कांकेर:कहते हैं दान देने वालों की रकम नहीं दिल देखना चाहिए, जो खुद के बुरे वक्त में भी दूसरों का भला चाहते हैं. खुद के हालात आर्थिक रूप से कमजोर हैं, लेकिन प्रदेश को संकट से उबारने के लिए एकजुटता दिखाई है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है कांकेर के रसोइया संघ ने, जिन्होंने खुद की मानदेय राशि कम होने के बावजूद प्रदेश के लिए हाथ बंटाया है.
रसोइयों का मानदेय इतना कम है कि हम आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इस छोटी रकम से घर चलाना कितना मुश्किल होता होगा. रसोइया संघ ने आज ये साबित कर दिया कि उनका दिल बहुत बड़ा है. रसोइया संघ ने बूंद-बूंद से घड़ा भरने की कहावत को संकट के घड़ी में असहायों की मदद कर साबित कर दिया है और मुख्यमंत्री राहत कोष में 6 लाख 87 हजार रुपये की मदद की है.
सरकार से जंग होने के बाद भी असहयों की मदद
सरकार से रसोइयों की हमेशा से मानदेय को लेकर ठनी रही है, जिससे रसोइयों की आवाज सड़क से लेकर सदन तक गूंजती है. लेकिन सरकार ने इनकी एक न सुनी. रसोइया समाज जिस 1200 के मानदेय से एक जोड़ी कपड़ा खरीदना मुश्किल होता है, लेकिन संघ ने खुद के पेट काटकर असहायों के लिए दान की.