कांकेर:लॉकडाउन में गांव लौटे प्रवासी मजदूर अनलॉक होते ही वापस शहरों की ओर निकल पड़े है. एक बार फिर से गांव की गलियां सूनी हो गई हैं. सरकार भले ही वापस लौटे मजदूरों को मनरेगा के तहत काम देने का दावा कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है. शायद इसी वजह से घर लौटे मजदूर फिर शहरों की ओर निकल पड़े हैं. जानकारों का मानना है कि कांकेर जिले में लॉकडाउन में घर वापसी के बाद भी मजदूरों का ठीक से रोजगार नहीं मिला, अगर मिला भी तो कई महीनों तक उन्हें उसका भुगतान नहीं किया गया, जिसकी वजह से वे दोबारा वापस लौट गए. इधर अधिकारियों का कहना है कि पलायन की स्थिति नहीं है. कोरोना काल के दौरान जो प्रवासी मजदूर आए थे उनकी संख्या भी काफी कम थी.
श्रम विभाग के आंकड़े के अनुसार 4 हजार मजदूर जिले में वापस लौटे थे. मार्च से जुलाई तक मनरेगा के तहत 36 हजार 290 औसत मजदूरों को काम मिला, लेकिन लॉकडाउन खत्म होते ही अनलॉक की प्रक्रिया में मनरेगा मजदूरों की संख्या उतनी ही तेजी से गिर गई. कांकेर में अगस्त से दिसम्बर 2020 तक 1746 मजदूरों को ही मनरेगा के तहत काम मिल पाया. ये आंकड़ा लॉकडाउन के दौरान मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों का आधा है.
कोरोना काल में वरदान बना 'मनरेगा' योजना
महामारी के मौजूदा संकट काल में यह योजना न सिर्फ रोजगार देने वाली, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की संचालक बनने का दावा किया गया. शहरों से वापस घर की ओर लॉकडाउन के दौरान लौटे मजदूरों के चलते मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों की संख्या में काफी इजाफा हुआ. कांकेर जिले के 7 ब्लॉक कांकेर, चारामा, नरहरपुर, भानुप्रतापपुर, दुर्गुकोंदल, अन्तागढ़, कोयलीबेड़ा में औसत 36 हजार दौ सौ नब्बे औसत मजदूरों को मनरेगा में काम मिला.
'लॉकडाउन में लौटे सभी मजदूरों को नहीं मिला काम '
पूरे मामले को लेकर जब ETV भारत ने मनरेगा मुद्दों पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता केशव शोरी से बात किया तो उन्होंने कहा कि कांकेर जिले में 100 गांवों में उनका संपर्क है. हर गांव में 5 से 10 ऐसे लोग है जो लॉकडाउन के दौरान वापस गांव लौटे थे, लेकिन उन्हें काम नहीं मिला और वो वापस चले गए. शोरी ने कहा कि लोग काम करना चाहते है, उन्हें खुशी ही होगी कि स्थानीय स्तर पर गांव, घर के आसपास उन्हें काम मिल जाए. कई जगह ये बात भी सामने आ रही है कि काम करने के बाद भी उन्हें पेमेंट नहीं किया जा रहा है. कई मनरेगा मजदूरों को 6 महीने से पेमेंट नहीं हुआ है. जबकि कानून कहता है कि 15 दिन के अंदर भुगतान होना चाहिए. इन्हीं सब कारणों से लोग मनरेगा में काम करने लिए उत्सुक नहीं दिख रहे हैं.
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