससे गांव की साभी परेशानियां दूर हो जाती है.

हथियारों की होती है पूजा

पुरातत्व विभाग के प्रदेश सचिव बताते हैं कि करीब 80 साल पहले काती डोकरा और तालून डोकरी के नाम से दो लोग इस गांव में आए थे और यहीं बस गए थे. धीरे-धारे यहां उनका परिवार बसता गया. इस गांव को बसाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है. गांव के लोग बताते हैं कि वे अपने बुजुर्गों के साथ उनके हथियारों की भी पूजा करते हैं. इसके पीछे उनकी मान्यता है कि वहां से अगर कोई हथियार गायब हो जाती है तो वे कुछ दिनों में खुद वापस आ जाती है या किसी दूसरे गांव के मंदिर में दिखाई देने लगती है. गांव के लोगों ने बताया की गांव में हर साल नवा खाई के दिन टिलों पर रखे औजारों के पूजा-अर्चना करते है.

टीले पर आज भी मौजूद है हथियार
ग्रामीण बताते हैं, पहले यहां पर लोहे के औजारों के साथ ही लोहे के हाथी घोड़े भी थे जो कि गंगरेल में विराजमान अंगार मोती माता के मेले में जाने के बाद नहीं लौटे. उन्होंने बताया कि इस टीले पर अब भी आठ हथियार त्रिशूल, भाला, धान की बाली, धारदार चाकू आदि औजार रखे हुए हैं.

Last Updated : Feb 7, 2020, 3:34 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details