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कांकेर: आदिवासी समाज ने रथ से मिट्टी निकाली, बिना रुके गुजरी रैली, खत्म हुआ चक्काजाम - कांकेर में पेसा कानून के उल्लंघ्न पर आदिवासियों का विरोध

कांकेर में राम वन गमन पथ पर्यटन रथ के खिलाफ आदिवासियों ने रथ से मिट्टी निकालने के बाद ही अपना धरना खत्म किया. इतनी ही नहीं आदिवासी कांकेर की सीमा तक रथ के साथ भी गए.

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कांकेर में राम वन गमन पथ पर्यटन रथ के खिलाफ आदिवासियों का धरना

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Published : Dec 16, 2020, 4:34 PM IST

Updated : Dec 16, 2020, 4:52 PM IST

कांकेर: आखिरकार राम वन गमन पथ पर्यटन रथ से मिट्टी निकालने के बाद ही आदिवासियों ने अपना धरना खत्म किया. आदिवासियों की डिमांड पर शहर में कही भी पर्यटन रथ नहीं रुका. जिसके बाद विरोध कर रहे आदिवासियों ने अपना प्रदर्शन समाप्त किया.

आदिवासियों का धरना

आदिवासी राम वन गमन पथ पर्यटन रथ पहुंचने से पहले ही NH 30 पर इकट्ठे हो गए और जाम लगा दिया. कई घंटों तक आदिवासी सड़क पर डटे रहे, और जिले की मिट्टी ले जाने का विरोध करने लगे. इस दौरान पुलिस के पहुंचने के बाद स्थिति और तनावपूर्ण हो गई. ग्रामीणों और पुलिस के बीच झड़प भी हुई.

मिट्टी ले जाने के विरोध में आदिवासी समाज

'बिना मर्जी के नहीं ले जा सकता कोई मिट्टी'

कुलगांव में हालात पुलिस के नियंत्रण से बाहर हो गए. जिसके बाद केशकाल से भी फोर्स बुलाई गई. आदिवासी समाज के लोगों ने एक सुर में कहा कि राम वन गमन पथ जात्रा के लिए कांकेर से मिट्टी नहीं ले जाने देंगे. किसी तरह कुलगावं से रैली आगे निकली तो शहर के दुधावा चौक में भी यहीं स्थिति देखने को मिली. आदिवासियों ने रथ को सीधे शहर से भेजने की मांग को लेकर हंगामा शुरू कर दिया.

आदिवासियों ने पेसा कानून के विरोध का आरोप लगाया

कांकेर में पुलिस आदिवासियों की झड़प

आखिरकार काफी हंगामे के बाद पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों से आदिवासी समाज के पदाधिकारियों की बात हुई जिसके बाद राम वन गमन पथ पर्यटक रथ को शहर में बिना रुके निकाला गया. आदिवासी समाज के पदाधिकारियों का कहना है कि उनके क्षेत्र में पेसा कानून का उल्लंघन हो रहा है. उन्होंने कहा कि मिट्टी उनकी मां है उनकी मर्जी के बिना कोई उनके यहां की मिट्टी कैसे ले जा सकता है.

पढ़ें: सर्व आदिवासी समाज ने किया राम वन गमन पर्यटन रथयात्रा का विरोध, स्वागत के लिए नहीं रुका रथ

कोंडगांव में भी आदिवासियों ने किया विरोध

कांकेर में राम वन गमन पथ पर्यटन रथ के खिलाफ आदिवासियों का धरना

इससे पहले मंगलवार को भी कोंडागांव पहुंची यात्रा का सर्व आदिवासी समाज ने विरोध किया. विरोध की स्थिति को देखते हुए देर शाम पर्यटन रथ बिना रुके ही आगे निकल गया. सर्व आदिवासी समाज युवा प्रभाग के जिलाध्यक्ष जगत मरकाम ने कहा कि राम वन गमन पथ के लिए चिन्हाकिंत जगहों से मिट्टी ले जाने की तैयारी की जा रही है, जो कि हमारे आदिवासी परंपराओं और व्यवस्थाओं के खिलाफ है.

पढ़ें:राम वन गमन यात्रा का रामाराम में आदिवासी समुदाय ने किया विरोध, बिना मिट्टी लिए वापस लौटा दल

सुकमा के रामाराम में भी हुआ विरोध

सुकमा में लगभग यही स्थिति मंगलवार को पैदा हुई. राम गमन पथ रथ यात्रा का शुभारंभ सुकमा जिले के रामाराम से होना था, लेकिन रथ यात्रा शुभारंभ होने से पहले सर्व आदिवासी समाज ने अपना संवैधानिक अधिकारों के साथ मातागुड़ी के प्रांगण पर डट गए. जिला प्रशासन ने सुकमा जिले के रामाराम से बगैर मिट्टी लिए रथ को रवाना कर दिया.

पढ़ें:भूपेश सरकार के 2 साल: उत्तर से दक्षिण छत्तीसगढ़ तक पर्यटन रथ यात्रा और बाइक रैली

14 से 17 दिसंबर तक निकाली जा रही है पर्यटन रथ यात्रा और बाइक रैली

छत्तीसगढ़ सरकार दो साल पूरे होने का जश्न राम वन गमन रूट पर पर्यटन रथ यात्रा और बाइक रैली निकालकर कर रही है. उत्तर से दक्षिण छत्तीसगढ़ तक पर्यटन रथ यात्रा और बाइक रैली निकाली जा रही है.सरकार कार्यकाल के दो साल पूरे होने का जश्न चंदखुरी में मनाएगी. चंदखुरी राम वन गमन पथ में शामिल है. यहां माता कौशल्या के भव्य मंदिर का निर्माण सरकार करा रही है. इस मौके पर कांग्रेस राम वन गमन पथ में शामिल सभी स्थानों पर पर्यटन रथ यात्रा और बाइक रैली निकाल रही है. कोरिया से इसकी शुरुआत हुई.

14 दिसंबर से शुरू हुई यात्रा 17 दिसंबर को चंदखुरी में समाप्त होगी. 4 दिनों तक चलने वाली इस यात्रा में 1 हजार 575 किलोमीटर की दूरी तय की जाएगी.

पेसा कानून

पेसा अधिनियम के अंतर्गत, (अनुच्छेद 4 (ख)), आमतौर पर एक बस्ती या बस्तियों के समूह या एक पुरवा या पुरवों के समूह को मिलाकर एक गांव का गठन होता है, जिसमें एक समुदाय के लोग रहते हैं और अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार अपने मामलों के प्रबंधन करते हैं.

पेसा कानून समुदाय की प्रथागत, धार्मिक एवं परंपरागत रीतियों के संरक्षण पर असाधारण जोर देता है. इसमें विवादों को प्रथागत ढंग से सुलझाना एवं सामुदायिक संसाधनों का प्रबंध करना भी सम्मिलित है.

भारतीय संविधान के 73 वें संशोधन में देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई थी लेकिन यह महसूस किया गया कि इसके प्रावधानों में अनुसूचित क्षेत्रों विशेषकर आदिवासी क्षेत्रों की आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखा गया है. इस कमी को पूरा करने के लिए संविधान के भाग 9 के अन्तर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में विशिष्ट पंचायत व्यवस्था लागू करने के लिए पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार अधिनियम 1996 बनाया गया जिसे 24 दिसम्बर 1996 को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया गया. यह कानून पेसा के नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि अंग्रेजी में इस कानून का नाम प्रोविजन आफ पंचायत एक्टेशन टू शेड्यूल्ड एरिया एक्ट 1996 है.

Last Updated : Dec 16, 2020, 4:52 PM IST

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