छत्तीसगढ़

chhattisgarh

ETV Bharat / state

SPECIAL: कोसा पर जादूगरी, मेक इन इंडिया के साथ 'अरपा पैरी के धार' की झलक - Janjgir news

जांजगीर के नीलांबर देवांगन अपनी विरासत को संभालने में लगे है. यहीं वजह है कि वे कोसा को हमेशा नए रूप में पेश करने की कोशिश करते रहे हैं. उन्हें दो बार राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिल चुका है.

Chhattisgarh tradition on Kosa
कोसा पर छत्तीसगढ़ की परंपरा

By

Published : Nov 2, 2020, 6:03 PM IST

Updated : Nov 2, 2020, 7:00 PM IST

जांजगीर:जिले के नीलांबर देवांगन कोसा के ऐसे बुनकर है जो कोसा में नए प्रयोग के लिए देशभर में जाने जाते हैं. कोसा पर न सिर्फ उन्होंने आधुनिक मेक इन इंडिया उकेरा बल्कि छत्तीसगढ़ की झलक भी इसमें दिखाई है. खानदानी कोसा के काम में उन्हें दो बार राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिल चुका हैं. खास बात ये है कि इस विरासत को संभालने उनके बेटे भी अब आगे आ गए है, और कोसा के काम में अपना करियर बना रहे हैं.

कोसा पर जादूगरी

कोसा पर परंपरा की झलक

साड़ी पर छत्तीसगढ़ की परंपरा

ETV भारत से नीलांबर देवांगन ने बताया कि वह कोसा के कपड़े में नए प्रयोग करते हैं. मेक इन इंडिया के लोगो को कोसे की साड़ी में बुनाई कर चुके हैं. इसके अलावा छत्तीसगढ़ के राज्य गीत 'अरपा पैरी के धार.....को भी उन्होंने कोसा साड़ी पर उकेरा है, ताकि वह गौरव का प्रतीक बन जाए. नीलांबर ने बताया कि इसे अभी-अभी उन्होंने तैयार किया है, और इसे वे प्रदेश के विशिष्ट जनों को देना चाहते हैं. इसी तरह उन्होंने कोसे के कपड़े में तरह-तरह के डिजाइन तैयार किया है. उनकी डिजाइन की तारीफ पूरे प्रदेश में होती है. उन्होंने बताया कि पुराने जमाने के कई ऐसे डिजाइन है जो आज लुप्त होने की कगार पर है, जिसे वे फिर से फैशन में लाने की पूरी कोशिश कर रहे है.

15 साल की उम्र से खानदानी पेशे से जुड़े नीलांबर

मंदी के दौर में भी नहीं छोड़ा कोसा कारोबार

नीलांबर देवांगन ने बताया कि कोसा कारोबार उनका खानदानी पेशा है और वह 15 साल की उम्र से इस व्यवसाय में जुड़ गए थे. उनके
तीन बेटे भी नए आइडिया के साथ इस व्यवसाय में अपना कैरियर बनाना चाहते है. उनका एक बेटा पवन देवांगन नए-नए डिजाइन के लिए अपने पिता को प्रेरित करते है तो दूसरा बेटा उस कपड़े की मार्केटिंग के लिए आज की नई तकनीक का प्रयोग करते है. आज जब कोसा कारोबार से जुड़े लोग दूसरा पेशा अपना रहे हैं तो ये हुनरमंद परिवार कोसे के कारोबार को प्रगति पर ले जाने के लिए नए-नए आइडिया प्रयोग में ला रहे हैं.

पढ़ें:SPECIAL: नक्सली गलियारे के अंधियारे में 'जादुई चिराग' का उजियारा, रोशन होगा नक्सलगढ़ का कुम्हारपारा

दो बार मिल चुका है राष्ट्रपति पुरस्कार

जांजगीर का कोसा कारोबार

वैसे तो नीलांबर देवांगन का कहना है कि उन्हें अपने दादा और पिता जी से यह हुनर विरासत में मिला है, लेकिन जिस तरीके से उनके पिताजी ने इस बुनाई में प्रयोग किया, उसकी वजह से उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था. 2001 में नीलांबर देवांगन को राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद ने सम्मानित किया था. इस सम्मान से इनके परिवार को यह उत्साह है कि आगे भी वह नए तरीके से इस व्यवसाय में काम करेंगे तो उन्हें प्रोत्साहन मिलता रहेगा.

'छत्तीसगढ़ का प्रमुख कारोबार बन सकता है कोसा'

कोसा पर मेक इन इंडिया
नीलांबर देवांगन का कहना है कि छत्तीसगढ़ में कोसा बुनाई में हजारों परिवार जुड़े हुए हैं. अगर इस पर सही तरीके से ध्यान दिया जाता है तो यह कारोबार छत्तीसगढ़ में प्रमुख व्यवसाय बन सकता है. जो कि धान के बाद सबसे अधिक आय देने वाला कारोबार हो सकता है.

जांजगीर-चांपा जिले सहित आसपास के पड़ोसी जिले में कोसे का कारोबार खानदानी पेशा है. विरासत में मिले इस बुनाई के कारोबार को लोग पीढ़ी दर पीढ़ी करते आ रहे हैं, लेकिन अब तक इनके उत्थान या कौशल विकास के लिए कोई विशेष पहल राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा नहीं की गई है. यही कारण है कि अब तक यह कारोबार अपनी पहचान नहीं बना सका है.

पढ़ें:SPECIAL: ये हैं बालोद के 'पैडमैन', महिलाओं को आजीवन देंगे मुफ्त में सैनेटरी पैड

कोरोना काल में मजदूरी को मजबूर हुए बुनकर

नीलांबर बताते हैं कि कोरोना महामारी के बाद बनी लॉकडाउन की स्थिति में बड़ी तादाद में लोग कोसा कारोबार को छोड़ रहे हैं और दूसरे अन्य व्यवसाय अपना रहे हैं. खास करके जो बुनकर वर्ग है वह बुनाई का काम छोड़कर रिक्शा चलाने, सब्जी बेचने या मजदूरी करने पर मजबूर हैं. इस ओर शासन का ध्यान नहीं जा रहा है. इसके लिए नीलांबर देवांगन का कहना है कि बुनकरों को इस समय मदद की जरूरत हैं. मदद नहीं मिलने पर धान के बाद छत्तीसगढ़ की पहचान बने कोसा के कारोबार पर ग्रहण लग सकता हैं.

Last Updated : Nov 2, 2020, 7:00 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details