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कवर्धा में टिड्डियों का हमला, भगाने के लिए जिला प्रशासन का ऑपरेशन जारी

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Published : Jun 17, 2020, 1:09 PM IST

Updated : Jun 17, 2020, 3:59 PM IST

कई राज्यों में उत्पात मचाने वाला टिड्डी दल छत्तीसगढ़ के कुछ इलाकों में पहुंच चुका है. जानकारी के मुताबिक टिड्डियों का एक दल मध्यप्रदेश के बालाघाट के रास्ते कवर्धा में प्रवेश कर चुका है, जिसे भगाने के लिए जिला प्रशासन का ऑपरेशन जारी है.

Locust attack in Kawardha district
कवर्धा में टिड्डियों का हमला

कवर्धा:कई राज्यों में आतंक मचाने वाला टिड्डी दल अब छत्तीसगढ़ में भी उत्पात मचाने लगा है. बता दें कि टिड्डियों का एक दल मध्यप्रदेश के बालाघाट के रास्ते कवर्धा में प्रवेश कर चुका है, जिसे भगाने के लिए जिला प्रशासन का ऑपरेशन जारी है. टिड्डियों को भगाने के लिए 6 फायर ब्रिगेड की मदद से कीटनाशक दवाईयों का छिड़काव किया जा रहा है. जानकारी के मुताबिक खारा के जंगल के 5 किलोमीटर के एरिया में टिड्डियों का कब्जा है. वहीं मंगलवार की शाम टिड्डियों का एक दल मध्यप्रदेश के बालाघाट से छत्तीसगढ़ के खारा के जंगल के नचनिया गांव के आसपास अपना कब्जा जमाए हुए है, जिसे भगाने के लिए जिला प्रशासन जद्दोजहद कर रहा है.

टिड्डियों को भगाने के लिए जिला प्रशासन का ऑपरेशन जारी

कवर्धा जिला प्रशासन टिड्डियों को भगाने मे अब तक नाकाम रहा है. बताया जा रहा है कि मंगलवार की शाम टिड्डियों का एक दल मध्यप्रदेश के बालाघाट के रास्ते छत्तीसगढ़ में दाखिल हुआ है, जो कवर्धा जिले के बोड़ला ब्लॉक अंतर्गत वनांचल नचनिया गांव के आसपास लगभग 5 किलोमीटर के क्षेत्र में अपना डेरा जमाए हुआ है. इन्हें भगाने के लिए कृषि विभाग की टीम सुबह 4 बजे से लगी हुई है. इस ऑपरेशन में 6 फायर ब्रिगेड की मदद से कीटनाशक दवाईयों का छिड़काव किया जा रहा है. साथ ही ट्रैक्टर के साइलेंसर को निकालकर उससे आवाज किया जा रहा है. डीजे साउंड से भी शोरगुल किया जा रहा है, ताकि टिड्डियों को यहां से भगाया जा सके.

कवर्धा में टिड्डियों का हमला

कैसे पनपते हैं टिड्डी दल

यह प्रवासी टिड्डेअंटार्कटिक को छोड़कर बाकी सभी महाद्वीप पर पाए जाते हैं. ये पश्चिमी अफ्रीका, ईजिप्ट से लेकर दक्षिण एशिया तक में पाए जाते हैं. ये टिड्डे अपने जन्म के शुरुआती कुछ दिन तक उड़ नहीं सकते. इस दौरान वह अपने आसपास की घास खाकर बड़े होते हैं. टिड्डी घास की महक का पीछा करते रहते हैं. आमतौर पर इन्हें बड़ा होने में एक माह तक का समय लगता है, लेकिन अनुकूल वातावरण में इनके बढ़ने की प्रक्रिया तेज हो जाती है. जब एक जगह पर खाना खत्म हो जाता है, तो पंख वाले बड़े टिड्डे एक खास गंध छोड़ते हैं, जिसका मतलब होता है कि अब खाने के लिए आगे बढ़ने का समय आ गया है. ऐसे ही टिड्डियों के समूह के समूह जुड़ते जाते हैं और यह विनाशकारी विशालकाय झुंड बन जाते हैं.

टिड्डियों से नुकसान

टिड्डी हवा के रुख के साथ उड़ते हैं और एक दिन में करीब 150 किलोमीटर का सफर कर सकते हैं. जब यह झुंड बनाकर खाने की तलाश में निकलते हैं, तो रास्ते में पड़ने वाली किसी भी वनस्पति को नहीं छोड़ते. रेगिस्तानी टिड्डी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे विनाशकारी कीट माना जाता है. यह एक वर्ग किलोमीटर के छोटे से झुंड में ही एक दिन में 35,000 लोगों के भोजन के बराबर वनस्पति खा लेते हैं.

कहां से आईं टिड्डियां ?

पूरी दुनिया में रेगिस्तानी टिड्डी के प्रकोप से लगभग तीन करोड़ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र प्रभावित है. इतने क्षेत्र में उत्तर-पश्चिमी और पूर्वी अफ्रीकन देश, अरब देशों, अरेबियन पेनिनसुला, दक्षिणी सोवियत रूस, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत सहित करीब 64 देश शामिल हैं. सामान्य दिनों में जब इनका प्रभाव कम होता है, तब भी यह 30 देशों के एक करोड़ 60 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में पाए जाते हैं.

पढ़ें:कवर्धा जिले में टिड्डियों का हमला, मध्य प्रदेश के रास्ते पहुंचा है छत्तीसगढ़

रेगिस्तानी टिड्डियों का सबसे बड़ा हमला राजस्थान के जैसलमेर में 16 मई 2019 के बाद देखा गया. उस समय यह छितरी हुई अवस्था में थे. भारत सरकार के टिड्डी नियंत्रण एवं अनुसंधान विभाग के अनुसार, मई 2019 में 246 जगहों पर सर्वे किया गया था, जिनमें से 46 स्थानों पर टिड्डी दल पाए गए थे. बीकानेर जिले के कुछ इलाकों में भी टिड्डी दल देखे गए थे.

Last Updated : Jun 17, 2020, 3:59 PM IST

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