कांकेर: 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने संविधान के प्रारूप को स्वीकार किया था. जिसे डॉक्टर बीआर अंबेडकर की अध्यक्षता में ड्राफ्टिंग कमेटी ने तैयार किया था. इसी रूप में संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ और भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य बना. हालांकि भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को ही अंगीकृत हुआ था. संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गई थी. जिनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि और 93 अलग-अलग रियासतों के प्रतिनिधि थे.
कांकेर रियासत (उत्तर बस्तर) के गांव कन्हारपुरी के रहने वाले स्वर्गीय रामप्रसाद पोटाई भी संविधान सभा के सदस्य थे. उन्हें रियासत के प्रतिनिधि के तौर पर चुना गया था. उन्होंने अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए संविधान सभा में आवाज उठाई. 1950 में वे कांग्रेस की ओर से सांसद मनोनीत हुए थे. बाद में भानुप्रतापपुर के विधायक भी रहे. कैबिनेट मिशन योजना के तहत भारतीय समस्या के निराकरण के लिए चुने गए थे.
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संविधान निर्माण में निभाई अहम भूमिका
रामप्रसाद पोटाई के पोते नितिन पोटाई ने ETV भारत से कहा कि स्व. रामप्रसाद पोटाई छत्तीसगढ़ के उन महापुरुषों में से एक है, जिन्होंने भारत के संविधान के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे भारतीय संविधान सभा में रियासत की जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. बहुत सारे प्रावधान उस समय लागू हुए. खास तौर से पोटाई जी ने आदिवासियों के उत्थान के लिए काम किया. आज जिस सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय की बात विभिन्न संगठन करते हैं, उसे 70 साल पहले रामप्रसाद पोटाई ने कहा था. रामप्रसाद पोटाई श्रम कानून के जानकार थे. वो चाहते थे कि यहां के मजदूरों को उनके श्रम का वाजिब मूल्य मिले.
ग्रामीणों ने साझा की यादें
जब स्व. रामप्रसाद पोटाई संविधान सभा के सदस्य बने थे, तब गांववाले बेहद खुश हुए थे. इस दौर को याद करते हुए गांव के मोहनदास मानिकपुरी ने ETV भारत से कहा कि रामप्रसाद पोटाई इंग्लैंड से पढ़ कर आए थे. जब विधायक बने तब भी लोगों ने किसी त्योहार की तरह जश्न मनाया था.
सरकार नहीं कर रही कोई पहल