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SPECIAL: नक्सली गलियारे के अंधियारे में 'जादुई चिराग' का उजियारा, रोशन होगा नक्सलगढ़ का कुम्हारपारा

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Published : Nov 2, 2020, 12:28 PM IST

Updated : Nov 8, 2020, 8:42 AM IST

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कोंडागांव में एक ऐसे मिट्टी के जादूगर रहते हैं, जो अपनी कला से बेजान माटी को जीवंत बना देते हैं. कुम्हार अशोक चक्रधारी ने देश-दुनिया में अपनी अलग ही पहचान बनाई है. इस बार अशोक चक्रधारी ने एक ऐसा अनोखा दीया बनाया है, जिसकी आकर्षक बनावट और खूबियां आज चर्चा का विषय बनी हुई है. मिट्टी के दीये में ऐसी ऑटोमैटिक व्यवस्था से हर कोई हैरान है. पढ़िए 'जादुई चिराग' की कहानी...

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नक्सली गलियारे के अंधियारे में 'जादुई चिराग' का उजियारा

कोंडागांव: दिवाली का त्योहार नजदीक है. दिवाली यानी दीयों का त्योहार. इस त्योहार में मिट्टी के दीयों की काफी डिमांड रहती है. चाहे कितने भी इलेक्ट्रॉनिक और चाइनीज आइटम्स मार्केट में आ जाएं, लेकिन जो महत्व मिट्टी के दीयों का है, वो किसी भी अन्य चीजों का नहीं. श्रीगणेश-लक्ष्मी की पूजा भी मिट्टी के दीयों से ही की जाती है. धुर नक्सल प्रभावित कोंडागांव में कुम्हार अशोक चक्रधारी ने इस बार मिट्टी का अनोखा दीया बनाकर लोगों को चकित कर दिया है.

रोशन होगा नक्सलगढ़ का कुम्हारपारा

नेशनल मेरिट से सम्मानित इस कुम्हार ने एक ऐसा दीपक तैयार किया है, जिसमें तेल दीये में खत्म होने के बाद खुद-ब-खुद भर जाता है, ये लोगों के लिए किसी 'जादुई दीए' से कम नहीं है. अशोक की कला के कायल देश-विदेश तक लोग हैं. उनके हाथों में ऐसा जादू है कि वे बेजान मिट्टी को भी जीवंत कर देते हैं. कोंडागांव को शिल्पग्राम भी कहा जाता है. यहां से निकले कई कुम्हार और शिल्पकार देश-दुनिया में जिले का नाम रोशन कर रहे हैं. अशोक चक्रधारी कोंडागांव के कुम्हारपारा में रहते हैं. इन्होंने ऐसा दीया बनाया है, जिसका गुंबद तेल से भरा होता है. जैसे ही दीये में तेल खत्म होता है, गुंबद से तेल रिसकर दीए को भर देता है और दीये के भरते ही तेल का रिसना भी अपने आप बंद हो जाता है. मिट्टी के दीये में ऐसी ऑटोमैटिक व्यवस्था से हर कोई हैरान है. अपने इसी गुण की वजह से ये दीया एक बार तेल भर देने के बाद 24 से 40 घंटे तक लगातार जल सकता है.

झिटकु-मिटकी के नाम से खोला कला केंद्र

दीया बनाते हुए अशोक चक्रधारी

कोंडागांव के शिल्पग्राम कुम्हरपारा में यूं तो कई शिल्पकार रहते हैं, लेकिन यहां रहने वाले अशोक चक्रधारी की अपनी एक अलग खास पहचान है. बस्तर के पारंपरिक शिल्प झिटकु-मिटकी के नाम से उन्होंने एक कला केंद्र घर पर ही स्थापित किया है. पिछले दिनों मिट्टी की इनकी कलाकारी से प्रभावित होकर केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय ने इन्हें मेरिट प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया था.

