कांकेर : आधुनिकता के दौर में देश में भले ही बदलाव आ गए हो. हम चंद्रमा के बाद मंगल ग्रह पर पहुंच चुके हो. तकनीकी में महारथ हासिल कर लिए हो. टेक्नोलॉजी के जमाने में इंटरनेट, वाई-फाई से अपडेट हो गए हो. सोशल मीडिया से नित नए जानकारी पा रहे हो. 21वीं सदी के मार्डन युग में सफलता के झंडे गाड़ रहे हो, नए-नए कीर्तिमान रच रहे हो पर आज भी गांवों में अंधविश्वास इस कदर हावी है कि लोग अपने मन से इसे नहीं निकाल पा रहे हैं. वे अंधविश्वास की मायाजाल में जकड़े हुए हैं और नई पीढ़ी को भी इस मायाजाल से नहीं उबरने दे रहे हैं. जी हां, कुछ ऐसा ही मामला आमाबेड़ा क्षेत्र के तुमसनार गांव में देखने को मिला है.
यहां पर एक प्रसूता की मौत के बाद उसे कंधा देने के लिए गांव का कोई भी पुरुष आगे नहीं आया. अंधविश्वास की दुहाई देकर सभी ने मानवता को शर्मसार किया. इसके बाद गांव की महिलाओं ने पुरुषों के इस अंधविश्वास को नकारा. इंसानियत का परिचय देते हुए महिलाओं ने शव को कंधा दिया. गांव के बाहर ले जाकर दफनाया.
बता दें कि तुमसनार गांव की रहने वाली सुकमोतिन कांगे गर्भवती थी, जिसकी तबीयत बिगड़ने पर उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उसने बच्चे को जन्म दिया. चंद मिनटों बाद ही बच्चे की मौत हो गई. इस परिवार पर दुखों का पहाड़ यह पर नहीं थमा. इसके बाद महिला ने भी दम तोड़ दिया.
लाश नहीं छूने की ये रही वजह
जब महिला की लाश गांव लाई गई, तो गांव के पुरुषों ने यह कहकर महिला का शव छूने से इंकार कर दिया कि नवजात शिशु और उसकी मां की मौत हो जाने के बाद दोनों भूत-प्रेत बन जाएंगे, इसलिए शादीशुदा लोग उसके शव को नहीं छू सकते.