कांकेर की नदियों में बिछे काशी फूल, जानिए आयुर्वेद में इसका महत्व - काशी फूल का आयुर्वेदिक महत्व
Kashi Flowers In Kanker काशी फूल बारिश के मौसम खत्म होने और ठंड शुरू होने का संदेश लेकर आते हैं. ज्यादातर काशी फूल खेत की मेड़ और नदियों के किनारे लहराते नजर आते हैं लेकिन इस बार कांकेर में पूरी नदी पर ही काशी फूल अपनी खूबसूरती बिखेर रहे हैं.
कांकेर: नदियों में काशी फूल खिलने से प्राकृतिक छटा मनोरम हो गई है. काशी फूलों ने कांकेर की नदियों को सफेद चादर से ढक दिया है. कांकेर के महानदी, हटकुल नदी में काशी के फूल अपनी सुंदरता बढ़ा रहे हैं. यहां से गुजरने वाला हर कोई एक बार रुककर काशी के फूलों को अपने कैमरे में जरूर कैद कर रहा है.
काशी फूल का आयुर्वेदिक महत्व:आयुर्वेद में काशी फूल को बहुत ज्यादा उपयोगी बताया गया है. आयुर्वेद डॉक्टर अवधेश मिश्रा ने ETV भारत को बताया कि काशी फूल को संस्कृत में काश कहते है. यह पंच तंत्र मूल्य यानी पांच प्रकार के घासों में से प्रमुख घास होता है. काशी फूल विशेषकर जल वाली जगहों में ज्यादा मिलता है. मूत्र विकार, पथरी की समस्या में ये बहुत उपयोगी है. पेशाब में जलन होने पर इसका उपयोग कर इस समस्या से निजात मिलती है. अवधेश मिश्रा ने बताया कि काशी फूल में फाइबर होता है जिसये यह पाइल्स और स्किन की समस्या में भी काफी लाभदायक है.
रामचरितमानस में काशी फूल का जिक्र:काशी फूल का वर्णन आध्यात्मिक रूप में भी मिलता है. पंडित नीरज कांत तिवारी ने बताया कि रामचरितमानस में इस फूल का जिक्र है. रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने एक चौपाई में लिखा है जिसमें कहा है कि 'बरषा बिगत सरद रितु आई। लछमन देखहुं परम सुहाई, फूले कास सकल महि छाई, जनु बरसा कृत प्रकट बुढ़ाई' यानी (भगवान राम कहते हैं- हे लक्ष्मण देखो, वर्षा ऋतु बीतने और शरद ऋतु आने वाला ह. काशी के फूल खिल गए हैं जो यह संकेत दे रहा है कि मानो वर्षा ऋतु काश रूपी सफेद बालों में अपना बुढ़ापा प्रकट कर रहा है.
आदिवासी काशी फूल को मानते हैं पवित्र:काशी फूल बस्तर के आदिवासी काफी पवित्र मानते हैं. सर्व आदिवासी समाज के जिला अध्यक्ष योगेश नरेटी बताते हैं कि चरवाहा समुदाय काशी फूलों को पवित्र और देव तुल्य समझते हैं. धान की बालियों और गंडाई के साथ इसका हार बनाकर इसे बैलों को पहनाया जाता है. इसके अलावा इस घर के सामने द्वार पर भी लगाया जाता है.