कांकेर: अनुसूचित जनजति आयोग के पास लगातार आदिवासी कई शिकायतें लेकर आ रहे हैं. अनुसूचित जनजाति आयोग के सदस्य नितिन पोटाई ने कहा कि अधिकतर आदिवासी उनकी जमीन छीनने, नक्सली बताकर फर्जी गिरफ्तारियां करने, फर्जी मुठभेड़ और विस्थापन के मामले लेकर आते हैं. ईटीवी भारत ने अनुसूचित जनजाति आयोग के सदस्य नितिन पोटाई से आदिवासियों से जुड़े मुद्दों पर विस्तार से बात की.
सवाल- प्रदेश में अनुसूचित जनजाति को लेकर किस तरह के मामले सामने आ रहे हैं?
जवाब- अनुसूचित जनजाति आयोग आदिवासियों के मददगार के रूप में काम कर रहा है. आयोग के पास बहुत से मामले सामने आ रहे हैं. सबसे प्रमुख जमीन अधिग्रहण के मामले हैं. आदिवासियों के जमीन पर उद्योग स्थापित किया जा रहा है. रेलवे लाइन के नाम पर उनकी जमीने अधिग्रहित की जा रही हैं. बांध के नाम पर लगातार आदिवासियों को विस्थापित किया जा रहा है. इनके अलावा फर्जी जाति प्रमाण पत्र के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है. आयोग के सामने इससे जुड़े मामले भी लगातार सामने आ रहे हैं. आदिवासियों को नक्सली बताकर जेल में बंद किया जा रहा है. फर्जी मुठभेड़ कर उनकी हत्या की जा रही है. वहीं आदिवासियों के साथ सामाजिक प्रताड़ना के मामले भी सामने आ रहे हैं. शासकीय नौकरी में पदोन्नति में आरक्षण समय से नहीं मिल पा रहा है. हमारी कोशिश है कि हम उनके समस्याओं का जल्द से जल्द निराकरण कर सकें.
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सवाल- कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि जो आदिवासी जेलों में बंद हैं उनकी रिहाई की जाएगी, फिर भी फर्जी मुठभेड़ के मामले सामने आ रहे हैं. इसे कैसे देखते हैं?
जवाब- अभी 2 से 3 महीने पहले हम लोग बस्तर के दंतेवाड़ा जिले गए थे. वहां बड़ी संख्या में आदिवासियों को नक्सली बताकर जेल में बंद किया गया है. पूरे मामले में आयोग की तरफ से सरकार को पत्र व्यवहार किया गया है. राज्य सराकर ने फैसला लिया है कि ऐसे मामलों में बंद आदिवासियों को रिहा किया जाएगा. जहां तक फर्जी मुठभेड़ के मामलों की बात है, तो बस्तर में इसकी संख्या बहुत ज्यादा है. कुछ महीने पहले कवर्धा जिले में एक आदिवासी को नक्सली बता कर गोली मार दी गई थी. मामला संज्ञान में आने के बाद आयोग की ओर से पूरे मामले में जांच की गई. जांच में पाया गया कि आदिवासी परिवार जंगल में मछली पकड़ने गया था और मध्यप्रदेश की पुलिस ने उसे नक्सली बता कर गोली मार दी थी. मामले को संज्ञान में आने के बाद मध्यप्रदेश पुलिस को यह बात स्वीकार करना पड़ा और पीड़ित आदिवासी परिवार के एक सदस्य को छत्तीसगढ़ सरकार ने नौकरी भी दी.