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SPECIAL: जांजगीर चांपा में कोसा उत्पादन बढ़ाने की जरूरत, ताकि संवर सके लोगों की जिंदगी

जांजगीर-चांपा में कोसा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे लोगों को रोजगार मिल सके. जिले में करीब 10 हजार कोसा बुनकर हैं, जो सस्ता कोसा मिलने पर कोसा उद्योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की बात करते हैं.

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Published : Sep 28, 2020, 7:32 PM IST

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जांजगीर-चांपा में कोसा उत्पादन

जांजगीर-चांपा: जिले को कोसा नगरी के नाम से जाना जाता है. यहां चंद्रपुर से लेकर चांपा तक ज्यादातर परिवार कोसे के उत्पादन पर निर्भर हैं. जांजगीर-चांपा में कोसा बुनकर उद्योग बड़े पैमाने पर फैला हुआ है. यह देवांगन समाज के लिए खानदानी पेशा है. ज्यादातर कोसा का आयात दूसरे राज्यों से करना पड़ता है. यही वजह है कि जिले में कोसा उत्पादन को लेकर विशेष कार्य योजना बनाई गई है. वर्तमान में कोसा उत्पादन केवल 10 प्रतिशत है, जो फिलहाल यहां की मांग को पूरा नहीं कर पाता.

जांजगीर-चांपा में कोसा उत्पादन

रेशम विभाग के मुताबिक जिले में वर्तमान में 89 लाख रुपये का कोसा उत्पादन हो रहा है. संभावना है कि अगले 5 सालों में कोसे का उत्पादन दो करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा. जिले में करीब 10 हजार कोसा बुनकर हैं, जो सस्ता कोसा मिलने पर कोसा उद्योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की बात करते हैं. लेकिन वर्तमान में कोसा उत्पादन को देखते हुए ऐसा संभव होता नहीं दिखता. इसे लेकर ETV भारत ने रेशम विभाग से बात की है.

कोसा कृमि पालन जांजगीर-चांपा

रेशम विभाग का कहना है कि उनका लक्ष्य है कि कोसा उत्पादन को वर्तमान से ज्यादा दोगुना किया जाए. लेकिन कोसा उत्पादन दीर्घकालिक परियोजना है. जिसकी वजह से इसका उत्पादन तेजी से बढ़ाना मुश्किल है.

तसर केंद्र पामगढ़

जिला पंचायत CEO तीर्थराज अग्रवाल ने बताया कि जांजगीर-चांपा में बीते दो साल से महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत रेशम विभाग के माध्यम से कोसे की नर्सरी का विस्तार किया जा रहा है.

कोसे का कोकून
  • बीते साल करीब 7 लाख 40 हजार कोसे के पौधे लगाए गए थे.
  • इस साल अभी तक साढ़े 5 लाख पौधे 172 हेक्टेयर में लगाए गए हैं.
  • वर्तमान में जिले में 80 लाख कोकून का उत्पादन होता है.
  • जिले की डिमांड का सिर्फ 10 प्रतिशत ही हो पाता है पूरा.

जिला पंचायत सीईओ ने बताया कि यहां ज्यादातर परिवार कोसा उत्पादन पर निर्भर हैं. कोकून से रेशम निकालने वाले जो कारीगर हैं, उन्हें ज्यादा से ज्यादा कच्चा माल मिल सके और ज्यादा से ज्यादा रोजगार मिल सके इसलिए अलग-अलग सरकारी योजनाओं का समावेश कर रेशम उत्पादन में जिला प्रशासन लगा हुआ है. सीईओ तीर्थराज ने बताया कि कोसा उत्पादन से पर्यावरण को भी फायदा है. क्योंकि इसमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए जाते हैं.

रेशम बनाने की प्रक्रिया

मिट्टी से रेशम परियोजना के तहत हो रहा काम

रेशम विभाग के नोडल अधिकारी मधुप चंदन ने बताया कि कोसे की डिमांड को देखते हुए जिले में मिट्टी से रेशम परियोजना चलाई जा रही है. जिसे SOIL TO SILK योजना भी कहा जाता है. इस प्लान के तहत ये अनुमान लगाया गया है कि कोसे का उत्पादन करीब दो करोड़ तक पहुंच जाएगा.

कोसा कृमि पालन

उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत जिले में 2500 हेक्टेयर में पौधे लगाना है. जिसमें करीब 2100 हेक्टेयर में प्लांटेशन कर लिया गया है और इस साल 170 हेक्टयर में प्लांटेशन किया गया है. जैसे आज प्लांटेशन किया गया, तो आने वाले 4-5 साल में वो पेड़ बनकर तैयार हो जाता है. उसके बाद उसमें कृमि पालन का काम किया जाता है. कृमि पालन करने के लिए ग्रामीणों को प्रशिक्षण दिया जाता है. कृमि पालन से कई ग्रामीणों का रोजगार जुड़ा हुआ है.

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नोडल अधिकारी ने बताया कि कोरबा और रायगढ़ जैसे जिलों से कोकून जांजगीर-चांपा भेजा जाता है और वहां उसका धागाकरण किया जाता है. अगर कोसे का उत्पादन बढ़ाया जाता है, तो ग्रामीणों को रोजगार मिलेगा साथ ही प्रदेश में कोसा उत्पादन से इसके निर्यात से राजस्व भी मिलेगा.

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