कवर्धा: छत्तीसगढ़ के खजुराहो के नाम से विख्यात और 9वीं से 10वीं शताब्दी के बीच बने करीब 1 हजार साल पुराने भोरमदेव मंदिर के ढह जाने का खतरा मंडरा रहा है. लिहाजा इस धरोहर को बचाने के लिए पुरातत्व विभाग ने काम शुरू कर दिया है. इस क्रम में मंदिर के क्षेत्र में बने बाउंड्री वॉल को तोड़ दिया गया है. साथ ही मंदिर परिसर में लगे ऐसे पेड़ों को काटे जाने की तैयारी की जा रही है. जिनकी जड़ें मंदिर को नुकसान पहुंचा रही हैं. प्रदेश की इस अमूल्य धरोहर को बचाने की कोशिश शुरू कर दी गई है.
भोरमदेव मंदिर को बचाने का काम शुरू 10 माह पहले हुआ था निरीक्षण कार्य
2019 में रायपुर पुरातत्व विभाग के संचालक GR भगत और उनकी टीम भोरमदेव मंदिर का निरीक्षण करने पहुंची थी, उन्होंने कहा था कि 'करीब 12 पेड़ हैं जो काफी ऊंचे हैं. साथ ही इन पेड़ों की जड़ें मंदिर के नींव को नुकसान पहुंचा रहीं हैं. साथ ही मंदिर के संरक्षण की बात कही थी. इसके करीब 10 महीने बाद जाकर अब काम शुरू हुआ है.
क्या कर रहा विभाग
मंदिर के शिखर पर तड़ित चालक लगाए गए हैं. मंदिर के आस पास दक्षिण पश्चिम में मौजूद हनुमान मंदिर के चबूतरे (स्टेज) के कारण भोरमदेव मंदिर में सीपेज होने की बात कही गई थी. साथ ही इसे तोड़ने से श्रध्दालुओं को मंदिर की परिक्रमा के लिए पूरा स्पेस भी मिलने की बात सामने आई थी. इसके अलावा मंदिर के उत्तर-पूर्वी हिस्से के 20 मीटर की दूरी पर ट्रस्टियों ने कांच,प्लास्टिक और एल्मुनियम के ऑफिस बनाए थे.उसे भी दूसरी जगह शिफ्ट करने की योजना चल रही है. ताकि परिसर में श्रध्दालुओं को किसी तरह की कोई परेशानी ना हो.
वही पुरातत्व समिति के सदस्य आदित्य श्रीवास्तव ने बताया कि भोरमदेव मंदिर एतिहासिक धरोहर है. जहां भी ऐसे धरोहर होते हैं वहां के आसपास किसी भी तरह के निर्माण और पेंड पौधे होने से धरोहर को नुकसान पहुंचता है. खास कर पेड़ों के जड़ भोरमदेव मंदिर की नींव मे जाकर मंदिर को नुकसान पहुचा रहे थे. पुरातत्व विभाग ने मंदिर की सुरक्षा को लेकर काम शुरू किया है जो सही है.