कवर्धा: स्कूल जा पढ़े बर, जिंदगी ल गढ़े बर के नारे से जहां एक ओर सरकार सूबे के नौनिहालों को उज्जवल भविष्य के सपने दिखा रही है. वहीं दूसरी ओर स्कूलों में पढ़ने वाली छात्राएं, जिंदगी जोखिम में डालकर ज्ञान की घुट्टी पीने को मजबूर हैं. स्कूल की छत जर्जर होने के साथ ही यहां की दीवारों में मोटी-मोदी दरारें हैं. यहां पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को जान हथेली पर लेकर ज्ञान का पाठ पढ़ना पड़ता है.
देश के 'भविष्य' 'खतरे' में जर्जर भवन होने के साथ ही स्कूल में पर्याप्त कक्षाएं संचालित करने के लिए क्लासरूम तक नहीं हैं और यही वजह है कि स्कूल की दो कक्षाओं को सेवा सहकारी समिति के भवन में संचालित करना पड़ता है. और तो और स्कूल में शौचालय की व्यवस्था तक नहीं है, जिसकी वजह से छात्राओं को शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है.
खंडहर में तब्दील हुआ स्कूल भवन
प्रशासन ने कोलेगांव में मिडिल स्कूल की व्यवस्था तो कर दी, लेकिन इसकी मरम्मत पर कोई ध्यान नहीं दिया गया, जिसका नतीजा यह हुआ कि भवन धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील हो गया.
फंड आने पर होगी मरम्मत
करीब दो साल पहले स्कूल की छत का एक हिस्सा नीचे आ गिरा था. जब हमने इस मामले में जिला शिक्षा अधिकारी का कहना है कि, स्कूल भवन की हालत जर्जर है और विभाग को इस बारे में अवगत करा दिया गया है. विभाग से फंड आने पर भवन की मरम्मत कराई जाएगी.
खोखले साबित हो रहे सरकारी दावे
एक ओर जहां सरकार प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए पुरजोर प्रयास कर रही है, वहीं सिस्टम में बैठे अधिकारियों की बेरुखी और लापरवाही सरकार की इन कोशिशों पर पानी फेर के साथ ही स्टूडेंट्स की जिंदगी से खिलवाड़ भी कर रही है.