कांकेरः दुनियां में कई ऐसे पत्थर (Stone) होते हैं, जो कि न सिर्फ चमकते हैं, बल्कि अपने आप में रहस्यमयी (Mystery) भी होते हैं. अगर बात वैरायटी की करें तो पत्थरों की कीमत करोड़ों में होती है. वहीं, पत्थरों के कई प्रकार भी होते हैं. जैसे बालू पत्थर, चूना पत्थर, संगमरमर पत्थर, काला पत्थर, सफेद पत्थर, ग्रेनाइट, रत्न, आग्नेय शैल आदि. फिर भी पत्थर तो पत्थर ही होता हैं.
लेकिन क्या आपने कभी सुगंधित पत्थर (Scented stone) के बारे में सुना है... आज हम आपको खुशबू वाली पत्थर (Scent stone) के बारे में बताने जा रहे हैं, जो कि सामान्य ही लगती है, लेकिन सामान्य होती नहीं.
पत्थर से आती है हड्डियों की महक अपने आप में रहस्य है ये पत्थर
दरअसल, छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के कांकेर (Kanker) जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर ग्राम खडगांव (Khadgaon) के रक्शाहाड़ा पहाड़ी(Rakshahara Hill) में पाया जाने वाला पत्थर (Stone) अपने आप में एक रहस्य (Mystery) है. इन पहाड़ियों की उंचाई से गिरती खूबसूरत पतली धार वाली झरना के बीच में पत्थर है, जो कि देखने में बिल्कुल सामान्य सी लगती है. पर इस पत्थर को जब जलाया जाता है या आपस में रगड़ा ( घर्षण ) जाता है, तो यहां से हड्डियों की महक (smell of bones from stone) आती है.
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पत्थरों से आती है हड्डियों की खुशबू
जी हां, इस पत्थर को रगड़ने या जलाने से हड्डी की खुशबू आती है. ये देश में इस तरह की यह पहली पत्थर है, जिसे जलने से हड्डी की खुशबू आती है. इस पत्थर के रहस्य को जानने के लिए ईटीवी भारत पूरे गांव में घूम कर ग्रामीणों से जानकारी इक्कठा की. हालांकि कोई भी ग्रामीण इसकी सही जानकारी नहीं दे पाए. हालांकि जब गांव के निवासी रूपसिंह उइके और बिरझा राम बोगा के पास ईटीवी भारत की टीम पहुंची, तब जाकर इसकी सही जानकारी मिली.
पहले पत्थर से निकलता था खून
ईटीवी से बातचीत के दौरान ग्रामीणों ने बताया इस पत्थर को चमत्कारिक तो नहीं मानते बल्कि हड्डी की तरह महकने वाली पत्थर के पीछे बिरझा राम बोगा गोंडी भाषा ( स्थानीय भाषा) में बताते है. कहते हैं कि यहां अंतागढ़ क्षेत्र में विशाल काय दानव हुआ करता था, जिसने इस क्षेत्र के दूर-दूर तक की जिवी को हवा से ही खींच कर खा जाता था. इसलिए इस क्षेत्र में किसी प्रकार के जीवों का वास नहीं था. इससे तंग आकर ग्रामीण भागने लगे. उसी दौरान वनवास में बस्तर में आए भगवान राम को पता चला तो उन्होंने उसके निद्रा अवस्था के दौरान रावघाट की पहाड़ में चढ़ कर तीर चलाई थी, उस विशालकाय आदमखोर दानव को मारने के बाद यह दोबारा जीवित न हों जाए. इसलिए उसके शरीर को टुकड़ा टुकड़ा कर दिया गया था. आगे बिरझा बोगा बताते है कि आज से लगभग 50 साल पहले यह पत्थर नहीं बल्कि पूरी तरह हड्डी के रूप में दिखता था, जिसे काटने या तोड़ने पर खून भी निकलता था.
हालाकि यहां के ग्रामीणों का कहना है कि इस पत्थर पर शोधकर्ताओं ने शोध भी किया था पर आज तक इसकी सच्चाई ग्रामीणों को नहीं बताई गई. और न ही इस खूबसूरत झरना को पर्यटन स्थल बनाने की किसी ने सोची.