कांकेर:भानुप्रतापपुर उपचुनाव जितना सियासी तौर पर अहम है. इसके प्रत्याशी भी दिलचस्प हैं. यहां पारंपरिक सियासी दलों से हटकर एक प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं. पूर्व IPS अकबर राम कोर्राम. बस्तर पुलिस के DIG पद से रिटायर हुए अकबर राम कोर्राम को आदिवासी पसंद कर रहे हैं. आलम ये है कि इन्हें जिताने के लिए गांव गांव कसमें खाई. लोग भाजपा और कांग्रेस का साथ न देकर इन्हें ही समर्थन देंगे. जिसने भानुप्रतापपुर उपचुनाव में प्रत्याशी अकबर राम खर्राम ने सियासी खेल बिगाड़ा लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी सावित्री मंडावी जीत की करीब हैं.
अकबर राम कोर्राम को सर्व आदिवासी समाज ने अपना प्रत्याशी बनाया. इनसे पहले और भी लोगों को अलग अलग गांवों में समाज ने भानुप्रतापपुर के चुनाव में उतारा. बाकियों ने नाम वापस लिए. समाज ने तय किया अकबर ही उनके फाइनल कैंडिडेट होंगे. अकबर ने बताया कि "प्रदेश में आदिवासी आरक्षण की कटौती की गई. भाजपा और कांग्रेस दोनों दल इसके जिम्मेदार हैं. इसलिए अब समाज ने मुझे मैदान में उतारा है और संकल्प ले रहे हैं कि उन दलों का साथ न देकर अपने बीच के व्यक्ति को विधानसभा पहुंचाना है.
डिबरी की रोशनी में पढ़ाई, बर्तन मांजे, गोबर उठाने का काम:अकबर बचपन से उन्हें मां ने पाला. कांकेर और आस पास के इलाके में ही स्कूल की पढ़ाई की है. मेरे गांव उड़कुड़ा में बिजली भी नहीं थी. हम डिबरी के प्रकाश में पढ़ाई करते थे. कॉलेज आते आते कुछ पैसे जमा करता था तो हम लालटेन खरीद सके, फिर उसकी रोशनी में पढ़ता था. मां खेतों में काम करती थी. घर के बर्तन मैं ही धोता था. गोबर साफ किया करता था. खेतों में काम करता था फिर पढ़ाई करता था.