घोटुल बना बच्चों की पढ़ाई का केंद्र कांकेर: बस्तर में घोटुल सेंटर अब बच्चों का भविष्य गढ़ने का काम कर रहे हैं. हिरनपाल गांव में भी घोटुल में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है. दरअसल हिरनपाल स्कूल भवन पूरी तरह से जर्जर हो चुका है. ग्रामीणों ने कई बार प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को ज्ञापन दिया गया. स्कूल मरम्मत के लिए अस्सी हजार रुपए ही मंजूर हुए. इस पैसे से स्कूल की मरम्मत होना नामुमकिन है. ऐसे में ग्रामीणों ने बंद पड़े घोटुल में ही बच्चों को पढ़ाई करवाने का फैसला किया.
स्कूल भवन बनाने में लापरवाही:ग्राम हिरनपाल जंगल और पहाड़ों के बीच बसा हुआ है. गांव की आबादी साढ़े चार सौ के लगभग है. यहां पहुंच मार्ग के साथ अन्य सुविधाओं का भी अभाव है. ग्रामीण दशरू राम कहते है कि ''हमारे ग्राम पंचायत कोतकुड़ के आश्रित ग्राम हिरनपाल में 15 साल पहले स्कूल भवन का निर्माण कराया गया. अंदरुनी इलाके का फायदा उठाते हुए ठेकेदार ने गुणवत्ताहीन निर्माण कराया है. ठेकेदार ने बिना कालम खड़े कराए ही पूरा स्कूल भवन बना दिया था. जिसके चलते अब लगातार छत के प्लास्टर उखड़कर गिरने लगे हैं और सरिया दिखने लगा है.''
क्या है जिला शिक्षाधिकारी का कहना :जिला शिक्षा अधिकारी भुवन जैन ने कहा कि ''स्कूल भवन मरम्मत के लिए आई राशि को बढ़ाया जाएगा, ताकि स्कूल की मरम्मत हो सके. बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके.'' कांकेर जिला शिक्षा विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, कांकेर में कुल 2,441 प्राथमिक से उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हैं. जहां 1,49,000 बच्चे पढ़ते हैं. जिले में 1,591 प्राथमिक विद्यालय भवन, 608 माध्यमिक विद्यालय भवन, 160 उच्च विद्यालय भवन और 135 उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भवन हैं. इनमें से 68 स्कूल भवन जर्जर हालत में हैं. जिनमें 55 प्राइमरी और 13 मिडिल स्कूल भवन शामिल हैं. कुल मिलाकर अधिकांश विद्यालय भवनों की स्थिति जर्जर है.
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क्या होता है घोटुल :घोटुल देश के कई जनजातीय समुदायों में पॉपुलर है. इसमें गांव के बच्चे या जवान एक साथ रहते हैं. घोटुल एक प्रकार का बैचलर्स डोरमेटरी की तरह होता है. घोटलु में सभी आदिवासी लड़के लड़कियां रात में बसेरा करते हैं. घोटुल में उस जाति से रिलेटेड आस्थाएं, नाच संगीत, कला और कहानियां भी बताई जाती हैं. गांव के सभी कुंवारे लड़के लड़कियां शाम होने पर गांव के घोटुल घर में जाते हैं. अलग अलग इलाकों की घोटुल परम्पराओं में अंतर होता है. कुछ में जवान लड़के लड़कियां घोटुल में ही सोते हैं तो कुछ में वे दिन भर वहां रहकर रात को अपने अपने घरों में सोने जाते हैं. कुछ में नौजवान लड़के लड़कियां आपस में मिलकर जीवन साथी चुनते हैं. हालांकि यह परंपरा अब धीरे धीरे कम हो रही है.