Shahi Dussehra Of Kawardha :कवर्धा में निभाई गई 272 साल पुरानी परंपरा, दशहरा के दिन राजपरिवार के जनता ने किए दर्शन - Dussehra 2023
Shahi Dussehra Of Kawardha कवर्धा में शाही दशहरा की रस्म निभाई गई.इस दौरान राज परिवार के दर्शन जनता ने किए. दर्शन के बाद रथ पर सवार होकर राजा और युवराज ने रावण वध कार्यक्रम में हिस्सा लिया.Dussehra 2023
कवर्धा : कवर्धा में शाही दशहरा मंगलवार को मनाया गया. कवर्धा में शाही दशहरा की परंपरा 272 वर्षो से निरंतर लगातार जारी है. शाही दशहरा देखने दूर-दूर से लोग कवर्धा आते हैं. इस दौरान आम जनता राजा रानी के दर्शन करते हैं.इसी वक्त आम लोगों के घूमने के लिए मोती महल का द्वार खोल दिया गया. जिसके बाद आम जनता राजमहल को देखने के लिए आई. ऐसी मान्यता है कि दशहरा के दिन राजा और रानी के दर्शन करना शुभ है.
पुरानी परंपरा आज भी कायम :दशहरा के दिन विरासत के प्रमुख राजा योगेश्वर राज सिंह अपने पत्नी रानी कृति देवी और बेटे युवराज मैकलेश्वर राज सिंह के साथ कुलदेवी और देवता के साथ नगर के प्रमुख मंदिरों में पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद लिया. इसके बाद राज महल के पहले तल पर शस्त्र पूजन किया. राजा योगेश्वर राज सिंह और युवराज मैकलेश्वर राज सिंह राजकी वेशभूषा में शाही रथ में सवार हुए.इस दौरान रानी कृति देवी ने राजा और युवराज को तिलक लगाकर रथ से विदा किया.
कवर्धा का राजपरिवार
बालक राम और लक्ष्मण करते हैं लंकेश का वध :शाही रथ सबसे पहले सरदार पटेल मैदान पहुंचा.जहां पर 35 फीट ऊंचे रावण को बाल राम और लक्ष्मण ने जलाया. इसके बाद विजय जुलूस निकाला गया.इस दौरान राजा ने नगरवासियों का अभिवादन स्वीकार किया. राजा के रथ के आसपास हजारों लोग की भीड़ बाजे गाजे के साथ नाचने झूमते हुए निकली.
दुर्ग के कारीगर बनाते हैं रावण :राज परिवार ने दुर्ग से कारीगर बुलाकर नगर के सरदार पटेल मैदान में रावण का पुतला बनवाया है. कारीगर बोला मरकाम के मुताबिक वे दुर्ग के रहने वाले हैं और वर्षों से रावण का पुतला बनाने का काम करते हैं. वर्षाें से राज परिवार के लिए रावण बनाते आ रहे हैं.
कितनी पुरानी है परंपरा ? :इतिहास के जानकार आदित्य श्रीवास्तव बताते ही की कवर्धा राज्य की गद्दी स्थापना रियासत 1751 में महाराजा स्वर्गीय महाबली सिंह ने की थी. तब से शाही दशहरे की भी परंपरा चली आ रही है.जो 12 वें पीढ़ी के रुप में योगेश्वर राज सिंह ने निभाई है.
साल में एक बार खुलता है राजमहल का द्वार :राज महल से जुड़े संतोष यादव बताते हैं कि पहले के जमाने में राजा महाराजाओं का शासन चलता था. क्षेत्र की प्रजा के सुख दुख और क्षेत्र के विकास का कार्य राजा महाराजा करते थे. राज महल से जुड़े लोगों के अलावा बाहर के लोगों का राजा रानी से मिलना देखना बहुत मुश्किल भरा होता था. इसलिए पुरानी परंपरा रही की साल में एक दिन विजयादशमी के दिन राज महल के पट आम लोगों के लिए खोल दिए जाते थे.
आम जनता से मिलते हैं राजा और रानी :आम जनता के लिए राजमहल का द्वार खुलता है.इस दौरान राजमहल में भोजन का भी प्रबंध किया जाता था. मोती महल घूमने के साथ राजा शाही जुलूस भी निकालते थे. राजा क्षेत्र के जनता से मिलने और उनका अभिवादन करने शाही रथ में सवार होकर नगर भ्रमण करते थे. इसलिए यह मान्यता आज भी है जारी है.जिसमें राजा रानी के दर्शन लोग करते हैं.