जांजगीर चांपा:बुनियादी सुविधाएं मिलना हर किसी का अधिकार है, लेकिन जिले में ऐसे कई गांव हैं, जहां आजादी के 72 साल बाद भी बस पगडंडियों का सहारा है. लोग कीचड़ से भरे रास्तों पर चलने को मजबूर हैं. जहां की सड़कों पर डामर गिट्टी नहीं कीचड़ भरा है.
आजादी के बाद से ही सड़क नसीब नहीं हुई जिले में सिस्टम की मार ने सुदूर ग्रामीण इलाकों के लोगों की जिंदगी मुश्किलों से भर दी है. तस्वीरों में दिख रहे इस गांव में कहने को सड़क तो है, लेकिन उस सड़क पर घुटने भर के गड्ढे हैं, जिसे देखकर ये पता करना मुश्किल है, कि गड्ढे में सड़क है या सड़क में गड्ढे, बस चारों तरफ कीचड़ पसरा है. यहां के लोग कीचड़ से भरी पगडंडियों पर चलने को मजबूर हैं, ये कहानी बिरहनी गांव की है.
जान जोखिम में डालकर स्कूल जा रहे बच्चे
बिरहनी गांव में सड़कों से गुजरना दूभर है. नन्हें-मुन्हें बच्चे जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते हैं. इतना ही नहीं ग्रामीण बताते हैं कि गांव में एंबुलेंस तक नहीं पहुंच पाती. मरीजों को 5 किलोमीटर खाट से ले जाया जाता है, कई मर्तबा मरीज अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं.
रसूखदारों से कई मर्तबा गुहार
ग्रामीण बताते हैं कि ऐसा कोई प्रशासनिक दफ्तर नहीं जहां इनकी अर्जियां न पहुंची हो, ऐसा कोई अधिकारी नहीं जिसके सामने ये गिड़गिडाए न हों, इतना ही नहीं सरपंच से लेकर विधायक जी तक गुहार लगाया, लेकिन रसूखदारों को इससे क्या, 5 रुपये के कलम से इनका दर्द ही तो लिखा था, जिसको कागज का टुकड़ा समझ मोड़कर दफ्तर की डस्टबीन में डाल दिए.
चमचमाती सड़कों की आस
आजादी के 72 साल, पूर्व सरकार के 15 साल और वर्तमान सरकार के 8 महीने, जिससे एक मर्तबा फिर ग्रामीणों के सीने में चाह उभरी है. फिलहाल देखना ये होगा कि बिरहनी गांव के ग्रामीणों को कब चमचमाती सड़कें नसीब होगी, कब बच्चे साफ-सुथरी सड़कों से होकर स्कूल जाएंगे, ये तो आने वाला समय बताएगा.