कोंडागांव:नक्सलियों के काले साए का दंश झेल रहे बस्तर संभाग को इससे मुक्त कराने के लिए क्षेत्र में ITBP सुरक्षा बल की तैनाती की गई थी. जिसके बाद से ITBP स्थानीय ग्रामीणों से जुड़ने के लिए सिविक एक्शन प्रोग्राम चला रहा है. आइटीबीपी (41) बटालियन ने नक्सलियों को खदेड़ने के साथ-साथ क्षेत्र के आदिवासी बच्चों को भी मुख्यधारा से जोड़ने की मुहिम शुरू की. इसमें तीरंदाजी खेल एक सशक्त माध्यम बना, जिससे ना केवल बच्चे, बल्कि उनके पालक भी सुरक्षा बलों पर भरोसा जताते हुए नक्सलियों से लोहा लेने और समाज की मुख्यधारा से जुड़ने के लिए सामने आने लगे. खेल के माध्यम से ग्रामीण बच्चों में आत्मविश्वास जगाया जा रहा है. जिससे पढ़ाई में भी उन्हें मदद मिलेगी.
बच्चों ने स्थापित किए नए कीर्तिमान
आइटीबीपी के अथक प्रयासों से कई खेल में यहां के बच्चों ने कीर्तिमान स्थापित किए. उन्हीं में से एक खेल है आर्चरी (तीरंदाजी) का. वैसे तो यहां के आदिवासी शुरू से ही तीर-धनुष का इस्तेमाल शिकार और आत्मरक्षा के लिए करते आ रहे हैं, लेकिन यही तीरअंदाजी एक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खेल भी है इससे वह अंजान थे.
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2016 में ITBP ने की थी तीरअंदाजी सिखाने की शुरुआत
आइटीबीपी (41) बटालियन ने साल 2016 में सराहनीय पहल की शुरुआत की थी. इसके तहत माड़ क्षेत्र के बच्चों को आर्चरी खेल सिखाया जाना था, जिसके लिए कोच और खेल के इक्विपमेंट की जरूरत थी. आइटीबीपी कमांडेंट कोंडागांव ने हवलदार त्रिलोचन मोहंतो को आर्चरी कोच के रूप में नियुक्त किया. आर्चरी गेम के इक्विपमेंट महंगे होने की वजह से इस खेल को सिखाने में समस्या आ रही थी. जिसके लिए कुछ फंडिंग तो आइटीबीपी और लोकल प्रशासन ने कर दी, लेकिन इसके बाद भी प्रैक्टिस की समस्या बनी रही.
आर्चरी कोच ने उपलब्ध कराया इक्विपमेंट
आइटीबीपी (41) बटालियन हवलदार त्रिलोचन मोहंतो जोकि आर्चरी कोच नियुक्त किए गए थे, उन्होंने स्वयं के लाखों रुपये खर्च कर आर्चरी के लिए इक्विपमेंट उपलब्ध कराया. कोच मोहंतो के त्याग, मेहनत, लगन और बच्चों के आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत का ही नतीजा है कि आज घनघोर नक्सल क्षेत्र के बच्चे आर्चरी में राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रहे हैं.