छत्तीसगढ़

chhattisgarh

ETV Bharat / state

कांकेर में नक्सल पीड़ित परिवारों के प्रमाण पत्र के लिए पैसों की डिमांड!

कांकेर में 13 साल की मशक्कत के बाद नक्सल पीड़ित परिवारों का प्रमाण पत्र बन कर तैयार हो गया है. लेकिन अब प्रमाणपत्र लेने के लिए भी पीड़ित परिवारों को दर-दर की ठोकर खानी पड़ रही है. सोमवार को अपनी फरियाद लेकर कांकेर कलेक्ट्रेट पहुंचे नक्सल पीड़ित परिवारों ने प्रशासन पर गंभीर आरोप भी लगाए.

bribery from naxal family in kanker
नक्सल पीड़ित परिवार

By

Published : Feb 7, 2022, 4:54 PM IST

Updated : Feb 7, 2022, 7:19 PM IST

कांकेर: जिले के भानुप्रतापपुर के ग्रामीणों ने पहले नक्सलियों की प्रताड़ना से तंग आकर गांव छोड़ा और अब नक्सल पीड़ित परिवार का प्रमाण पत्र लेने के लिए भटक रहे हैं. पीड़ित भुवन लाल भुआर्य ने ETV भारत से कहा ''भानुप्रतापपुर में 100 नक्सल पीड़ित परिवार हैं. 50 लोगों को नक्सल पीड़ित का प्रमाण पत्र नहीं मिला है. लंबे संघर्ष के बाद हमारा प्रमाण पत्र बना है, लेकिन भानुप्रतापपुर एसडीओपी कार्यालय में नक्सल पीड़ित संघ के अध्यक्ष और मुंशी उस प्रमाण पत्र को देने के लिए पैसों की मांग करते हैं.

नक्सल पीड़ित परिवार परेशान

नक्सल पीड़ित को हाईकोर्ट के आदेश के मुताबित पीड़ित प्रमाण पत्र मिलना है. अब तक हम लोगों को प्रमाणपत्र नहीं मिला है. पीड़ित परिवारों को मिलने वाली सुविधाएं भी नहीं मिल रही है. ना हमको जमीन मिली है ना घर और ना ही नौकरी. हमें घर परिवार चलाने में मुश्किल का सामना करना पड़ता है."

कांकेर में नक्सलियों ने फिर किया आईईडी ब्लास्ट, अब तक नक्सलियों के हमले में तीन जवान घायल

'14 साल से प्रमाण पत्र के लिए भटक रहे'

एक पीड़ित ने बताया ''2008 में कलेक्टर और एसपी के आदेश से अपना गांव छोड़ के आए हैं. अबतक मेरा नक्सल पीड़ित प्रमाण पत्र नहीं बना है. 14 साल से प्रमाण पत्र के लिए भटक रहा हूं. प्रमाण पत्र नहीं बनने के कारण आर्थिक मदद भी नहीं मिल पा रही है, इसीलिए आज कलेक्टर से गुहार लगाने पहुंचे हैं.''

कांकेर में नक्सलियों का उत्पात, दो पत्रकारों को सजा देने का किया एलान

नक्सलियों ने कई परिवारों को किया प्रताड़ित

छत्तीसगढ़ में बस्तर नक्सल प्रभावित संभाग है. संभाग के सभी 7 जिलों में नक्सलियों का प्रभाव देखा जा सकता है. उत्तर बस्तर कांकेर में नक्सलियों ने कई परिवारों को प्रताड़ित किया है. कई परिवारों ने अपनों को खोने के बाद घर और जमीन छोड़ने का फैसला लिया लेकिन दुर्भाग्य यह है कि अपनी जमीन बचाने के लिए सब कुछ छोड़ कर सरकार की शरण में आए इन लोगों को शासन-प्रशासन ने भुला दिया है. उम्मीद की किरण जब धुंधली होती है तो यह सभी प्रदर्शन को मजबूर होते रहते हैं.

Last Updated : Feb 7, 2022, 7:19 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details