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शहीद लेयोस ने बच्चों से कहा था जल्द आउंगा फिर तिरंगे में लिपटे आए

कुनकुरी ब्लाक के छोटे से गांव बरांगजोर में यहां कलिस्ता खेस्स ने अपने पति की शहादत के 11 साल यादों के सहारे गुजारे हैं. ताड़मेटला में शहीद हुए लेयोस खेस्स ने आखिरी बार जब बात की थी तो जल्द घर आने का वादा किया था. वो वादा अगले दिन ये खबर बनकर आया कि लेयोस तिरंगे में लिपटकर आएंगे. इन 11 सालों के 12 महीने कलिस्ता ने अपनी सारी जिम्मेदारियां पूरी की, दिल में पति की याद और कलेजे पर पत्थर रखकर.

Story of family martyred Jawan Leo Khes of Jashpur in Tadmetla Naxal attack
शहीद का परिवार

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Published : Apr 7, 2021, 3:45 PM IST

जशपुर:कुनकुरी ब्लाक में एक छोटा सा गांव है बरांगजोर. यहां कलिस्ता खेस्स अपने तीन बच्चों के साथ रहती हैं. बच्चे जो 11 साल पहले अपने पिता की शहादत के वक्त गोद में थे, समझदार हो गए हैं. अब उनकी मां इंतजार कर रही हैं कि वे बालिग हो जाएं और अपने पिता का सपना पूरा करें. ये परिवार है साल 2010 में ताड़मेटला के नक्सली हमले में शहीद लेयोस खेस्स का. जो 11 साल से अपने दर्द और आंसू पीकर जिंदगी जी रहा है.

शहीद लेयोस ने बच्चों से कहा था जल्द आउंगा फिर तिरंगे में लिपटे आए

देश के इस सबसे भीषण नक्सली हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. पति की शहादत के दिन को याद करते हुए कलिस्ता ने बताया कि वो हर रोज की तरह अपने काम में व्यस्त थी. दोपहर के करीब 2 बजे उन्हें जानकारी मिली कि लेयोस ताड़मेटला में हुए नक्सली हमले में शहीद हो गए हैं. कलिस्ता कहती हैं कि पहले तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ था. 5 अप्रैल को उनकी लेयोस से बात हुई थी. उन्होंने बड़ी बेटी आकांक्षा और छोटी अमीषा के साथ एक साल के बेटे अश्विन से बात की थी. बच्चों की आवाज सुनकर वादा किया था कि वे जल्द ही छुट्टी लेकर घर आएंगे.

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तीनो बच्चों के साथ ससुर की जिम्मेदारी

लेयोस ने कलिस्ता को दंतेवाड़ा में नक्सलियों से चल रहे भीषण संघर्ष और घने जंगल में सर्चिंग अभियान की जानकारी दी थी और कहा था वे चिंता न करें. वो याद करती हैं कि बस्तर के घनों जंगलों से गुजरता हुआ उनके पति का पार्थिव शरीर जब घर पहुंचा तो उनके सामने दो चुनौतियां थी. पहली चुनौती थी अपने आंसुओं को रोक कर रखने की और दूसरी घर-परिवार संभालने की. कलिस्ता को गोद में खेल रहे बच्चे पालने थे, 80 साल के बुजुर्ग ससुर राफेल खेस्स की सेवा करनी थी और खेत देखना था. बीते 11 साल के दौरान इन सभी जिम्मेदारियों को कलिस्ता ने बखूबी निभाया है.

शहीद की स्मृति में स्मारक

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शहीद की दोनों बेटियां पढ़ाई कर रही हैं. बेटा अश्विन छठी क्लास में है. तीनों बच्चे अभी बालिग नहीं हुए हैं. बीते 11 साल से कलिस्ता एक-एक पल बेसब्री से गुजार रही है. उनकी इच्छा है कि छोटी बेटी अमीषा पिता की तरह सीआरपीएफ में भर्ती हो कर देश की सेवा करे. शहीद की पत्नी ने बताया कि उन्होंने अनुकम्पा नियुक्ति के लिए सीआरपीएफ में अमीषा का नाम दिया है लेकिन अभी उसकी उम्र कम है.

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मदद से संतुष्ट है परिवार

शहादत के बाद सरकार और शासन से मिली सहायता और सम्मान से कलिस्ता संतुष्ट हैं. उन्होंने बताया कि हादसे के बाद सीआरपीएफ के साथ राज्य सरकार ने आर्थिक मदद उपलब्ध कराई थी,उससे ही वह बच्चों का भविष्य संवार रही हैं. गांव में पंचायत ने लेयोस की शहादत को नमन करते हुए स्मारक का निर्माण कराया है. बीच-बीच में पुलिस प्रशासन के अधिकारी उनके घर आ कर हालचाल पूछते रहते हैं. दिल में शहीद पति लेओस की याद को समेटे कलिस्ता को इंतजार है तो बस बच्चों के बड़े होने का, जिससे वे अपने पिता के सपने को पूरा कर सकें.

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