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प्रदर्शनी से प्रेरित होकर दीए का किया निर्माण

अशोक कच्ची मिट्टी को आकार देकर जीवंत मूर्तियां तैयार करते हैं. मिट्टी की मूर्तियां, दैनिक उपयोग की वस्तुएं, सजावटी सामान का निर्माण करते हुए वर्षों से वे क्षेत्र के लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करा रहे हैं. अशोक ने बताया कि 35 साल पहले मध्य प्रदेश के भोपाल में प्रदर्शनी के दौरान एक शिल्पकार ने प्रदर्शनी में ऐसा ही कुछ दीया बनाकर रखा था, जिसे उन्होंने केवल एक नजर देखा था और उसी से प्रेरित होकर उन्होंने इस दीए को बनाया.

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कुम्हारों की स्थिति दिन-प्रतिदिन हो रही खराब

कोंडागांव में 100 'जादुई दीयों' का निर्माण

उन्होंने बताया कि कुम्हारों की स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है. वर्तमान में मार्केट में बने रहने और प्रतिस्पर्धा के बीच अपनी पहचान बनाने के लिए कुम्हारों को भी अलग-अलग तरह की चीजें बनाते रहना चाहिए. इसी कारण उन्होंने इस दीवाली कुछ नया करने की चाहत से इस जादुई दीए को बनाया और अब ये बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध है. इससे उन्हें काफी अच्छा प्रतिसाद भी मिल रहा है.

माटी के दीए के ऊपर गुंबद में तेल भरा जाता है

कोंडागांव के शिल्पग्राम कुम्हारपारा की कहानी

उन्होंने कहा कि माटी के दीए के ऊपर गुंबद में तेल भरकर उस पर पलटकर रख दिया जाता है. इस गुंबद की टोंटी में से तेल रिसता है. जैसे ही दीया भर जाता है, उस रास्ते से तेल जाना बंद हो जाता है. जब दीए का तेल कम होने लगता है, तो ऊपर गुंबद के टोंटी में हवा के लिए रास्ता बनता है. दोबारा टोंटी का तेल बूंद-बूंद करके दीया में आना शुरू हो जाता है. यह दीया लगातार 24 से 40 घंटे तक जल सकता है.

अभी लगभग 100 दीयों का ही निर्माण

दीया बनाते हुए अशोक चक्रधारी

अशोक चक्रधारी ने ETV BHARAT से चर्चा के दौरान बताया कि वे प्रतिदिन अभी लगभग 100 दीयों का ही निर्माण कर पाए हैं, लेकिन देश के अलग-अलग हिस्सों से इस दीये के लिए भारी डिमांड आ रही है. वे कहते हैं कि वह इस बात से खुश भी हैं और निराश भी हैं. खुशी इस बात की है कि उनके बनाए हुए इस दीये को काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है और निराश इसलिए हैं कि वह ज्यादा से ज्यादा दीये लोगों को उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं.

मिट्टी के बर्तन खरीदने की अपील

अशोक चक्रधारी मानते हैं कि इस वर्ष तो केवल लोकल कोंडागांव और आसपास के क्षेत्रों में ही दीया उपलब्ध करा पाना उनके लिए मुश्किल है, लेकिन आने वाले दिनों में वे इसकी मार्केटिंग को लेकर के ज्यादा अच्छे से योजना बनाकर इसे लोगों को उपलब्ध कराएंगे. वे कहते हैं कि कुम्हारों को मार्केट में बने रहने और प्रतिस्पर्धा के दौर में आगे बढ़ने के लिए हमेशा कुछ नया प्रयोग करते रहना चाहिए.

इस जादुई दीये से कुम्हारों को प्रेरणा मिलेगी. एक उत्साह भी जागेगा कि वे कुछ नया करें, जिससे उनकी माली हालत में भी सुधार आएगा. अशोक चक्रधारी ने आम जनता से अपील की है कि दिवाली हो या किसी भी तरह का कोई त्योहार, ज्यादा से ज्यादा कुम्हारों के द्वारा बनाए गए मिट्टी के बर्तन का इस्तेमाल करें, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके.

Last Updated : Nov 8, 2020, 8:42 AM IST

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