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SPECIAL: विकास का दावा, लेकिन आज भी झीरिया का पानी पीने को मजबूर हैं कोंडागांव के ये ग्रामीण - ग्रामीण समस्या

कोंडागांव जिले के ग्राम पंचायत चमाई में समस्याओं का अंबार है. यहां पानी की समस्या यहां इतनी विकराल है कि लोगों को बरसात में भी गड्डे में जमा हुआ पानी पीना पड़ रहा है.

problem of drinking water
झीरिया का पानी पीते ग्रामीण

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Published : Aug 6, 2020, 10:33 PM IST

Updated : Aug 8, 2020, 3:24 PM IST

कोंडागांव:जिला मुख्यालय कोंडागांव से महज 15 किलोमीटर दूर स्थित है ग्राम पंचायत चमाई. यहां पानी की समस्या यहां इतनी विकराल है कि लोगों को बरसात में भी गड्डे में जमा पानी पीना पड़ रहा है. गर्मी की तो आप बस कल्पना ही कर सकते हैं. ये ग्राम पंचायत दो जिले में आता हैस बावजूद इसके यहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. चमाई ग्राम पंचायत वैसे तो कोंडागांव का राजस्व ग्राम पंचायत है, लेकिन राजनीतिक रूप से ये नारायणपुर जिले के नारायणपुर विधानसभा क्षेत्र में आता है. इन सबके बावजूद यहां लोग आज भी ढोड़ी का पानी पी रहे हैं.

झीरिया का पानी पीने को मजबूर ग्रामीण

ग्रामीणों का कहना है कि उनकी सुध लेने आज तक शासन का कोई अधिकारी नहीं आया है, न ही उनके जनप्रतिनिधि कभी उनसे उनका हालचाल पूछने आया है. कोंडागांव जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर बसे चमाई ग्राम पंचायत में वैसे तो शासन ने 5 हैंडपंप लगाये हैं. लेकिन उसमें पानी ही नहीं आता है.

गड्डे में जमा पानी लेकर जाती महिला

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गांव में समस्याओं का अंबार

  • ग्राम चमई की कुल जनसंख्या 823 है
  • यहां राशन की कोई व्यवस्था नहीं है
  • राशन लेने के लिए लोगों को आज भी 15 किलोमीटर दूर इसलनार तक जाना पड़ता है
  • चमई ग्राम पंचायत में 5 बस्ती है, जिसमें 5 हैंडपंप है, जिसमें बमुश्किल पानी आता है

चमई के ग्रामीण आज भी बुनियादी जरूरतों के लिए तरस रहे हैं. नक्सली धमक की शुरुआत के साथ चमाई गांव को मुख्यालय से जोड़ने के लिए सड़क-पुलिया बनाने की 14 वर्ष पहले शुरुआत की गई थी. नक्सलियों का आतंक उस दौर में चरम सीमा पर था. सड़क- पुलिया निर्माण का कार्य शुरू किया गया था, लेकिन नक्सलियों के दखलअंदाजी और विरोध के कारण काम अधूरा ही छोड़ दिया गया. अब इस बात को 14 साल बीत चुके हैं. जबकि नक्सली भी बैकफुट पर चले गए, लेकिन गांव में 14 वर्ष बीत जाने के बाद भी विकास नहीं हो सका.

झीरिया से पानी भरती महिला

जानकारी के मुताबिक वन विभाग ने 2006-07 में चमई गांव को संवारने की योजना लाई गई थी, लेकिन वो योजना कागजों तक ही सीमित रह गई. सड़क और पुलिया निर्माण का कार्य शुरू किया गया, लेकिन कई साल बीत जाने के बावजूद आज तक पूरा नहीं हो सका. नक्सलियों की धमक अब इस क्षेत्र में धीरे-धीरे कम होने लगी है. बावजूद शासन-प्रशासन गावों तक योजनाएं नहीं पहुंच पा रहा है.

45 लोग मलेरिया पॉजिटिव पाए गए थे

ग्राम पंचायत के मुताबिक गांव की कुल आबादी 823 है. जहां मलेरिया मुक्त अभियान में सर्वे के दौरान यहां के 45 लोग मलेरिया पॉजिटिव पाए गए थे. गांव के लोगों का कहना है कि आसपास न तो अस्पताल और न ही कोई स्वास्थ्य सुविधा की व्यवस्था है. सड़क नहीं होने के कारण न तो एंबुलेंस आ सकती है और न ही किसी तरह की गाड़ियां इलाके में आ सकती हैं. ग्रामीणों को बुनियादी सुविधाओं की अभाव में जीवन यापन करना पड़ रहा है. स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए ग्रामीण हंगवा गांव में बने उप स्वास्थ्य केंद्र पर आश्रित हैं. जो कि यहां से 20 किलोमीटर दूर है.

ना विधायक का पता, ना कलेक्टर का

यहां ग्रामीणों को न तो कलेक्टर के बारे में कुछ पता है और न ही अपने विधायक के बारे में. कहने को तो शासन-प्रशासन सभी योजनाओं का लाभ ग्रामीणों तक पहुंचाने का दावा करता है, लेकिन चमई गांव के लोग आज भी उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं. यहां विकास के सरकारी दावे ठेंगा दिखाते हुए नजर आता है. ग्रामवासी ढोड़ी का पानी पीने को मजबूर हैं. बता दें, बारिश के दिनों में घर के पास खेत में बने गड्ढे जिसे ये ढोड़ी कहते हैं, उससे गांव वाले पानी पीते हैं. गांव वालों का कहना है कि उन्होंने आज तक कलेक्टर या विधायक को क्षेत्र में नहीं देखा.

Last Updated : Aug 8, 2020, 3:24 PM IST

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