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मजदूरों का हाल देख तड़प उठा ट्रक ड्राइवर, कहा- 'जिंदगी में पहली बार ऐसी बेबसी देखी है' - प्रवासी मजदूरों का दर्द

हजारों किलोमीटर का सफर तय करके जशपुर होते हुए झारखंड जा रहे मजदूरों से ETV भारत की टीम ने बातचीत की. बातचीत के दौरान मजदूरों ने अपना दर्द साझा किया.पढ़िए पूरी खबर...

problem of migrant labours
प्रवासी मजदूरों का दर्द

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Published : May 18, 2020, 8:54 PM IST

Updated : May 19, 2020, 1:20 PM IST

जशपुर: कोरोना वायरस के संक्रमण से पूरा देश लड़ रहा है. कोविड-19 की रोकथाम के लिए किए गए लॉकडाउन ने गरीब मजदूर परिवारों की कमर तोड़ कर रख दी है. ETV भारत ने कुछ ऐसे ही प्रवाशी मजदूरों और कई राज्यों का सफर तय कर रहे ट्रक ड्राइवरों से बात की. जिसे सुन कर इन मजदूरों की मजबूरी, लाचारी और फेल होते सरकारी तंत्र की हकीकत का पता चलता है.

प्रवासी मजदूरों ने बयां किया दर्द

लॉकडाउन के दौरान हजारों मजदूर अपने घर लौट रहे हैं. कुछ पैदल, कुछ साइकिल पर, कुछ ट्रकों पर तो कुछ छोटे वाहनों में. हालात इतने खराब हो चुके हैं कि इन मजदूरों की सुध लेना वाला कोई नहीं है. रास्ते में इन मजदूरों को सहारा देने वाले हैं तो बस और ट्रक ड्राइवर और समाज सेवी संगठन के लोग जो लोगों को पानी बिस्किट जैसे राहत के सामान बांट रहे हैं.

प्रवासी मजदूर

गुजरात से झारखंड के टाटा जमशेदपुर की ओर जा रहे ट्रक चालक मोती लाल यादव ने बताया कि 'वे मूलतः बिहार के रहने वाले हैं. बड़ोदरा से वे टाटा के लिए निकले हैं. ट्रक डाइवर ने बताया कि उन्होंने बड़ोदरा से अब तक के सफर के दौरान उन्होंने जिस तरह लोगों को बदहवास होकर अपने घर की लौटते हुए देखा है, वैसा तो उन्होंने न कभी सुना था और न ही कल्पना की थी. रास्ते में क्या बच्चे, क्या बुजुर्ग सब पैदल हजारों किलोमीटर का सफर तय कर रहे हैं'. उन्होंने सरकारी तंत्र को जम कर कोसा ओर इस संकट की घड़ी में गरीब मजदूर की लाचारी बयां की.

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सहायता के नाम पर हो रही थी खानापूर्ति

लाॅकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों ने सरकारी तंत्र की असंवेदनशीलता पर अपनी भड़ास निकाली. बोकारो के रहने वाले सालेसर ने बताया कि 'वे मुंबई के डोंगेवली में मजदूरी करते थे. लाॅकडाउन की घोषणा होने के बाद वे दाने-दाने के लिए तरस रहे थे. स्थानीय प्रशासन सहायता के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर रहे थे. सरकारी राशन, मुहल्ले के एक दो घरों में देकर सरकारी कर्मचारी गायब हो जाया करते थे'

'प्रमाण पत्र के नाम पर घुमाती रही सरकार'

इन मजदूरों ने बताया कि सरकार ने जैसे ही मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए बस और ट्रेन की व्यवस्था करने की घोषणा की, वे सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे. कभी दल में सदस्यों की संख्या कम होने तो कभी स्वास्थ्य जांच का प्रमाण पत्र लाने की मांग करते हुए उन्हें घुमाया जाता रहा. इस दौरान उन्हें पुलिस की लाठियां भी खानी पड़ीं.

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जशपुर पुलिस ने की मदद

शासन-प्रशासन के इस रवैये से परेशान हो कर 15 लोगों ने मुंबई से साइकिल में ही झारखंड जाने के लिए निकल पड़े. जयलाल और सालेसर अपने काफिले के साथ जशपुर पहुंचे थे. यहां मौजूद पुलिस के जवानों ने उन्हें बड़ोदरा से खाली ट्रक लेकर टाटा जा रहे मोतीलाल के ट्रक में चढ़ा दिया था.

Last Updated : May 19, 2020, 1:20 PM IST

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