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कांकेर: कोरोना ने खाली किए बांस का सुंदर सामान बनाने वाले हाथ, दो वक्त की रोटी भी हुई मुश्किल - Pardhi tribe unemployed in Corona

कोरोना संक्रमण का असर सभी व्यवसायों पर साफ देखने को मिल रहा है. बांस से सुंदर-सुंदर सामान बनाकर बेचने वाले लोग आज पैसों- पैसों के लिए मोहताज हो गए हैं.

bamboo makers unemployed during corona time in kanker
कोरोना ने छीनी रोटी

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Published : Nov 26, 2020, 12:52 PM IST

कांकेर:छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचलों में रहने वाले लोग हर मोर्चे पर चुनौती का सामना कर रहे हैं. न शासकीय योजनाओं का लाभ ठीक से मिल पाता है और न ही रोजगार का साधन. इधर कोरोना वायरस के संक्रमण ने रही-सही कसर पूरी कर दी है. बांस से सुंदर-सुंदर सामान बनाकर बेचने वाले ये हाथ पैसों-पैसों के लिए मोहताज हो गए हैं. परिवारों के सामने पेट पालने का संकट खड़ा हो गया है.

कोरोना ने छीनी रोटी

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कोयलीबेड़ा ब्लॉक के कोतुल गांव में रहने वाले पारधी जनजाति के 15 परिवारों की हालत ऐसी है कि कभी-कभी उन्हें सिर्फ एक वक्त का खाना मिलता है. यहां रहने वाले ग्रामीण कुमेश नेताम बताते हैं कि घास-पूस से बने मकान में उसका और उसके भाई का परिवार 7 बच्चों के साथ रहता है. पहले बांस से सूपा, टोकरी और अन्य सामान बनाकर गुजारा कर लेते थे लेकिन कोरोना ने उनका रोजगार भी छीन लिया. कुमेश कहते हैं कि आसपास के बाजार बंद हैं, ऐसे में वो अपना सामान बेचने जाएं भी तो कहां.

नहीं मिल रहा योजनाओं का लाभ

ग्रामीण का कहना है कि राशन कार्ड तो बना है पर एपीएल जिससे उन्हें अतिरिक्त दाम में अनाज खरीदना पड़ता है. सरकार योजनाओं का लाभ नहीं मिलता. पारधी जनजाति की महिला बताती हैं कि वे दिनभर में एक बांस से एक टोकरी बनाती हैं. दिन भर में वे दो से तीन टोकरियां भी बना सकती हैं. एक टोकरी में करीब सौ रुपए का खर्च आता है लेकिन बाजार में वो भी नहीं मिल पाता. महिला का कहना है कि सरकार ने 150 नग बांस देने का वादा किया था लेकिन 2016 के बाद से बांस नहीं दे रही है.

पेट पालना मुश्किल

महिला बताती है कि पहले कांकेर के बाजार में उसकी बनाई टोकरियां बिक जाया करती थीं. लेकिन कोरोना संक्रमण के डर ने घर बिठा दिया और अब दो वक्त की रोटी जुटाने में परेशानी हो रही है. कोतुल में पारधी जनजाति के 15 परिवार रहते हैं, जिनकी जनसंख्या 110 के लगभग है. खेतिहर भूमि न के बराबर होने से बांस का सामान बेचकर ही ये अपना गुजारा करते हैं.

इस साल नहीं बेच पाए सामान

बांस का काम भी सीजन के मांग के अनुरूप मिलता है. दिवाली में सूपा की मांग, शादी-ब्याह के दिनों में पर्रा-बिजना, वनोपज चुनने के लिए गोप्पा, धान के सीजन में टोकरी. लेकिन इस साल महामारी की वजह से शादियां भी नहीं हुईं तो वे पर्रा-बिजना भी नहीं बेच पाए.

बीपीएल कार्ड दिए जाने की मांग

इनका कहना है कि सरकार जनजातियों के विकास के लिए विभिन्न योजनाएं संचालित कर रही है, तो इन्हें बीपीएल कार्ड दिया जाए. इनके हुनर के हिसाब से बांस कला में इन्हें रोजगार मिले, अच्छा घर के लिए सहयोग मिले ताकि जिंदगी चल सके.

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