जांजगीर-चांपा: यूं तो छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति समाज में रची-बसी हुई है. लेकिन आधुनिकता की दौड़ में हमारी लोक संस्कृति कहीं विलुप्त होती नजर आती है. लेकिन अब उम्मीद की छोटी सी किरण जगी है. कभी शासकीय समारोह तक सीमित रहने वाली पंडवानी का आयोजन अब गांव-गांव में होने लगा है.
महाभारत के चरित्रों को लोगों तक पहुंचाने का बड़ा माध्यम बना पंडवानी महाभारत के चरित्रों को लोगों तक पहुंचाने का माध्यम
घरेलू कार्यक्रम से लेकर महाभारत और श्री कृष्ण के चरित्र को लोगों तक पहुंचाने में पंडवानी की अहम भूमिका रही है. इसका एक खास उदाहरण जिले के पामगढ़ क्षेत्र के पेंड्री गांव में देखने को मिला. इस कार्यक्रम में श्री कृष्ण चरित्र को पंडवानी के माध्यम से लोगों को बताया जा रहा है. ये लोगों के लिए रोचक के साथ-साथ प्रेरणा देने वाला भी है.
कार्यक्रम के आयोजक भी इस बात को मान रहे हैं कि श्री कृष्ण चरित्र को जन-जन तक पहुंचाने और लोगों के विचार को परिष्कृत करने के लिए ये काफी अच्छा माध्यम है. वहीं ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि जिस तरीके से नए दौर में भौतिकता हावी हो गई है, इस तरह के कार्यक्रमों से मानवीय संवेदनाओं को प्रेरणा मिलेगी.
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पंडवानी कलाकारों को मिलती है पहले से कहीं ज्यादा प्रतिष्ठा
इस कार्यक्रम में आए लोगों का भी कहना है कि पंडवानी देखने से न केवल संगीतमय कार्यक्रम से मन रमता है, बल्कि श्री कृष्ण के संदेश से भी भावनाएं प्रभावित होती हैं. आयोजकों का भी कहना है कि श्री कृष्ण के विचार से आम लोग सत्य और धर्म को अच्छे तरीके से जान सकते हैं. इसके अलावा पंडवानी के कलाकारों ने भी ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि इस दौर में पंडवानी के कार्यक्रम अब अधिक होने लगे हैं और उन्हें पहले से कहीं ज्यादा मान प्रतिष्ठा मिलने लगी है.