जशपुर:प्रदेश सरकार ने बुजुर्गों के लिए वृद्धापेंशन योजना की शुरुआत की ताकी बुजुर्गों को इससे सहारा मिल सके, लेकिन अब यही योजना इन बुजुर्गों के लिए मुसीबत बनती जा रही है. जिले के रौनी गांव में एक पहाड़ी कोरवा जनजाति की बुजुर्ग पुकलीबाई को कंधे पर ढोकर पेंशन लेने के लिए बैंक लाया गया, लेकिन बैंक जाने के बावजुद भी बुजुर्ग को पेंशन की रकम नहीं मिली.
बुजुर्ग मां को कावड़ पर बैठाकर 4 किमी चले बेटे, फिर भी नहीं मिली पेंशन पुकलीबाई के दो बेटे हैं बैसाखू और जंगलु, इन दोनों ने मां पुकलीबाई को अपने कंधे पर चार किलोमीटर का सफर तय किया. जब ये दोनों बैंक पहुंचे तो इन्हें पता लगा कि बैंक में पुकलीबाई की पेंशन ही नहीं है.
इसके बाद दोनों बेटे निराशा के साथ अपनी मां को वापस कंधे पर ढोकर घर की तरफ लौट गए. इन तस्वीरों को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि शासन-प्रशासन की योजनाएं धरातल पर कितनी मजबूत हैं.
चार महीने से नहीं मिला पेंशन
दरअसल चार महीने से पुकलीबाई को पेंशन नहीं मिली है, जिसे लेने ही वह अपने बेटों के साथ बैंक पहुंची थी. पुकलीबाई चल नहीं सकती, बीमार रहती है और कुछ पैसे उसकी परेशानी में काम आ जाएं इसकी आस लिए उसके दोनों बेटे पैदल अपने कंधे पर मां को ढोकर पेंशन लेने की जद्दोजहद करते हैं.
पंचायत के जरिए मिलती थी पेंशन राशि
बता दें कि कुछ साल पहले पेंशनधारियों को ग्राम पंचायत के जरिए ही पेंशन भुगतान किया जाता था, लेकिन अब खाते के माध्यम से पेंशन की राशि भुगतान होने से पेंशनधारियों की परेशानी बढ़ गयी है.
पेंशन लेने के लिए ग्रामीणों को कई किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है और बैंक पहुंचने पर भी पेंशनधारियों को भुगतान नहीं हो पाता और बुजुर्गों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
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अधिकारी-कर्मचारी कई बार करते हैं धांधली
कई बार या तो हितग्राहियों के खाते में पेंशन की रकम ही नहीं आती और कई बार कियोस्क बैंक संचालकों की ओर से इन गरीब पेंशनधारियों की राशि मे हेरफेर कर कम रुपये उन्हें पकड़ा दिया जाता है. अब स्थानीय लोगों ने पूर्व की तरह पंचायत के माध्यम से नकद भुगतान की मांग की है. तो वहीं आला अधिकारी निशक्त पेंशनधारियों को घर तक पेंशन पहुंचाने की योजना पर विचार कर रहे हैं.
जिले के सुदूर पाट क्षेत्र से आई विशेष पिछड़ी जनजाति पहाड़ी कोरवा महिला की यह तस्वीर मानवता को शर्मसार करने को काफी है, आज के युग में भी इंसान को कंधे पर ढोकर लाना कहीं न कहीं नेताओं के वादों और सरकार की योजनाओं की जमीनी हकीकत बयां करने को काफी है.