कवर्धा:भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के खजुराहो के नाम से मशहूर है. लॉकडाउन के बाद जिला प्रशासन की गाइडलाइन के बाद मंदिर को श्रध्दालुओं के लिए खोला गया है, लेकिन मंदिर परिसर में नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है. ज्यादातर लोग न तो मास्क का उपयोग कर रहे हैं और न ही शोसल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं. हालांकि, प्रशासन की ओर से लगातार अपील की जा रही है कि सभी कोरोना के नियमों का पालन करें, जिसका असर भी देखने को मिल रहा है.
देश-विदेश से पहुंचते हैं श्रध्दालु
भोरमदेव मंदिर में श्रद्धालु देश-विदेश से पहुंचते हैं. यहां आने वाले श्रध्दालुओं को देखते हुए लोगों के मनोरंजन के लिए करोड़ों रुपये की लागत से नंदी गार्डन का निर्माण कराया गया है. इसके अलावा सामने तलाब किनारे गार्डन और मुर्तियां लगाई गई है. वहीं इंद्रधनुष झुला भी लगाया गया है. यहां आने वाले पर्यटकों को आकर्षित करने करोड़ों रुपये खर्च किए गए हैं.
छत्तीसगढ़ का खजुराहो खजुराहो और कोणार्क
इस मंदिर की बनावट खजुराहो और कोणार्क मंदिर के समान है. जिसके कारण लोग इस मंदिर को 'छत्तीसगढ का खजुराहो' भी कहते हैं. यह मंदिर एक ऐतिहासिक मंदिर है. इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था. ऐसा कहा जाता है कि गोड़ राजाओं के देवता भोरमदेव थे और वे भगवान शिव के उपासक थे. भोरमदेव, शिवजी का ही एक नाम है, जिसके कारण इस मंदिर का नाम भोरमदेव पड़ा.