कवर्धा:कई राज्यों में आतंक मचाने वाला टिड्डी दल अब छत्तीसगढ़ में भी उत्पात मचाने लगा है. बता दें कि टिड्डियों का एक दल मध्यप्रदेश के बालाघाट के रास्ते कवर्धा में प्रवेश कर चुका है, जिसे भगाने के लिए जिला प्रशासन का ऑपरेशन जारी है. टिड्डियों को भगाने के लिए 6 फायर ब्रिगेड की मदद से कीटनाशक दवाईयों का छिड़काव किया जा रहा है. जानकारी के मुताबिक खारा के जंगल के 5 किलोमीटर के एरिया में टिड्डियों का कब्जा है. वहीं मंगलवार की शाम टिड्डियों का एक दल मध्यप्रदेश के बालाघाट से छत्तीसगढ़ के खारा के जंगल के नचनिया गांव के आसपास अपना कब्जा जमाए हुए है, जिसे भगाने के लिए जिला प्रशासन जद्दोजहद कर रहा है.
कवर्धा जिला प्रशासन टिड्डियों को भगाने मे अब तक नाकाम रहा है. बताया जा रहा है कि मंगलवार की शाम टिड्डियों का एक दल मध्यप्रदेश के बालाघाट के रास्ते छत्तीसगढ़ में दाखिल हुआ है, जो कवर्धा जिले के बोड़ला ब्लॉक अंतर्गत वनांचल नचनिया गांव के आसपास लगभग 5 किलोमीटर के क्षेत्र में अपना डेरा जमाए हुआ है. इन्हें भगाने के लिए कृषि विभाग की टीम सुबह 4 बजे से लगी हुई है. इस ऑपरेशन में 6 फायर ब्रिगेड की मदद से कीटनाशक दवाईयों का छिड़काव किया जा रहा है. साथ ही ट्रैक्टर के साइलेंसर को निकालकर उससे आवाज किया जा रहा है. डीजे साउंड से भी शोरगुल किया जा रहा है, ताकि टिड्डियों को यहां से भगाया जा सके.
कैसे पनपते हैं टिड्डी दल
यह प्रवासी टिड्डेअंटार्कटिक को छोड़कर बाकी सभी महाद्वीप पर पाए जाते हैं. ये पश्चिमी अफ्रीका, ईजिप्ट से लेकर दक्षिण एशिया तक में पाए जाते हैं. ये टिड्डे अपने जन्म के शुरुआती कुछ दिन तक उड़ नहीं सकते. इस दौरान वह अपने आसपास की घास खाकर बड़े होते हैं. टिड्डी घास की महक का पीछा करते रहते हैं. आमतौर पर इन्हें बड़ा होने में एक माह तक का समय लगता है, लेकिन अनुकूल वातावरण में इनके बढ़ने की प्रक्रिया तेज हो जाती है. जब एक जगह पर खाना खत्म हो जाता है, तो पंख वाले बड़े टिड्डे एक खास गंध छोड़ते हैं, जिसका मतलब होता है कि अब खाने के लिए आगे बढ़ने का समय आ गया है. ऐसे ही टिड्डियों के समूह के समूह जुड़ते जाते हैं और यह विनाशकारी विशालकाय झुंड बन जाते हैं.
टिड्डियों से नुकसान