कांकेर :कांकेर का इतिहास (History of Kanker) काफी समृद्धशाली और सुखद (prosperous and pleasant) रहा है, लेकिन वर्तमान में इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं. अगर आज भी शासन-प्रशासन इसकी सुध ले और नियमित देखरेख कराए तो यहां की छटा देखते ही बनेगी. कांकेर के रियासतकालीन समय में साल 1932 में बनी रियासती कचहरी (princely court) के तोरण द्वार की भव्यता आज भी देखते बनती है. इस कचहरी का यह द्वार खुद इसकी महत्ता और इसके स्वर्णिम इतिहास का बखान रहा है. लेकिन दुखद है कि यह विरासत, जो भावी पीढ़ी की धरोहर है सरकारी उपेक्षा की शिकार होने के कारण धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर है. यह किसी एक धरोहर की कहानी नहीं है, बल्कि कमोबेश यहां की सभी धरोहरों की यही स्थिति है. इसी कचहरी परिसर में कभी जिला सत्र न्यायालय भी लगा करता था. आरोपी व विचाराधीन कैदियों को जिन बैरकों में पेशी होने तक रखा जाता था, उनके बैरकों का उपयोग अब शौच व प्रसाधन के लिए होने लगा है.
खिसक रही है भवन के सामने हिस्से की ईंट
साल 1932 में बनी यह कचहरी भवन खंडहर हो चुकी है. भवन के सामने के हिस्से की ईंट खिसक रही है. कई जगह दीवार व छतें कमजोर हो चुकी हैं. भवन की दीवारों में पौधे भी उग आए हैं. इन पेड़-पौधों की जड़ें भवन की दीवारों को कमजोर कर रही हैं. नब्बे के दशक का बना बार रूम भी इसी कचहरी परिसर में है, जो अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है. भवन की दीवारों में आई दरारें खुद अपने स्वर्णिम इतिहास पर सिसक रही हैं.
1932 में राजा कोमलदेव ने बनवाई थी कचहरी
मांझापारा स्थित कचहरी कार्यालय साल 1932 में राजा कोमलदेव ने बनवाया था. पहले यहां राज दरबार लगता था. न्यायिक फैसले यहीं होते थे. बाद में यहां पर कई शासकीय कार्यालय संचालित होना शुरू हो गए. इसी कचहरी भवन में जिला बनने के बाद साल 1998 में कलेक्ट्रेट लगना शुरू हुआ. नया भवन बनने तक कलेक्ट्रेट यहीं लगता था.