जशपुर:कुनकुरी ब्लाक में एक छोटा सा गांव है बरांगजोर. यहां कलिस्ता खेस्स अपने तीन बच्चों के साथ रहती हैं. बच्चे जो 11 साल पहले अपने पिता की शहादत के वक्त गोद में थे, समझदार हो गए हैं. अब उनकी मां इंतजार कर रही हैं कि वे बालिग हो जाएं और अपने पिता का सपना पूरा करें. ये परिवार है साल 2010 में ताड़मेटला के नक्सली हमले में शहीद लेयोस खेस्स का. जो 11 साल से अपने दर्द और आंसू पीकर जिंदगी जी रहा है.
देश के इस सबसे भीषण नक्सली हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. पति की शहादत के दिन को याद करते हुए कलिस्ता ने बताया कि वो हर रोज की तरह अपने काम में व्यस्त थी. दोपहर के करीब 2 बजे उन्हें जानकारी मिली कि लेयोस ताड़मेटला में हुए नक्सली हमले में शहीद हो गए हैं. कलिस्ता कहती हैं कि पहले तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ था. 5 अप्रैल को उनकी लेयोस से बात हुई थी. उन्होंने बड़ी बेटी आकांक्षा और छोटी अमीषा के साथ एक साल के बेटे अश्विन से बात की थी. बच्चों की आवाज सुनकर वादा किया था कि वे जल्द ही छुट्टी लेकर घर आएंगे.
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तीनो बच्चों के साथ ससुर की जिम्मेदारी
लेयोस ने कलिस्ता को दंतेवाड़ा में नक्सलियों से चल रहे भीषण संघर्ष और घने जंगल में सर्चिंग अभियान की जानकारी दी थी और कहा था वे चिंता न करें. वो याद करती हैं कि बस्तर के घनों जंगलों से गुजरता हुआ उनके पति का पार्थिव शरीर जब घर पहुंचा तो उनके सामने दो चुनौतियां थी. पहली चुनौती थी अपने आंसुओं को रोक कर रखने की और दूसरी घर-परिवार संभालने की. कलिस्ता को गोद में खेल रहे बच्चे पालने थे, 80 साल के बुजुर्ग ससुर राफेल खेस्स की सेवा करनी थी और खेत देखना था. बीते 11 साल के दौरान इन सभी जिम्मेदारियों को कलिस्ता ने बखूबी निभाया है.