कोंडागांव:कोंडागांव में कोको की खेती किसानों के लिए वरदान बन सकती है. इस इलाके की जलवायु और मिट्टी कोको की खेती के लिए मुफीद है. यही वजह है कि यहां कोकोनट विकास बोर्ड और केंद्रीय कृषि मंत्रालय दोनों मिलकर इसकी खेती को लेकर उत्साहित है. भारत सरकार के डी.एस.पी. फार्म कोपाबेडा में पिछले दिनों आला अधिकारियों के साथ कलेक्टर पुष्पेंद्र मीणा और एसपी बालाजी राव पहुंचे थे. जिसके बाद से कयास लगाए जा रहे थे कि, कोको की खेती की ओर कोंडागांव के किसानों को प्रोत्साहित किए जाने के लिए प्रशासन की योजना है. ताकि यहां के ग्रामीणों को रोजगार मिल सके.
कोको से कोंडागांव को मिल सकेगी नई पहचान कोंडागांव के कलेक्टर ने 100 एकड़ में स्थापित फार्म में कोको के साथ वहां लगे अन्य पौधों और फसलों पर विस्तृत जानकारी ली. जिससे उद्यानिकी फसलों के ज्यादा से ज्यादा लाभ और योजनाएं किसानों तक पहुंच सके. और इसका फायदा उन्हें मिल सके. बता दें कि 100 एकड़ में फैले कोकोनट फार्म में नारियल के 6 हजार पेड़ लगे हैं. वहीं कोको के 4 हजार 5 सौ,काली मिर्च, कॉफी की भी सफल खेती की जा रही है. यहां फिलहाल 50 हजार से 70 हजार नारियल के पौधे प्रतिवर्ष किसानों के लिए तैयार किये जाते हैं.
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कोको बदल सकती है तकदीर
डीएसपी फार्म कोपाबेडा से उत्पादन हो रहे कोको को फार्म प्रबंधन बड़ी-बड़ी नामी चॉकलेट कंपनियों तक पहुंचा कर बेच रहा है. बस्तर में कोको की खेती के लिए अनुकूल मौसम है. अगर कोको जैसी फसलों को स्थानीय जिला प्रशासन कार्य योजना बना कर रोपित करवाए और उसका प्रचार-प्रसार करे तो कई बड़ी चॉकलेट कंपनियों तक आसानी से जिले के किसान अच्छे दामों पर अपने उत्पाद बेच सकते हैं. लेकिन वर्तमान में छत्तीसगढ़ में कोको के लिए बाजार उपलब्ध नहीं है. ऐसे में किसानों का इस ओर आकर्षित होना मुश्किल है.
क्या है कोको
कोको का पेड़ 9 से 10 फीट हाइट का होता है. कोंडागांव के कोकोनट बोर्ड प्लांटेशन में इसे नारियल के पेड़ों के बीच में छांव में रोपित किया गया है. यहां की जलवायु इसके लिए अनुकूल होने के कारण यह बेहतर उत्पाद प्रदान कर रहा है. पेड़ में लगने वाले फल को कोको पॉड कहा जाता है. इसकी सख्त खोल के अंदर बीज और पल्प होते हैं. जिन्हें सुखाकर प्रोसेसिंग कर उससे कोको पाउडर बनाया जाता है. जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के चॉकलेट, एनर्जी पाउडर और अन्य कई प्रोडक्ट में किया जाता है.
जानकारी और सुविधाओं के अभाव में यहां के किसान इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं. जिले की जलवायु कोको की फसल के लिए अनुकूल है. यदि मार्केटिंग की सुविधा और पर्याप्त जानकारी किसानों को दी जाए तो इससे किसानों को बेहतर लाभ मिल सकता है. बस्तर के कोंडागांव का नाम सुनते ही नक्सल प्रभावित इलाके की तस्वीरें लोगों के जहन में उतर जाती है. प्रशासन का प्रयास इस तस्वीर को बदल सकता है. कोको की खेती पूरे देश में कोंडागांव को नई पहचान दिला सकती है.